उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव की बाज़ चुकी रणभेरी ने अब राजनीतिक विश्लेशको की नींद हराम कर दी है। बिना किसी लहर और मुद्दे के यह चुनाव बिलकुल परंपरा से हटकर विकास के मुद्दे पर लड़ी जा रही है । अभी तक प्रदेश की सत्ता पर काबिज रही समाजवादी पार्टी के छह महीने तक चले अंतरकलह और पार्टी पर अखिलेश यादव के कब्जे के बाद कांग्रेस से हुए उनके गठबंधन के कारण यह मामला अब और भी दिलचस्प हो चुका है। आज उनके बेटे ने जब पार्टी हथिया लिया तो उसने सबसे पहले उसी कांग्रेस से हाथ मिला कर अपनी नयी पारी की शुरुआत कर दी। हालांकि अब से कुछ माह पहले तक जब कोई कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन की चर्चा करता था तो लोग है कर खारिज कर दिया करते थे। आज वह गठबंधन हो चुका है।
प्रदेश में राजनीती की दूसरी धुरंधर खिलाड़ी बसपा सुप्रीमो मायावती भी इस बार सत्ता में आने की अपनी दावेदारी कर रही हैं और जी जान से उन्होंने कोशिश भी शुरू कर दी है। खुद की पार्टी को मज़बूती देने के लिए उन्होंने सबसे पहले अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर के सभी को काम पर भी लगा दिया है। भाजपा की सूची आते आते बहुत देर हुई है। यहाँ यह दिलचस्प है की पहले दूसरे और तीसरे चरण के चुनाव इन्ही तीन के बीच लड़ा भी जाना है। पहले चरण की 73 , दूसरे चरण की 67 और तीसरे चरण की 69 सीट पर अब सभी की सेनाये जैम चुकी हैं। यह कुल संख्या 209 होती है जो यह तय करेगी कि अबकी उत्तर प्रदेश के सिंहासन पर कौन काबिज होने वाला है।
दरअसल , ये सभी सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हैं जहां माहौल को ध्रुवीकरण के रूप में देखने की कोशिश की जा रही है।
प्रथम चरण की खास बातें
11 फरवरी को होगा प्रथम चरण का मतदान।
यूपी की 15 जिलों की 73 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाएंगे।
शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, आगरा, फिरोजाबाद, एटा और कासगंज में होगा चुनाव।
इस चरण में पूर्व भाजपा उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी, भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री श्रीकांत शर्मा, राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह, संगीत सोम सहित कई नामचीन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
इस चरण में कैराना, बुढ़ाना, चरथावल, नोएडा, दादरी सहित कई सीटों पर प्रत्याशियों का मुकाबला दिलचस्प होगा।
इस चरण में मुजफ्फरनगर की सीट पर समाजवादी पार्टी का वर्तमान विधायक है, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सपा केे लिए इस सीट को बचाना एक बड़ी चुनाैैती होगी।
इस चरण की शामली विधानसभा का गठन वर्ष 2008 में हुआ था।
शामली से 2012 में कांग्रेस के विधायक पंकज मलिक ने सपा केे वीरेंद्र सिंह को हराकर सपा की लहर में कांग्रेस की झोली में एक सीट डाल दी थी।
इस चरण में मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना सीट पर पहली बार चुनाव वर्ष 1957 में हुआ था, 1967 के परिसीमन में यह सीट खत्म हो गई थी, लेकिन 2008 में यह फिर अस्तित्व में आई थी।
इस चरण में दादरी विधानसभा में भी मतदान होना है, इस सीट पर आजतक समाजवादी पार्टी का खाता नहीं खुला है, यहां से कांग्रेस चार बार जबकि बीजेपी और बीएसपी दो-दो बार जीत दर्ज करा चुकी है।
इस चरण में हापुड़ विधानसभा में भी चुनाव होना है,यहां से 2012 सहित आठ बार कांग्रेस ने जीत का स्वाद चखा है।
द्वितीय चरण की खास बातें
इस चरण में 11 जिलों की 67 सीटों पर चुनाव होना है।
यहां नामांकन भरने की अंतिम तिथि 27 जनवरी है।
यहां 15 फरवरी को मतदान और 11 मार्च को मतगणना होनी है।
इस चरण में सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, बरेली, अमरोहा, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर और बदांयू में चुनाव होना है।
इस चरण में सहारनपुर की नकुड़ विधानसभा सीट पर पहली बार 1952 में चुनाव हुआ था।
सहारनपुर देहात की सीट का नाम 2007 के विधानसभा चुनावों तक हरोड़ा सीट था और यह बहुजन समाज पार्टी की प्रिय सीटों में से एक है।
मायावती खुद हरोड़ा सीट से 2002 में चुनाव लड़कर जीत हासिल कर चुकी हैं।
संभल जिले की असमौली विधानसभा 2012 में अस्तित्व में आई थी।
यूपी कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष इमरान मसूद सहारनपुर से अपनी किस्मत आजमाने जा रहे हैं। इन्होंने लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी की बोटी-बोटी करने का विवादित बयान दिया था।
रामपुर की स्वार सीट से समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खां के पुत्र छोटे आजम यानि अब्दुल्ला आजम खां की सियासी पारी शुरू होने जा रही है।
बदांयू को समाजवादी पार्टी के कदृदावर नेता सांसद धर्मेंद यादव का गढ़ माना जाता है।
बदायूू ही वह सीट है जहां से अपने नेता धर्मेंद यादव के खिलाफ सपा विधायक आबिद रजा ने बगावत की थी।
तृतीय चरण की खास बातें
इस चरण में 12 जिलों की 69 सीटों पर चुनाव होना है।
इसमें फर्रुखाबाद, हरदोई, कन्नौज, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, कानपुर नगर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी और सीतापुर में चुनाव होना है। यहां 19 फरवरी को मतदान होगा।
इटावा को मुलायम सिंह यादव का गढ़ माना जाता है, ऐसे में सपा के लिए यह सीट जीतना प्रतिष्ठा की बात है।
बाराबंकी में समाजवादी पार्टी छोड़कर गए कद्दावर नेता बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा अपनी किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतरकर सपा से बगावती तेवर दिखाएंगे।
कन्नौज सांसद और सीएम अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी।
लखनऊ कैंट विधानसभा से मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव और कांग्रेस का हाथ छोड़ बीजेपी का दामन थामने वाली रीता बहुगुणा जोशी के बीच होने वाली सियासी लड़ाई को देखना दिलचस्प होगा।