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प्रोफेसर चंद्रबली सिंह जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध व्यक्ति थे : प्रो अवधेश प्रधान

जनवादी लेखक संघ ने आयोजित किया प्रोफेसर चंद्रबली सिंह जन्म शताब्दी समारोह

वाराणसी : “प्रोफेसर चंद्रबली सिंह से, सत्ता से संघर्ष और जनवाद की पीड़ा समझने वाले लोग जुड़े थे ।चंद्रबली सिंह हमारे ऐसे अभिभावक थे, जिनसे हम अपनी किसी पीड़ा को रख सकते थे। उन्होंने अपने वक्त के सुप्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता संतति के ऊपर भी अपना आलोचनात्मक लेख को लिखा था। प्रोफेसर सिंह का यह मानना था की अपनी संस्कृति को समझने के लिए हमें इस पुस्तक को पढ़ना जरूरी है। त्रिलोचन की कविता पर उनके अध्ययन की छाप दिखाई देती है। यथार्थ के प्रस्तुत करने के कितने तरीके हो सकते हैं यह उनकी आलोचनाओं के अंतर्गत देखा जा सकता है। कवि की कविता जीवन और कर्म से अलग नहीं हो सकती। साहित्य और कला मनुष्य जुड़े होते हैं। यही कारण था कि प्रोफेसर चंद्रबली सिंह प्रगतिशील कवियों में नागार्जुन, त्रिलोचन, शमशेर का नाम अवश्य लेते थे।

एक घटना का जिक्र करते हुए आपने बतलाया की रामविलास शर्मा ने एक बार चंद्रबली सिंह को एक कार्यक्रम के अंतर्गत भूतपूर्व लेखक कहा- उद्बोधन के अंत में उन्होंने कहा यदि यह लिखना शुरू कर दें तो मैं भूतपूर्व के आगे ‘अ’ शब्द जोड़ दूंगा। प्रोफेसर चंद्रबली सिंह जी ने मुंशी प्रेमचंद पर सर्वाधिक लेख लिखे” उपरोक्त बातें विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर बलराज पांडेय ने जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित “प्रोफेसर चंद्रबली सिंह का व्यक्तित्व और उनकी आलोचना दृष्टि” विषय पर बोलते हुए रविवार को अशोक मिशन जननॉटय शाला, कादीपुर, शिवपुर में कहीं। कार्यक्रम के पूर्व मंचासीन समस्त व्यक्तियों ने प्रोफेसर चंद्रबली सिंह के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। मंचासीन व्यक्तियों को जनवादी लेखक संघ द्वारा अंग वस्त्रम देकर सम्मानित किया गया।

मुंशी प्रेमचंद पर प्रोफेसर चंद्रबली सिंह के सर्वाधिक लेख : अवधेश प्रधान

इस अवसर विशेष पर बोलते हुए प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कहा- “चंद्रबली सिंह को सबसे पहले मैंने अस्सी पर एक चुनावी सभा में भाषण देते सुना था ।आप उदय प्रताप कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे ।चुनावी सभा में हिंदी में भाषण दे रहे थे। यह मेरे लिए आश्चर्यजनक था। प्रोफेसर सिंह जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध व्यक्ति थे। उनका व्यक्तित्व अनूठा था। पार्टी के वे कट्टर समर्थक और अनुशासित सिपाही थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी पार्टी के प्रति कोई आलोचनात्मक बात नहीं कहीं। हां केवल एक बार ज्योति बसु के प्रधानमंत्री न बनने पर उन्होंने इसकी आलोचना की थी। प्रोफेसर चंद्रबली सिंह जहां समकालीन विषयों के आलोचना पर केंद्रित होने की बात कहते हैं, वही उनका मानना था कि अपने समृद्ध साहित्य को छोड़कर हमारे आलोचनाओं का कोई मूल्य नहीं। उन्होंने जीवन भर अपने संपूर्ण ऊर्जा अपने लेख में डाली, जो उनके दशकों के परिश्रम का परिणाम था। उनके द्वारा कवियों की कविताओं के अनुवाद मिसाल है। उनका अनुवाद उनके द्वारा जनता को दिया गया उनका अनमोल तोहफा है।”

विषय विशेष के ऊपर उद्बोधन देने वालों में जनवादी लेखक संघ के महासचिव नलिनी रंजन सिंह, उदय प्रताप कॉलेज की पूर्व प्राचार्य डॉ बीबी सिंह और कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉक्टर राम सुधार सिंह शामिल रहे। अतिथियों का स्वागत अशोक आनंद ने एवं धन्यवाद ज्ञापन उमेश चन्द्र वर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन महेंद्र प्रताप सिंह ने किया। इस अवसर पर सुरेश प्रताप सिंह, शैलेंद्र सिंह, आनंद शंकर, राजनारायण सिंह, रामेश्वर त्रिपाठी, सलाम बनारसी, डा शरद श्रीवास्तव, नयीम, कृष्ण शंकर रघुवंशी उपस्थित रहे।