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उत्तरी ध्रुव व हिमालय के ग्लेशियर की बर्फ पिघलने से गर्म तेजलहरों का सामना

डॉ. भरत राज सिंह

लखनऊ : यूपी में लू की स्थिति में कोई कमी नहीं आई और रविवार को कई शहरों में पारा 46 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया। मौसम विभाग ने अगले दो दिनों तक गर्मी से राहत नहीं मिलने की संभावना जताई है। लखनऊ 45.6 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया – जो पिछले आठ वर्षों में जून में शहर का उच्चतम तापमान था। यह इस साल शहर का दूसरा सबसे गर्म दिन भी था। उत्तरी ध्रुव पर बर्फ लगभग 65 प्रतिशत बर्फ पहले ही पिघल चुकी है, केवल 35 प्रतिशत ही बची है, जिससे सूर्य की किरणों को प्रतिबिंबित कर वापस भेजने की सक्षम सतह क्षेत्र काफी कम हो गया है। नतीजतन, दूसरी तरफ बर्फ लगातार पिघल रही है, जिससे समुद्र का विस्तार बढ़ रहा है और वाष्पीकरण का स्तर बढ़ रहा है। इसके अतिरिक्त, वाष्पीकृत पानी की बूंदें, ग्रीनहाउस गैसों के साथ मिलकर, उच्च वायुमंडलीय स्तरों पर एकत्रित होती हैं, जिससे तापमान विनियमन (रेडिएशन) में बाधा आती है। गर्मी में यह वृद्धि हर साल तीव्र होती जा रही है, जो लापरवाहीपूर्ण पर्यावरणीय दोहन के साथ-साथ हमारे भविष्य के लिए एक खतरनाक तस्वीर पेश करती है।

प्रतिष्ठित पर्यावरण वैज्ञानिक और स्कूल ऑफ मैंनेजमेंट साइंसेज के तकनीकी महानिदेशक डॉ. भरत राज सिंह, एक प्राकृतिक घटना नौतपा जो प्रतिवर्ष धटित होती है को भी स्पष्ट करते हैं कि यह एक वार्षिक घटना है जो पृथ्वी और सूर्य के बीच निकटतम दूरी लगभग 9 (नौ) दिन रहने से घटित होती है। इस कम दूरी के परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष, प्रवर्धित सौर विकिरण, तापमान में वृद्धि उत्पन्न होती है। परंपरागत रूप से, यह घटना उत्तरी ध्रुव की बर्फ के परावर्तक गुणों द्वारा संतुलित होती है, जो एक प्राकृतिक ढाल के रूप में काम करती है, जो आने वाले सौर विकिरण के एक महत्वपूर्ण हिस्से को विक्षेपित करती है। हालाँकि, घटते बर्फ के आवरण के साथ, इस सुरक्षात्मक तंत्र से समझौता हो गया है, जिससे बेरोकटोक सौरताप से पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने में वृद्धि हो रही है।

इसके अलावा, समुद्र पानी के गर्म होने के कारण व रात में शीतलीकरण में देरी के प्रभाव परन्तु पृथ्वी की जमीन, नमी के कारण तेजी से ठण्डी होने की सामान्य प्रक्रिया से पृथ्वी का तापमान और भी बढ़ रहा है। जैसे ही बर्फ समुद्र में पिघलती है, पानी की सतह का क्षेत्रफाल फैलता है, जबकि पानी, सौर किरणों के निरंतर पडने से गर्म होकर, अपनी गर्मी को कम करने में अस्मर्थ रहता है। डॉ. भरत राज सिंह एक तीसरे महत्वपूर्ण कारक को रेखांकित करते हैं: औद्योगिक गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का विस्तार, विशेष रूप से ग्रीनहाउस वातावरण में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से हुआ है जो प्राकृतिक कार्बन सिंक हुआ करता था, कम हो जाने से इस समस्या को और बढ़ा देती है। ये उत्सर्जित गैसें, वाष्पीकृत पानी की बूंदों के साथ, वायुमंडल में एक धुंध बनाकर अवरोध उत्पन्न करती हैं और पृथ्वी पर पड रही सूर्य के किरणो की गर्मी (रेडीयेशन) को रोकती हैं जिससे ग्लोबल वार्मिंग में लगातार बढोत्तरी हो रही हैं।

समुद्र के सतह पर वाष्पीकरण के दर में तेजी होने और जलवाष्प के आसमान के 14-15 किलोमीटर पर ग्रीनहाउस गैस के साथ मिलने के कारण, डॉ. भरत राज सिंह भविष्य में विनाशकारी घटनों में ते़जी की चेतावनी भी देते हैं। इसके परिणाम की झलक दुनिया भर के देशों में, अनियमित मौसम पैटर्न से लेकर बादल फटने और बाढ़ जैसी विनाशकारी घटनाओं तक के परिणाम, भौगोलिक और मौसमी सीमाओं को पारकर एक सर्वव्यापी खतरा पैदा होता पाया जा रहा हैं। उत्तर-प्रदेश में 40 वर्षों में मई का सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया था, जबकि आगरा में यह 30 वर्षों में सबसे गर्म दिन था। लखनऊ में भी पिछले पांच वर्षों में मई का सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया। मौसम कार्यालय ने कहा, 48.1 डिग्री सेल्सियस के साथ, झाँसी राज्य का सबसे गर्म स्थान था।

बारिश भी मचाएगी तबाही
डॉ. भरतराज सिंह ने कहा कि जिस तेजी से वाष्पीकरण हो रहा है और पानी की की बूंदे में पहुंच आसमान में रही हैं जो तबाही मचाएगी। यह कभी भी, किसी भी मौसम में और किसी भी देश में हो सकती है। बीते दिनों बादलों का फटना, अमेरिका, ईटली, जर्मनी, फ्रांस, अरब देशो, चींन, आस्ट्रेलिया व अन्य देशों में बारिश से तबाही का मंजर देखा जा चुका है।