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देव दीपावली: काशी में अर्ध चंद्राकार गंगा घाटों पर आज दिखेगा अलौकिक नजारा, देवताओं के स्वागत में 84 घाटों पर जलेंगे 15 लाख दीप

देव दीपावली पर आज शाम  काशी के अर्ध चंद्राकार घाटों पर अलौकिक दृश्य दिखाई देगा। 84 घाटों पर 15 लाख से ज्यादा दीपक एक साथ जगमगाएंगे। मां जाह्नवी के अर्द्धचंद्राकार तट देव दीपावली की रात स्वर्णिम आभा से दैदीप्यमान होंगे। 84 घाट, कुंड, गलियां और घर की चौखट पर देवताओं के स्वागत में दीप जलाए जाएंगे।

कार्तिक पूर्णिमा की रात सुरसरि के तट पर देवों की दीपावली की आभा चंद्रमा को भी चुनौती देगी। अस्सी से राजघाट तक दीपों की शृंखला के चंद्रहार की झिलमिलाती रौशनी से घाटों का शृंगार होगा। शुक्रवार शाम को देव दीपावली महोत्सव का उल्लास उत्सवधर्मी शहर बनारस के जन-मन पर नजर आएगा।

अलौकिक, अद्भुत और भव्य देव दीपावली
देर रात तक देव दीपावली की तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया। काशी के घाट, कुंड, सरोवर, मंदिर और घरों की चौखट भी रौशन होगी। गंगा के तट से लेकर गंगा पार रेती तक दीपों की लड़ियां जगमग होंगी। गंगा पार डोमरी में लगातार दूसरे साल भी देव दीपावली का विस्तार नजर आएगा। अलौकिक, अद्भुत और भव्य देव दीपावली के नजारे को आंखों में समा लेने के लिए काशी की जनता उमड़ेगी। 

मातृशक्ति उतारेंगी गंगा की आरती

देव दीपावली 2021

बनारस की देवदीपावली तो हर साल नित नए प्रतिमान गढ़ रही है। 15 सालों की अनवरत प्रवाहमान प्रकाश मणिमाला की परंपरा शुक्रवार को निभाई जाएगी। सुरसरि के तट पर पहली बार मां गंगा की आरती मातृशक्ति स्वरूपा कन्याएं उतारेंगी। दशाश्वमेध घाट पर गंगोत्री सेवा समिति और गंगा सेवा निधि की ओर से आयोजित गंगा आरती में कन्याएं आरती का प्रतिनिधित्व करेंगी। 

गंगा के तट पर देव दीपावली की भव्यता श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र होगी। कहीं श्रीकृष्ण लीला, कहीं राम लीला, कहीं अहिंसा का संदेश तो कहीं संगीतकारों के कार्यक्रम, कहीं लेजर शो और मां गंगा की महाआरती की भव्यता का नजारा मनमोहक होगा।

इन घाटों पर विशेष तैयारी
तुलसी घाट पर कंस वध की लीला और कंस का पुतला दहन, जैन घाट पर अहिंसा परमो धर्म का संदेश देती रंगोली, प्रभु घाट पर चित्रों, चेतसिंह घाट पर लेजर शो में काशी की संस्कृति, मंदिर, घाट और काशी विश्वनाथ के दर्शन होंगे। महानिर्वाणी घाट, हरिश्चंद्र घाट, शिवाला घाट पर दीयों के जरिए शिवजी का दर्शन, दशाश्वमेध घाट पर इंडिया गेट पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित होगी।

रोशन होगी देवताओं की राह, मंदिरों में अर्पित होंगे श्रद्धा के दीप

देव दीपावली

देव दीपावली पर बनारस में गंगा, वरुणा और असि के तट पर दीपोत्सव का अद्भुत नजारा होगा। देवताओं की राह रौशन करने के साथ ही दीपों से सजी भव्य रंगोलियों की शृंखलाएं भी आकर्षण का केंद्र होंगी। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में भी मंदिर, घाट और नदियों के किनारों को रौशनी से सजाने की तैयारियां चल रही हैं।

देव दीपावली पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर शूलटंकेश्वर, रामेश्वर, और पंचक्रोशी के परिक्रमा पथ भी रौशन होंगे। पंचक्रोशी परिक्रमा पथ के मंदिर, कुंड, तालाब और सरोवरों के किनारे देव दीपावली की छटा बिखरेगी।

दीपों से सजावट की तैयारियां
कैथी स्थित मार्कंडेय महादेव घाट, गौरीशंकर महादेव घाट, चन्द्रावती घाट व गौरा उपरवार घाट पर भी लोगों ने दीपों से सजावट की तैयारियां कर रखी हैं। संत रविदास मंदिर, संत कबीरदास की जन्मस्थली समेत मठ, मंदिर और आश्रम भी देव दीपावली का उल्लास मनाएंगे। रामेश्वर तीर्थ धाम का मंदिर व वरुणा घाट भी दीपों से जगमग होगा।

वरुणा नदी में श्रद्धालु दीप अर्पित करेंगे। कर्दमेश्वर, भीमचंडी, शिवपुर, कपिलधारा में भी देव दीपावली की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। चिरईगांव क्षेत्र के जाल्हूपुर स्थित श्री कच्चा बाबा मंदिर प्रांगण में कार्तिक पूर्णिमा के दीपोत्सव की तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया।

क्षेत्र के जाल्हूपुर, विशुनपुरा, चांदपुर, रामचंदीपुर, शंकरपुर, पचरांव, गौराकलां आदि गांवों के श्रद्धालुओं ने मंदिर परिसर में दीप जलाने के साथ ही रंगोली बनाने की तैयारियां कर रखी हैं। सारनाथ के मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर भी दीपोत्सव का साक्षी बनेगा। सारनाथ स्थित सारंगनाथ महादेव मंदिर परिसर रोशनी से आलोकित होगा।
हजारा दीप जलाकर हुई थी देव दीपावली की शुरुआत

देव दीपावली

गंगा तट पर पूर्णिमा पर मां गंगा को दीपदान की परंपरा रही है। वर्ष 1986 में पूर्व काशी नरेश विभूति नारायण सिंह ने धर्मगुरुओं की सलाह पर पंचगंगा घाट स्थित हजारा दीप को जलाकर देव दीपावली की शुरुआत कराई थी। वहीं प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर सबसे पहले आरती की शुरुआत वर्ष 1991 से हुई है जबकि 14 नवंबर वर्ष 1997 से गंगा आरती यहां पर प्रतिदिन शुरू हुई।

गंगा तट पर पूर्णिमा पर मां गंगा को दीपदान की परंपरा रही है। वर्ष 1986 में पूर्व काशी नरेश विभूति नारायण सिंह ने धर्मगुरुओं की सलाह पर पंचगंगा घाट स्थित हजारा दीप को जलाकर देव दीपावली की शुरुआत कराई थी। वहीं प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर सबसे पहले आरती की शुरुआत वर्ष 1991 से हुई है जबकि 14 नवंबर वर्ष 1997 से गंगा आरती यहां पर प्रतिदिन शुरू हुई।
त्रिपुरासुर का हुआ था अंत

देव दीपावली

काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री पं. दीपक मालवीय ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं की विनती पर भगवान शिव ने तीनों लोक में आतंक का पर्याय बने त्रिपुरासुर का वध किया था। देवताओं ने स्वर्गलोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था। तब से कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाने की प्रथा लोक चलन में आई।

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