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बिहार में जदयू के दो दिवसीय कार्यकारिणी की बैठक में छाए रहे ये दो अफसोस

बिहार में एनडीए सरकार के दो बड़े किरदार जदयू और भाजपा बीते दो दिनों से अपने- अपने कार्यकर्ताओं के साथ भविष्य की रणनीति बनाने में व्यस्त रहे। जदयू राज्य कार्यकारिणी की बैठक पटना में तो भाजपा का प्रशिक्षण शिविर राजगीर में दो दिनों तक चला। दोनों तरफ से एक सुर में उद्घोष भी हुआ कि एनडीए एकजुट है और नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी। साथ ही, दोनों दलों ने खुद को और मजबूत करने के एजेंडे पर चिंतन- मंथन किया।

जदयू की दो दिवसीय राज्य कार्यकारिणी व राज्य परिषद की बैठक में चुनाव में पहले से कम सीटें आने का दर्द दो अफसोस के बतौर सामने आया। पहला कि पार्टी अपने नेता नीतीश कुमार के नेतृत्व में पिछले 15 सालों में बिहार में हुए विकास कार्यों को जनता के सामने ठीक से रख नहीं पाई और सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार का सकारात्मक जवाब नहीं दे पाई। दूसरा कि चुनाव में लोजपा की भूमिका से गठबंधन को लेकर जो भ्रम पैदा हुआ, उसे समय रहते दूर नहीं किया गया।

भाजपा का नाम लिए बिना चुनाव में जदयू के साथ विश्वासघात का मसला खुलकर उठाया
राज्य परिषद में मंथन के दौरान नेताओं ने चुनाव में जदयू के साथ विश्वासघात का मसला खुलकर उठाया। हालांकि किसी ने भी भाजपा का नाम नहीं लिया। पर परोक्ष रूप से लोजपा के कारण फैले भ्रम को हार का बड़ा कारण करार दिया। समय रहते इस भ्रम को दूर नहीं करने या लोजपा को रोकने की पहल न करने का जिम्मेदार भाजपा को जरूर ठहराया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषण का भी लब्बोलुआब यही रहा। जदयू का मानना है कि जिन 72 सीटों पर उसके प्रत्याशी हारे हैं, उनमें से ज्यादातर सीटों पर वे हारे नहीं, बल्कि ब्यूह रचकर हराये गये हैं। खासतौर से 36 सीटें ऐसी हैं, जहां सीधे-सीधे लोजपा को लेकर फैले भ्रम से गठबंधन उबर नहीं पाया। जदयू को कसक है कि गठबंधन 2005 या 2010 की तरह का भाजपा के साथ रहा होता तो जिन 43 सीटों पर उसे जीत मिली है और जिन 36 परंपरागत सीटों पर उसे पराजय मिली है, दोनों को मिलाकर जदयू के पास 79 सीटें होती और जदयू तब राज्य की सबसे बड़ी पार्टी होती।

सोशल मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल कर भ्रम फैलाने वालों को करारा जवाब दें
इस दल के शीर्ष नेताओं ने अफसोस जताया कि हम अपने काम की याद जनता को दिला नहीं पाए। इसीलिए हम उसका लाभ भी नहीं ले पाए। खासतौर से सोशल मीडिया पर जो दुष्प्रचार किया गया, उसकी काट नहीं कर पाए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस दो दिनी मंथन में अपने नेताओं से यह आग्रह भी किया कि वे सोशल मीडिया के सहारे अपने दल, अपनी सरकार के 15 साल के काम को लेकर लोगों से जुड़ें। सोशल मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल करें। भ्रम फैलाने वालों को करारा जवाब दें। बैठक के आरंभिक उद्बोधन में ही उन्होंने भी माना कि वे समझ नहीं पाए कि कौन साथ है, कौन साथ नहीं है। अफसोस यह भी जाहिर हुआ कि एनडीए में सभी चीजें चुनाव के पांच माह पहले तय होनी चाहिए थी। दोस्त-दुश्मनों की पहचान हो या फिर कैंडिडेट अथवा दल के लिए चुनाव की तैयारी, कोरोना के कारण कम समय मिला।

मध्यावधि चुनाव या गठबंधन में खटास को नकारा गया
दो दिनी बैठक में अटकलों पर भी विराम लगा। मध्यावधि चुनाव या गठबंधन में खटास को भी नकारा गया। यह संदेश देने की कोशिश हुई कि एनडीए एकजुट है और बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार पांच साल चलेगी। वहीं, जदयू नेताओं ने अपने नेता की ताकत भी बताई। बहरहाल, महागठबंधन के नेताओं ने जदयू के अफसोस को जदयू- भाजपा के बीच लड़ाई के बतौर लिया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि जदयू भाजपा के झगड़े में बिहार का नुकसान हो रहा है। कांग्रेस ने तो नीतीश कुमार को महागठबंधन का संरक्षक बनने तक का न्योता दे दिया। वैसे भाजपा की ओर से जदयू की बैठक पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन, आम धारणा यह जरूर बनी है कि भाजपा और जदयू के रिश्ते में खटास है और चुनाव में कम सीटें जीतने की पीड़ा से जदयू उबर नहीं पाया है।