कोरोना काल में ऑक्सीजन का मोल हर कोई समझ गया है। आम इंसान से लेकर सरकार भी ऑक्सीजन को लेकर गंभीर है। कोरोना काल ने जो बड़ा सबक सिखाया है अब उस पर अमल करते हुए शुद्ध प्राकृतिक ऑक्सीजन की तैयारी है, जिससे शहरों में भी गांव की तरह शुद्ध प्राकृतिक ऑक्सीजन मिल सके। इसके लिए नगर विकास एवं आवास विभाग बिहार हरित क्षेत्र का जाल बिछाने की योजना में है। राज्य के हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए सभी 18 नगर निगमों के आयुक्तों, 83 नगर परिषद एवं 157 नगर पंचायतों के कार्यपालक पदाधिकारियों को शहरी वानिकीकरण का निर्देश दिया गया है।
बिहार में पहली बार नई पद्धति से पौध रोपण
राज्य में पहली बार मियावाकी पद्धति से पौधरोपण किया जाएगा। इस संबंध में बिहार राज्य के नगर निकायों में मियावाकी पद्धति द्वारा पोधरोपण के प्रस्ताव पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिर्वतन विभाग के साथ मंथन कर सहमति की मांग की गई थी जिस पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा सहमति दी गई है। इस विधि का सफल परीक्षण विश्व के अनेक भागों के साथ-साथ भारत के अन्य राज्यों के अलावा बिहार में भी किया जा चुका है। इस विधि से पौध रोपण किए जाने से इसके सकारात्मक परिणाम और वायु गुणवत्ता में सुधार तथा जल एवं मृदा संरक्षण में वृद्धि होती है। इस विधि से कम खर्च में पौधों को लगभग 10 गुना तेजी से उगाया जा सकता है एवं वृक्ष भी शीघ्र ही घने हो जाते हैं। तीन वर्ष बाद इनकी देख भाल की आवश्यकता भी नहीं होती है।
नगर निगम में 4 हजार पौध रोपण
निर्देश दिया गया है कि इस विधि से राज्य के सभी नगर निगम क्षेत्रों में कम से कम चार स्थानों पर, नगर परिषद क्षेत्रों में कम से कम दो हजार स्थलों पर तथा नगर पंचायत क्षेत्रों में कम से कम एक हजार स्थल पर समुचित आकार के उपयुक्त भूमि का चयन कर पौधरोपण किया जाए। 18 नगर निगमों में न्यूनतम 72, 83 नगर परिषदों में न्यूनतम 166 और 157 नगर पंचायतों में न्यूनतम 157 हरित क्षेत्रों का निर्माण किया जाएगा। इस प्रकार राज्य के शहरी क्षेत्रों में कम से कम 395 हरित क्षेत्रों का निर्माण किया जाएगा।
मियावाकी पद्धति से पौध रोपण का निर्देश
- पेड़ पौधों के बीच कोई निश्चित दूरी नहीं रखनी चाहिए।
- वनीकरण से पहले जमीन को उपजाऊ बनाने प्रयास करने चाहिए।
- पेड़-पौधों, वनस्पतियों, झाड़ियों और वृक्षों का मिश्रित सघन रोपण किया जाना चाहिए।
- एक हेक्टेयर में 10,000 पौधे लगाये जा सकते हैं।
- स्थानीय प्रजातियों के बीज को रोपकर वनों को और घना बनाया जा सकता है।
- पौधों को रोपने के बाद कम से कम अगला बरसाती मौसम आने तक उनकी सिंचाई की जानी चाहिए।
- खर-पतवार की रोकथाम व मिट्टी में वाष्पन से नमी की कमी दूर करने को खर-पतवार बिछानी चाहिए।
- नालियों में पानी बहाकर सिंचाई करने के स्थान पर स्प्रिंकलर विधि अपनाई जानी चाहिए।
- देशी प्रजातियों के पौधों का चयन किया जाना चाहिए। बड़े वृक्ष जैसे बरगद, पीपल जिनका फैलाव बहुत बड़ा होता उन्हें नहीं लगाना चाहिए।
- 2 से 3 वर्ष तक इस वन की देखभाल करनी होगी इसके बाद यह आत्मनिर्भर हो जाएगा।
- इस तकनीक के माध्यम से मानव निर्मित वन लागाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
मियावाकी पद्धति से पौध रोपण का लाभ
- इस सिद्धांत के द्वारा 2 फीट गुणा 30 फीट भूमि पर 100 से भी अधिक पौधे लगाये जा सकते हैं।
- इसमें कम खर्च में पौधे को 10 गुना तेजी से उगाया जा सकता है, जिससे वृक्ष शीघ्र ही घने हो जाते हैं।
- पौधों के पास-पास लगाने से इन पर खराब मौसम का असर नहीं होता है, न ही गर्मी में नमी का अभाव होता है जिससे ये हरे-भरे रहते हैं ।
- इससे पौधों में दुगनी तेजी से वृद्धि होती है और तीन वर्ष बाद उनकी देखभाल नहीं करनी पड़ती है ।
- कम क्षेत्र में घने वृक्ष ऑक्सीजन बैंक का काम करते हैं। इस तकनीक का प्रयोग न केवल वनों के लिए बल्कि आवासीय परिसरों, विद्यालयों, कार्यालयों तथा शहरी खाली भूमि इत्यादि में भी किया जा सकता है।
क्या है मियावाकी वन
मियावाकी एक जापानी वनीकरण विधि है। इसमें पौधों को कम दूरी पर लगाया जाता है। पौधे सूर्य का प्रकाश प्राप्त कर ऊपर की ओर वृद्धि करते हैं। इस पद्धति से सीमित संसाधनों में पौधारोपण कर तीव्रता से हरियाली बढ़ाई जा सकती है।