आ फिर लौट चलें ➖➖➖➖➖ खाते हो तुम इस मिट्टी का पर गाते गीत “लुटेरों” के। निज “पुरखों” को भी भूल गए और बने दास “गद्दारों” के। कुछ इसका भी अनुमान करो सोचो समझो मेरे भाई। जब हुआ “धमाका” रेलों में क्या मरे सिर्फ “हिंदू” भाई। फिर क्यों निर्दोषों की …
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