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यूपी चुनाव : जातीय समीकरण से किसे फ़ायदा और किसे नुकसान

09_02_2017-firstphaseelectionयूपी चुनाव की रण में महारथी ताल ठोक चुके है दो दिन बाद पहले चरण का मतदान होना है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह चुनाव करो या मरो की लड़ाई है, जबकि बीएसपी प्रमुख मायावती सत्ता में वापसी के लिए जी-जान लगा रही हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी कुर्सी बचाने के लिए काग्रेस से गठ्बन्धन करके विकास के मुद्दे पर चुनावी समर पार करके फिर यूपी की कुर्सी पाना चाहते है , कांग्रेस अखिलेश  के भरोसे यूपी में ‘अच्छे दिन’ की उम्मीद लगाए बैठी है। यूपी चुनाव में धर्म और जातीय समीकरण भी एक अहम रोल अदा करता है और सभी पार्टियां इस पर गणित बैठाने में लगी हुई हैं।

वोट बैंक के लिहाज़ से देखें तो सबसे बड़ा ख़तरा सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को है, जिसका मुस्लिम वोट बैंक खतरे में नज़र आ रहा है। यूपी में मुसलमानों की संख्या करीब 17 प्रतिशत है, जिन्होंने बीते 15 सालों से सपा का हाथ थाम रखा है। बीते विधानसभा चुनाव में भी सपा को 60 प्रतिशत से ज़्यादा मुस्लिम वोट मिले थे, लेकिन थे यादव परिवार में विवाद के चलते मुस्लिम मतदाता भ्रमित थे लेकिन काग्रेस से गठबंधन के चलते अब इस बार भी सपा की तरफ वोटिंग कर सकते है । यूपी चुनाव को लेकर हुए सभी सर्वे में मायावती की समाजवादी पार्टी  को सबसे आगे बताया गया है। मुस्लिम समुदाय की खासियत यह है कि इनका वोट ज़्यादा बंटता नहीं है।

वहीं, बीजेपी को यूपी में आने से रोकने के लिए मुस्लिम समुदाय उस पार्टी को वोट देगी जो उनको कड़ा मुकाबला दे सके। वर्तमान स्तिथि में  सपा काग्रेस गठबंधंन बीएसपी से ज़्यादा मज़बूत लग रही है और इस बात के पूरे आसार हैं कि मुस्लिम समुदाय गठबंधंन का साथ नही  छोडगे । अगर ऐसा हुआ तो बीएसपी को 70 सीटों में नुकशान  होगा। यूपी में यादवो  की आबादी 18 प्रतिशत हैं, जिनका वोट एकतरफा समाजवादी पार्टी  को जाता है। यादव  वोट के साथ-साथ अगर अधिकांश मुस्लिम वोट भी अखिलेश को मिला तो सपा गठबंधन  को यूपी चुनाव में नंबर एक पार्टी बनने से कोई नहीं रोक सकता है।

इस चुनाव को सबसे दिलचस्प बनाती है बीजेपी… जिसने 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के दम पर 80 में से 71 सीटें जीती थी। हालांकि 1991 में जहां यूपी में बीजेपी को 221 विधानसभा सीटें मिली थीं, वह 2012 में घटकर महज़ 47 ही रह गईं। दिल्ली और बिहार चुनाव में करारी हार के बाद मोदी और पार्टी को मज़बूत बनाने के लिए यूपी का सहारा है, लेकिन सीएम प्रत्याशी व चुनावी एजेंडा जैसे अहम मुद्दों पर एकमत नहीं बना पा रही है। बीजेपी का यूपी चुनाव में हिंदुत्व व व ध्रुवीकरण मुख्य हथियार होगा , जिसका फ़ायदा पार्टी को पश्चिमी यूपी में मिलेगा। पश्चिमी यूपी में 27 ज़िले आते हैं, जहां हिन्दुओं की संख्या 73 प्रतिशत है, जिसमें जाट और गुर्जर भी आते हैं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में वोट मिले थे। मुज़फ्फरनगर दंगे, दादरी कांड व मथुरा में हुई हिंसा ने यूपी के इस हिस्से में सपा को बेहद कमज़ोर कर दिया है। जाटों ने भी अजीत सिंह का साथ छोड़कर बीजेपी को अपना हितैषी मान लिया है।

अगर लोकसभा की तरह राज्य चुनाव में भी बीजेपी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोगों का समर्थन मिला तो पार्टी आने वाले चुनाव में बेहद अच्छा प्रदर्शन करेगी। प्रयाग नगरी इलाहाबाद में पार्टी की राष्ट्रीय इकाई की बैठक करके हिन्दुओं को पूरी तरह से अपनी तरफ खींचने की योजना बनाई जा रही है। केशव प्रसाद मौर्या को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर 31 प्रतिशत ओबीसी जनसंख्या को भी टारगेट किया जा रहा है। यूपी में राजनाथ सिंह को पार्टी प्रदेश के सबसे बड़े नेता के रूप में दिखा रही है, हालांकि उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं घोषित किया गया है। उनके ज़रिए पार्टी 8 प्रतिशत ठाकुर वोट जीतना चाहेगी। ब्राह्मण, कुर्मी व भूमिहार वोट जिनकी संख्या क़रीब तेरह प्रतिशत है भी बीजेपी को अच्छा समर्थन देंगे, क्‍योंकि यह यूपी में परंपरागत इन्हीं के साथ जुड़े रहे हैं।

जातीय व धार्मिक समीकरण से देखें तो यूपी में समाजवादी  और बीजेपी को फ़ायदा मिलता दिख रहा है, जबकि मुस्लिम समुदाय का विश्वास  समाजवादी पार्टी को मिलाता दिख राहा ।