होली का जिक्र आते ही बरबस जेहन में जग जाहिर राधा-कृष्ण की पारंपरिक बरसाने की लठमार होली का ध्यान आ जाता है। यहां की होली में ऐसा अनोखा प्रेम रंग बरसता है, जिसको देखने के लिए दुनिया लालायित नजर आती है।
सदियों पुरानी परंपरा
राधा कृष्ण की अलौकिक प्रेम से पगी लठमार होली में नंदगांव के ग्वालों पर ज्यों-ज्यों बरसाना की ब्रजगोपियां लाठियां बरसाती हैं, त्यों-त्यों होली का रंग गहरा हो जाता है। तभी तो कहते हैं की बरसाने की होली नहीं देखी तो कुछ नहीं देखा। सदियों से चली आ रही लठ और ढाल की होली का आज भी वही चलन चला आ रहा है जो द्वापर में कान्हा ने राधा के लिए बरसाना में लठमार होली खेली थी। उसी परंपरा को आज भी नंदगांव-बरसाना के लोग निभाते चले आ रहे हैं।
विदेशी भी उठाते हैं इस पर्व का आनंद
कान्हा रूपी हुरियारे और राधा रूपी हुरियारिनें लाठी व ढाल के संग होली खेलते हैं। यहां की होली विदेशी पर्यटकों को भी आनंद में डूब जाने को मजबूर कर देती है। अद्भुत अलौकिक होली ब्रज में सवा महीने खेली जाती है। ऐसी अनोखी होली में कान्हा की ढाल के साथ हुरियारें व राधा की लाठियों के साथ हुरियारिनें रंगीली गली में होली खेलते हैं।
ढाल से रोकते हैं लाठियों के प्रहार
महिलाएं लाठियां बरसाती हैं, पुरुष लाठियों के प्रहारों को ढालों पर सहते हैं। जितनी तेजी से लाठियों का प्रहार हुरियारों पर हुरियारिनें करती हैं, त्यों-त्यों होली का रंग गहरा होता जाता है। जब नंदगांव के हुरियारे बरसाना की हुरियारिनों को ब्रज भाषा मे हास-परिहास करते हैं तो वातावण में प्रेम रंग में मिठास बढ़ जाती है। देश दुनिया इसकी दीवानी नजर आती है। चारों तरफ अबीर गुलाल की वर्षा, लाठियों की तड़ातड़ जब बरसाना की गलियों में होती तब द्वापर जैसा माहौल लगने लगता है।