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Samajwadi Party : यूपी के साथ एमपी और राजस्थान की चुनावी तैयारी में जुटी सपा, नई सियासत की जुगत

सार

Samajwadi Party : इन दोनों राज्यों में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में उतरकर पार्टी अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी है। इन दोनों राज्यों में तैयार होने वाले तीसरे मोर्चे के जरिए 2024 की सियासत साधने की भी कोशिश चल रही है।

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samajwadi party – फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार

सपा यूपी के साथ अब एमपी और राजस्थान में भी चुनाव तैयारी में जुटी है। इन दोनों राज्यों में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में उतरकर पार्टी अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी है। इन दोनों राज्यों में तैयार होने वाले तीसरे मोर्चे के जरिए 2024 की सियासत साधने की भी कोशिश चल रही है।

सपा को यूपी विधानसभा चुनाव में भले ही सत्ता नहीं मिली है, लेकिन वोट प्रतिशत 30 से ऊपर चला गया है। अब पार्टी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी है। इसी को ध्यान में रखकर पार्टी पड़ोसी राज्यों में अपनी पैठ बढ़ाने के अभियान में लगी है। एमपी व राजस्थान में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में वह अपनी उपस्थिति दर्ज कर भविष्य की सियासी पृष्ठभूमि तैयार करने की ख्वाहिश रखती है। इन दोनों राज्यों में पार्टी यादव-मुस्लिम बहुल सीटों पर नए सिरे से खाका तैयार कर रही है। प्रदेश कमेटी के साथ राष्ट्रीय टीम भी इन दोनों राज्यों को लेकर मंथन में जुटी है।  

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ग्वालियर पहुंचकर पार्टी के एमपी में चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया है। सपा अभी तक महाराष्ट्र, उत्तराखंड में चुनाव लड़ती रही है। एमपी और राजस्थान में सपा को कई बार कामयाबी मिली है। ऐसे में इन दोनों राज्यों के चुनाव में वह हिस्सा लेकर अन्य राज्यों में भी वोट प्रतिशत बढ़ाने की तैयारी है। पार्टी का मानना है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में बनने वाला तीसरा मोर्चा वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में गोलबंदी का आधार बन सकता है।

एमपी की 55 सीटों पर फोकस
सपा एमपी की 55 सीटों पर फोकस कर रही है। पार्टी के प्रदेश महासचिव डॉ. मनोज यादव बताते हैं कि इन सीटों पर यादव-मुस्लिम गठजोड़ मजबूत है। यहां सक्रिय छोटे दलों के साथ गठबंधन कर पार्टी तीसरी ताकत के रूप में खुद का भविष्य देख रही है। ग्वालियर में सपा अध्यक्ष ने भी इशारा किया है। ग्वालियर के साथ छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़ सहित करीब 15 जिलों की 80 विधानसभा क्षेत्र में यादव निर्णायक भूमिका में हैं। यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस भी इस बिरादरी को सत्ता में बराबर भागीदारी देती रही है। 

यहां 1998 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 94 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिसमें रौन, दतिया, चांदला और पवई में जीत मिला। इसी तरह 2003 में सात सीट जीते। छतरपुर, चांदला, मैहर, गोपदबनास, सिंगरौली, पिपरिया और मुल्ताई की सीट से उत्साहित सपा ने 2008 में 187 उम्मीदवार उतारे, लेकिन सिर्फ निवाड़ी में जीत मिली। 2013 विधानसभा चुनाव में सपा खाता नहीं खोल पाई थी। 2018 में एक सीट पर जीत  मिली।

राजस्थान में दिखा चुकी है ताकत
राजस्थान के अलवर और हरियाणा व यूपी के सीमावर्ती इलाकों में जातिगत गणित सपा के पक्ष में रहे हैं। राजस्थान में पिछले चुनाव में सपा ने कांग्रेस से गठबंधन कर चुनाव लड़ने की तैयारी की थी, लेकिन ऐन मौके पर गठबंधन टूट गया और सपा दर्जनभर से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ी। इस बार राजस्थान में गैर भाजपा और गैर कांग्रेस कांग्रेसी दलों का नया गठबंधन बन रहा है। यहां कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ तीसरा मोर्चा तैयार हो रहा है। इसमें सपा अहम भूमिका में है।