नई दिल्ली। रूस से परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) की सदस्यता न मिलने पर भारत ने अपना फैसला सुना कर ये बात साफ कर दी है कि वह परमाणु उर्जा विकास के अपने कार्यक्रम में विदेशी पार्टनर्स की मदद करना बंद कर देगा। जहां एक ओर रूस के साथ कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना की 5वीं और 6वीं रिऐक्टर यूनिट्स को विकास की दर से आगे बढ़ाने के लिए भारत इससे जुड़े MoU में दिए नियमों को लागू होने से रोक सकता है।
वहीं दूसरी ओर रूस यह महसूस करने लगा है कि भारत कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना के MoU को टाल रहा है ताकि वह एनएसजी सदस्यता के लिए रूस पर दबाव डाल सके। इस बात के लेकर रूस के उपप्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक मुलाकात में यह मुद्दा उठाया था पर अबतक भारत की तरफ से इस पर कोई खास बात नहीं कही गई है।
अगले महीने होने वाली रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के बीच होने वाली मुलाकात की तैयारियों को ध्यान में रख कर यह मीटिंग रखी गई थी जिसमें सिर्फ दो हफ्ते बचे हैं। ऐसे में रूस को यह चिंता सता रही है कि अगर MoU साइन नहीं हुआ तो इस मीटिंग का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। भारत ने रूस को चेतावनी देकर बात को स्पष्ट कर दिया है कि अगर अगले एक दो सालों में एनएसजी सदस्यता नहीं मिलती है तो उसके पास स्वदेशी परमाणु उर्जा कार्यक्रम चलाने के अलावा कोई और चारा नहीं बचेगा।
यह MoU पिछले साल गोवा में साइन होना था पर बाद में यह कह के बात टाल दी गई कि इसे 2016 के अंत में साइन किया जाएगा। 2016 में भी साइन न हो पाने की वजह से MoU को पिछले छह हफ्तों से रूस भारत से साइन करवाने की हर मुमकिन कोशिश में लगा हुआ है पर कुछ खास सफलता नहीं मिल रही है।
ताज़ा अन्तरराष्ट्रीय हालात में रूस को चीन से काफी मदद मिल रही है। ऐसे में भारत को यह लगता है कि रूस चीन को मना सकता है। पिछले स्पताह चीन के महत्वाकांक्षी OBOR प्रॉजेक्ट की समिट में शामिल होने के लिए पुतिन पेइचिंग गए थे।
पिछले साल रूस का पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास करने पर भी भारत रूस से नाराज़ था। वैसे रूस को यह लगता है कि दलाई लामा को अरुणाचल दौरे पर बुलाकर भारत मामले पर और ज़्यादा अडिग हो गया है जिसकी वजह से चीन भारत से चिढ़ा हुआ है।