हां! यह एक दर्दभरा सच है. सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक तस्वीर में अस्पताल के नीले गाउन से खुद को ढंके हुए एक कमज़ोर, क्षीण, निराश, मजबूर और अपनी बीवी और बेटे पर आश्रित एक आदमी जिसकी बंद आंखें, सफ़ेद बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी है ये वही सालों पहले वाला बॉलीवुड का सुपरस्टार विनोद खन्ना है.
मुझे नहीं पता कि इस फ़ोटो को किसने लीक किया लेकिन मीडिया ने, जैसा की वो करता आया है इसे लोगों के बीच पहुंचा दिया.
कुछ लोग कह रहें हैं कि ये असंवेदनशील है, इसकी ज़रुरत नहीं थी लेकिन यही मीडिया की ड्यूटी है कि वो आप के सामने खबरों को पेश करे और विनोद खन्ना जो कभी पुरुष सौंदर्य के प्रतिमान समझे जाते थे अब गंभीर रूप से बीमार, अस्पताल में भर्ती हैं और मैं समझता हूं कि मीडिया के लिए ये एक ख़बर, नहीं, एक बड़ी ‘ख़बर’ है.
लेकिन इन्टरनेट आजकल सबके लिए सुलभ हो गया है, जिसपर 24 घंटे खबरें आती हैं. मीडिया हाउस की सफलता अब अखबारों की कितनी प्रतियां बिकीं या टेलीविजन के प्राइम टाइम को कितने दर्शक मिले इस बात पर निर्भर नहीं करती.
नंबर्स या संख्या अभी भी मायने रखते हैं लेकिन ये नंबर्स सोशल मीडिया पर खबर को कितने हिट और लाइक से गिने जाते हैं और इसी बात पर उसकी सफलता निर्धारित होती है.
और अगर मीडिया आपके पास किसी ऐसी ख़बर या तस्वीर को पहुंचाने में चूक भी जाए तो फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम जैसी जगहों पर लाईक और शेयर के लिए आतुर लोग ऐसी तस्वीरें साझा कर देते हैं, और इस बार दुर्भाग्य से निशाने पर रहे विनोद खन्ना.
अजीब बात ये है कि तस्वीर जितनी दुखद होगी उसे उतना ही शेयर किया जाएगा, लेकिन उन्हें इस हाल में देख मेरा दिल टूट गया.
एक अजीब बात यह भी है कि बॉलीवुड के वो तमाम सुपरस्टार जिन्हें मैं अपनी टीन और यंग ऐज में अपना आइडल माना करता था उनमें से सिर्फ़ विनोद खन्ना ऐसे हैं, जिन्हें मैं न जानता हूं और न ही कभी मिला हूं.
विनोद खन्ना की तुलना आप अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा और फ़िरोज खान से कर सकते हैं जो हिंदी सिनेमा के असली “माचो-मैन” थे.
हालांकि इन नामों के अलावा कुछ और भी बेहतरीन अभिनेता जैसे राजेश खन्ना, जितेंद्र और संजीव कुमार का नाम लिया जा सकता है लेकिन इनकी श्रेणी अलग है.
70 के बदलते दशक में एक लड़के की तरह मैंने भी इनकी फ़िल्मों का बेसब्री से इंतज़ार किया है और उस ज़माने में ये सभी हीरोज़ एक साल में क़रीब 5 से 6 फ़िल्मों में तो नज़र आ ही जाते थे, और वो ऐसा कर पाते थे एक ही समय पर अलग-अलग कहानियों में काम करके.
विनोद खन्ना जब अपने फ़िल्मी करियर के शीर्ष पर थे तभी उन्होनें फ़िल्म इंडस्ट्री छोड़कर भगवान रजनीश की शरण में चले गए जहां उनका नाम था स्वामी विनोद भारती.
विनोद खन्ना ने पुणे के आश्रम में पौधों को पानी देने से लेकर बरतन धोने तक का काम किया और मैंने सुना है कि इस तरह का काम या ‘श्रमदान’ उस आश्रम में एक थेरेपी की तरह कराया जाता है पर इसका आपके आध्यातमिक उत्थान पर कोई असर होता है या नहीं, इसपर मुझे संदेह है.
हालांकि मीडिया ने विनोद खन्ना के इस नए अवतार को और भी प्यार दिया और उन्हें “सेक्सी सन्यासी” कहकर बुलाना शुरु कर दिया लेकिन मुझे नहीं लगता कि विनोद को इसकी तलाश थी क्योंकि जल्द ही वो बॉलीवुड में लौट आए.
उन्हें तुरंत फ़िल्में भी मिलने लगी लेकिन वो दोबारा इससे ऊब गए और उन्होनें राजनीति में क़दम रख दिया.
एक पैर बॉलीवुड में और एक पैर पार्लियामेंट में रखे हम सभी की तरह विनोद खन्ना धीरे धीरे बूढ़े होने लगे, हां एक फ़ैन के तौर पर मैं खुश था कि कभी-कभी वो किसी फ़िल्म में दिख जाते हैं, ख़ासकर मेरे दोस्त सलमान की फ़िल्म ‘दबंग’ में जैसा मैंने उन्हें देखा था, मेरी याद में वो वहीं थे.
लेकिन तभी तक, जब तक उनकी वो दिल तोड़ देने वाली तस्वीर इस ख़बर के साथ मैंने नहीं देखी कि उन्हें कैंसर है.
अपनी फ़िल्मों मे उनकी छवि नरम दिल वाले एक कठोर व्यक्ति की रही है, एक ऐसा योद्धा, जो हर मुश्किलों से जीत जाता है.
लेकिन कैंसर से लड़ने वाले हर व्यक्ति को प्रार्थनाओं की जरुरत होती है क्योंकि इससे जूझने वाले हर 10 में से 9 लोग ने इस जंग को हारा है.
शायद पूरे देश, जिसके लिए वो हीरो रहे, कि मिलीजुली दुआओं को अपने हीरो का साथ देना होगा और एक बात का और ख़्याल रखना होगा.
हमें विनोद खन्ना को अनकी गरिमा के साथ छोड़ देना चाहिए. मेरे ख्यालों में विनोद खन्ना हमेशा एक हैंड्सम सुपरस्टार की तरह हैं और मुझे लगता है कि खुद विनोद खन्ना भी यहीं चाहेंगे कि हम उन्हें उसी तरह याद करें, और हां, अपने महान सिनेमा के वर्षों के लिए धन्यवाद, सर…मार्क