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मानसिक श्रम वाली नौकरी करने वालों में डिमेंशिया का जोखिम कम

एक हालिया अध्ययन के मुताबिक मानसिक रूप से सक्रिय नौकरियां करने वाले लोगों में बाद के वर्षों में डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का जोखिम कम होता है। वैज्ञानिकों ने ब्रिटेन, यूरोप और अमेरिका के अध्ययनों में 100,000 से अधिक प्रतिभागियों को देखा। उनके काम से संबंधित कारकों और पुरानी बीमारियों, विकलांगता और मृत्यु दर के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया।

प्रमुख लेखक ने कहा कि निष्कर्ष इस विचार को दर्शाते हैं कि वयस्कता में मानसिक सक्रियता, डिमेंशिया की शुरुआत को टाल सकती है। अध्ययन में सिविल सेवकों से लेकर सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों और वानिकी श्रमिकों तक कई व्यवसायों के प्रतिभागियों को शामिल किया गया।

याददाश्त के स्तर को मापा गया
शोधकर्ताओं का कहना है कि याददाश्त संबंधी सक्रियता को पहले से ही डिमेंशिया की शुरुआत को रोकने या टालने में मददगार माना जाता है। मगर अब तक के परीक्षण काफी छोटे आकारों और अल्पावधि पर आधारित रहे हैं। ऐसे में उनके परिणाम भी काफी अस्थिर रहे हैं।

ऐसे में बड़े स्तर पर हुए इस अध्ययन में निष्कर्ष में संभावित स्पष्टीकरण है कि संज्ञानात्मक उत्तेजना कुछ प्रोटीन के निचले स्तर से जुड़ी होती है, जो मस्तिष्क में कुछ प्रक्रियाओं को रोक सकती है। काम पर संज्ञानात्मक सक्रियता को अध्ययन की शुरुआत में मापा गया और इसमें शामिल लोगों को औसतन 17 सालों तक ट्रैक किया गया, ताकि यह देखा जा सके कि उनमें डिमेंशिया तो विकसित नहीं हुआ है। स्पष्ट हुआ जोखिम का अंतर
शोधकर्ताओं ने कहा कि संज्ञानात्मक रूप से सक्रिय नौकरियों में महत्वपूर्ण निर्णय लेना, डिमांडिंग टास्क पूरे करना आदि शामिल होता है, जिसे नौकरी नियंत्रण भी कहा जाता है। वहीं गैर मानसिक रूप से सक्रिय रहने वाले व्यवसाय इन चीजों की कम मांग करते हैं। उन्होंने पाया कि उम्र, लिंग, शैक्षिक प्राप्ति और जीवन शैली सहित संभावित प्रभावशाली कारकों को ध्यान में रखते हुए उच्च सक्रियता समूह में मनोभ्रंश की संभावना 4.8 प्रति 10,000 व्यक्ति रही जबकि कम सक्रिय समूहों में 7.3 प्रतिशत थी।