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चुरमुरा के हाथियों को पहनाई गई भारी-भरकम जैकेट

हाड़ कंपा देने वाली ठंड में गजराज भी विचलित हैं। उन्हें सर्दी से बचाने के लिए गर्म तासीर के भोजन के साथ रहने के लिए तीन ओर से कवर्ड टिन शेड को उपलब्ध कराए ही गए हैं, भारी-भरकम जैकेट भी पहनाए जा रहे हैं। मथुरा के फरह स्थित चुरमुरा एलीफैंट रेस्क्यू सेंटर पर 60 साल की आशा के लिए आई जैकेट उसे पहनाई गई। उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुकीं सूसी, लाकी, फूलकली, ईका व केडी के लिए भी जैकेट तैयार किए जा रहे हैं। कारीगर इनके लिए कंबल व रेग्जीन का इस्तेमाल करते हैं।21_01_2017-asha-jack

चुरमुरा एलीफैंट रेस्क्यू केंद्र में 13 हथिनी व सात हाथी हैं। इनकी जिंदगी लगभग 65-70 साल ही होती है। ज्यादातर बूढ़े और बीमार हैं, जबकि छह हथिनियों की उम्र तो 60 साल से ऊपर है। इस बार तापमान बहुत नीचे चला गया। इस कारण इन्हें बहुत परेशानी हो रही है। इनका तापमान भी मनुष्य जितना ही होता है। इंसानों की तरह इन्हें भी ठंड सताती है। ऐसे में बूढ़ी हथिनियों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। कारीगरों द्वारा हर एक के लिए छह कंबल व 20 मीटर रेग्जीन से जैकेट बनाई जा रही हैं। एक जैकेट तैयार होने में पांच दिन लग जाते हैं। प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. बैजू राज ने बताया कि इसके साथ ही इन्हें गर्म तासीर वाला भोजन दिया जा रहा है। खाने के लिए गुड़, लहसुन, अदरक और बाजरे का दलिया दिया जाता है। ठंड से बचाने के लिए विशेष टिन शेड बनाए गए हैं, जो तीन तरफ से कवर्ड हैं। रात में सभी हाथियों के ऊपर कंबल डाले जाते हैं। इसके अलावा हर हाथी के शेड में चार सोलर लाइट लगी हैं। वाइल्ड लाइफ-एसओएस द्वारा 2010 में यह संरक्षण केंद्र शुरू किया गया। 55 कर्मचारियों का स्टाफ हाथियों की देखरेख करता है।

हाथियों की दिनचर्या

सेंटर के इंचार्ज नरेश ने बताया कि हाथियों को छह बजे खाना दिया जाता है। सात बजे वे घूमने जाते हैं। 11 बजे एक टारगेट ट्रेनिंग, 12 बजे फल खाने के बाद सभी हाथी बाड़े के अंदर मस्ती करते हैं। दोपहर 3:30 बजे फिर घूमने जाते हैं, 4:30 बजे फल खाने के बाद खाना। शाम 6:30 बजे दलिया और रात 8:00 बजे गन्ना दिया जाता है।

इतना आता खर्च

एक हाथी को रोजाना सौ किलो बरसीम, 150 किलो गन्ना, 40 किलो फल, 10 किलो दलिया व 150 लीटर पानी दिया जाता है। एक हाथी पर एक दिन का खर्चा करीब 3500 रुपये आता है। पूरे कैंपस का एक दिन का खर्च सवा लाख से डेढ़ लाख रुपए के बीच है। एनजीओ द्वारा ही इसका इंतजाम किया जाता है। कुछ दानदाता भी मदद करते हैं। यह सेंटर 25 एकड़ जमीन में फैला है। सबसे बड़ी समस्या हाथियों को घुमाने में आती है। हाथियों को एक दिन में घूमने के लिए करीब 20 किलोमीटर एरिया चाहिए। सेंटर के सामने वन विभाग की जगह खाली पड़ी है, उसी में हाथियों को घुमाया जाता है।