संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय प्रशासन ने दुर्लभ पांडुलिपियों को चरणबद्ध तरीके से ऑनलाइन करने का निर्णय लिया है। प्रथम चरण में हजार साल पुरानी हस्तलिखित श्रीमद्भागवत गीता को ऑनलाइन किया जाएगा। बेहतर परिणाम मिलने पर अन्य पांडुलिपियां विभिन्न चरणों में ऑनलाइन की जाएंगी। हालांकि बिना अनुमति इन्हें डाउनलोड करने का अधिकार किसी को भी नहीं होगा। प्राच्य विद्या के प्राचीनतम केंद्र संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में इंटरनेट की विशेष व्यवस्था की जाएगी ताकि पांडुलिपियां ऑनलाइन की जा सकें।
स्वर्णाक्षरयुक्त सचित्र रास पंचाध्यायी भी संरक्षित
सरस्वती भवन पुस्तकालय में एक हजार साल पुरानी हस्तलिखित श्रीमद्भागवत गीता है जो देश की प्राचीनतम पांडुलिपियों में एक है। इसी क्रम में स्वर्ण अक्षरों वाली पांडुलिपि कमवाचा (वर्मी लिपि) व रास पंचाध्यायी (सचित्र) भी यहीं संरक्षित है। यहां वेद, कर्मकांड, वेदांत, सांख्ययोग, धर्मशास्त्र, पुराणेतिहास, ज्योतिष, मीमांसा, न्याय वैशेषिक, साहित्य, व्याकरण व आयुर्वेद की दुर्लभ पांडुलिपियां रखी हैं। इसके अलावा बौद्ध, जैन, भक्ति, कला व संगीत से जुड़ी पांडुलिपियां भी संरक्षित हैं।
इनमें अधिकांश देवनागरी सहित बांग्ला, उडिय़ा, मैथिली, गुरुमुखि, शारदा, अरबी-फारसी लिपि में कागज, भोजपत्र, काष्ठ पत्र अथवा शिलापत्र पर लिखी गई हैं। यही नहीं, गोविन्द भट्ट कृत ऋग्वेद संहिता भाष्य, श्रुतिविकाश सायणाचार्य कृत ऋग्वेद संहिताभाष्य से प्राचीन है। ज्ञान व शोध के लिहाज से विद्यार्थियों के लिए भी यह संग्रह काफी उपयोगी है। संस्कृत विश्वविद्यालय सरस्वती भवन पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि इंदिरा कला केंद्र, नई दिल्ली द्वारा पांडुलिपियों की माइक्रो फिल्म पहले ही तैयार कराई जा चुकी है। समस्त पांडुलिपियां 285 डीवीडी में मौजूद हैं। अब इन्हें ऑनलाइन करने की तकनीकी प्रक्रिया पर काम चल रहा है।