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Birthday Special:समाजवादी पार्टी के संस्थापक, पहलवानी से सियासी अखाड़े तक कैसे पहुंचे मुलायम सिंह यादव?

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नई दिल्ली : 

आज समाजवादी पार्टी के संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का जन्मदिन है. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे(Mulayam Singh Yadav) आज अपना 80वां जन्मदिन मना रहे हैं. करीब 6 दशक की सक्रिय सियासी पारी के दौरान मुलायम सिंह के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए. लेकिन यूपी की सियासत में उनका कद बरकरार रहा. 22 नवम्बर, 1939 को इटावा जिले के सैफई में जन्मे Mulayam Singh को उनके पिता सुघर सिंह पहलवान बनाना चाहते थे. इसकी तैयारी भी शुरू कर और मुलायम सिंह को अखाड़े में उतार दिया, लेकिन उनकी किस्मत में तो ‘सियासी अखाड़ा’ लिखा था. 1954 में समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने नहर रेट आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन के साथ तमाम युवा जुड़े, जिसमें 15 साल के(Mulayam Singh Yadav)भी शामिल थे. इस आंदोलन से राजनीति का ककहरा सीखने वाले मुलायम सिंह यादव की धीरे-धीरे लोहिया के अलावा और तमाम समाजवादी नेताओं से जान-पहचान और नजदीकी बढ़ी. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

साधना यादव से की दूसरी शादी
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh) के पिता का नाम सुघर सिंह और माता का नाम मूर्ति देवी है. वह अपने पांच भाई-बहनों में रतनसिंह यादव से छोटे व अभयराम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल सिंह यादव और कमला देवी से बड़े हैं. मुलायम सिंह की पहली शादी मालती देवी से हुई थी, जिनका मई 2003 में देहांत हो गया था. अखिलेश यादव मालती देवी के ही बेटे हैं. बाद में मुलायम सिंह यादव ने साधना यादव से दूसरी शादी की. प्रतीक यादव उनके दूसरे बेटे हैं.

मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक सफर 
Mulayam Singh Yadav पहली बार साल 1967 में अपने गृह जनपद इटावा की जसवंतनगर सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे. उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 28 साल थी. इसके बाद से वो लगातार साल 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचते रहे. इसी दौरान साल 1977 में वे पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने. इमरजेंसी के दौरान जेल जाने वाले मुलायम के जीवन का अहम पड़ाव साल 1989 में सामने आया, जब उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री की गद्दी संभाली. मुलायम सिंह 1985-87 तक जनता दल के अध्यक्ष भी रहे. जबकि 1980 में लोकदल के अध्यक्ष पद की कुर्सी भी संभाली. मुलायम ने साल 1992 में समाजवादी पार्टी की नींव रखी और अगले ही साल यानी 1993 में दूसरी बार यूपी के सीएम बने.

साल 1996 में उतरे केंद्रीय सियासत में 
Mulayam Singh Yadav का केंद्रीय राजनीति में साल 1996 में प्रवेश हुआ और वे पहली बार सांसद बने. इसी साल कांग्रेस पार्टी को हराकर संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई थी. एच. डी. देवेगौडा के नेतृत्व वाली इस सरकार में मुलायम रक्षामंत्री बनाए गए. हालांकि यह सरकार ज़्यादा दिन नहीं चल पाई और तीन साल में भारत को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो गई. इसके बाद मुलायम 1998-99 में भी संसद में पहुंचे. 2003 में वे तीसरी बार यूपी के सीएम बने. हालांकि 2007 में सपा को मायावती की पार्टी बसपा से बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा और वह सत्ता से बेदखल हो गई. मुलायम सिंह 2009 और 2014 में भी लोकसभा में पहुंचे.

वर्चस्व को लेकर छिड़ी परिवार में जंग  
साल 2012 में एक बार फिर सपा उत्तर प्रदेश में सत्ता में लौटी और मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) ने बेटे अखिलेश का नाम सीएम पद के लिए आगे कर दिया. अखिलेश सीएम बन गए, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान ही मुलायम सिंह के परिवार में विरासत को लेकर कड़ा संघर्ष शुरू हो गया. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से अखिलेश ने एक बैठक बुलाकर खुद को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी घोषित कर दिया और मुलायम सिंह यादव को पार्टी का संरक्षक बना दिया. अखिलेश के इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई. इसी दौरान अखिलेश का अपने चाचा शिवपाल से पद और सरकार में भूमिका को लेकर भी कड़ा संघर्ष चला, जिसका असर 2017 के विधानसभा के चुनाव पर भी हुआ. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा बुरी तरह हार गई और बाद में शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से अलग संगठन बना लिया|