म्यूचुअल फंड का सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी (सिप) निवेश का सबसे सस्ता विकल्प है। इसमें 500 रुपये से भी निवेश की शुरुआत का विकल्प होता है। यही वजह है कि आम निवेशकों के बीच यह बेहद लोकप्रिय है। हालांकि, इसमें आंख मूंदकर निवेश करना आपके लिए घाटे का सौदा भी साबित हो सकता है। एसआईपी में निवेश करते समय लंबी अवधि में ऊंचा रिटर्न और फंड के प्रकार समेत चार बातों का बहुत ज्यादा असर पड़ता है जिनको नजरअंदाज करना आपको भारी पड़ सकता है।
पांच से 10 साल में कितना रिटर्न
आमतौर पर निवेशक पिछले साल या दो-तीन साल का ऊंचा रिटर्न देखकर एसआईपी में निवेश कर बैठते हैं, जबकि वित्तीय सलाहकारों का कहना है कि एसआईपी में निवेश करते समय सबसे पहले यह देखना चाहिए पांच या 10 साल में उसका औसत रिटर्न कैसा रहा है। इसी तरह ज्यादातर निवेशक नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) देखते हैं और जिस फंड का सबसे कम होता है, उसमें निवेश करते हैं। जबकि कम एनएवी ऊंचे रिटर्न की गारंटी नहीं है।
डिविडेंट नहीं, ग्रोथ प्लान चुनें
एसआईपी में डेविडेंट और ग्रोथ प्लान का विकल्प मिलता है। ग्रोथ प्लान में एसआईपी का डेविडेंट आपके खाते में नहीं आता है बल्कि दोबारा निवेश होते रहता है। इससे आपकी निवेश राशि बढ़ती जाती है। इसे ब्याज के ऊपर ब्याज की तरह देख सकते हैं। इसकी वजह से अंतिम रिटर्न काफी ऊंचा हो जाता है। वहीं डिविडेंट प्लान में डिविडेंट की राशि आपके खाते में आती है। ऐसे में ग्रोथ प्लान ज्यादा बेहतर होता है।
गिरावट में खरीदारी का अवसर
बाजार में जब गिरावट आती है तो ज्यादातर छोटे निवेशक एसआईपी बेच देते हैं, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार में गिरावट को खरीदारी अवसर समझना चाहिए। यह सस्ते में खरीदारी का अवसर होता है। इससे आप उतनी ही राशि के निवेश पर ज्यादा यूनिट खरीदने में सक्षम हो जाते हैं। साथ ही सस्ता होने से प्रति यूनिट शुल्क भी कम हो जाता है। इससे अंतिम रिटर्न ऊंचा होता है।
फंड का चुनाव सावधानी से करें
एसआईपी में फंड का चुनाव करते समय उसका प्रकार, उसका प्रबंधन, फंड मैनेजर का रिकॉर्ड और फंड का लंबी अवधि में प्रदर्शन आदि बातों का पड़ताल जरूर करनी चाहिए। इसे नजरअंदाज करने पर आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है।