भूमि विवाद से जुड़े संवेदनशील मामलों की सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर होगी। थाना और अंचल स्तर पर अधिकारी ऐसे मामलों को छुपा नहीं सकेंगे। मामले को दबाकर रखने वाले अधिकारियों पर बड़ी घटना होने पर कार्रवाई होगी। लिहाजा, दर्ज होते ही भी विवाद के ऐसे मामलों की सूचना उन्हें अनुमंडलस्तर पर अपने वरीय अधिकारी को देनी होगी।
अगर मामला ज्यादा संवेदनशील है तो उसे तुरंत जिला और विभाग के स्तर पर भेजा जाएगा। संवेदनशीलता अंचल और थाने के स्तर पर ही तय होगी। राज्य में भूमि विवाद से जुड़े संवेदनशील मामलों को थाना या अंचलस्तर पर अधिकारी दबा नहीं पाएंगे। विधि-व्यवस्था और जानमाल के नुकसान पर पड़ने वाले प्रभाव के आधार उसकी संवेदनशीलता तयकर उन्हें तुरंत इसकी सूचना वरीय अधिकारी को देनी होगी।
वर्तमान में ऐसी कोई बाध्यता नहीं होने के कारण बड़ी घटना होने के बाद ही इसकी सूचना वरीय अधिकारियों को मिलती है। अगर कोई पक्ष स्थानीय स्तर के अधिकारी की कार्रवाई से असंतुष्ट होता है तब भी उस पक्ष द्वारा सूचना वरीय अधिकारी तक जाती है। ऐसे में काफी देर हो जाती है और छोटे मामले गंभीर घटना का कारण बन जाते हैं।
लिहाजा, सरकार ने जमीन से जुड़े विवादों को जल्द निपटाने के लिए की गई कार्रवाई में इस व्यवस्था को भी शामिल कर लिया है। नई व्यवस्था में गृह विभाग द्वारा जमीन से जुड़े मामलों की मॉनिटरिंग के लिए बनने वाले सॉफ्टवेयर के माध्यम से आयुक्त, आईजी और डीआईजी स्तर के अधिकारी भी समय-समय पर अनुश्रवण करेंगे। अगर मामला बिगड़ा तो जवाबदेही उनकी भी होगी। इसके अलावा राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अधिकारी भी मामलों की समीक्षा कर उसकी रिपोर्ट गृह विभाग के अधिकारी को देंगे।
सरकार ने अधिकारियों की जिम्मेवारी भी तय कर दी
राज्य में जमीन से जुड़े विवादों को हमेशा के लिये खत्म करने के लिये सरकार प्रणाली विकसित कर रही है। इसीके तहत विवादों का वर्गीकरण और उनकी संवेदनशीलता के आधार पर यूनिक कोड नंबर देने के साथ सरकार ने अधिकारियों की जिम्मेवारी भी तय कर दी है। इसी के साथ विवादों के निस्तारण के लिये सरकार ने अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक रणनीति तय की है। सामान्य प्रकृति के मामलों का तत्काल समाधान करना होगा। जरूरत पड़ने पर अधिकारी एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करेंगे।