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लालू ने पढ़ा शेर, मोहब्बत में आंसू बहाने नहीं आता

06_02_2017-lalurahatलालू यादव का शायराना अंदाज सुनकर लोगो दंग रह गए। लालू ने जब अपने रंग में शेर पेश किया तो सुनने वालों ने वाह-वाह किया।

पटना [जेएनएन]। फरवरी का महीना और शायरों की महफिल। वसंत में अल्फाज अपने आप शायराना हो जाते हैं। नज्म-ए-नीलांशु सह बज्म ए मुशायरा के आयोजन के मौके पर रविवार को बात सियासत से शुरू हुई। फिर जुल्फ, जंगल और जंग से गुजरते हुए इश्क तक पहुंच गई।

मशहूर शायर राहत इंदौरी एवं राजद प्रमुख लालू प्रसाद की मौजूदगी में युवाओं ने भी परहेज नहीं किया। हर लफ्ज पर कायदे की दाद दी। मूड देखकर शायरी का रुख मोडऩे में माहिर राहत इंदौरी ने सियासी लोगों के बीच श्रोताओं को सियासत छोड़कर इश्क करने की नसीहत दी।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लालू प्रसाद थे तो शुरुआत भी उन्हीं से हुई। कम लफ्जों में बड़ी बात कह दी। पांच राज्यों में चुनाव प्रक्रिया जारी है। ऐसे में सियासत की बात तो होनी ही थी। मुनव्वर राणा की गैरमौजूदगी में

उनके नज्म को लालू ने अपने जज्बात में यूं पेश किया-

मोहब्बत में उन्हें आंसू बहाने नहीं आता।

बनारस में रहके भी पान खाने नहीं आता।

लालू ने अपने नज्म में किसी का नाम नहीं लिया, किंतु सियासत पसंद लोगों ने संकेत को समझा और जमकर तालियां पिटी।

भाजपा नेता किरण घई की मौजूदगी में श्रोताओं को लालू के सियासी मोड़ से खींचकर राहत इंदौरी ने अपनी राह पर लाने की कोशिश की।

आप हिन्दू, मैं मुसलमान, वह सिख, वह ईसाई

यार छोड़ो, यह सियासत है, चलो इश्क करें।

इसके पहले नज्म की परिभाषा एवं उर्दू के शब्दों में उलझे श्रोताओं को राहत इंदौरी ने अपने शायरी को समझने के लिए ज्यादा दिमाग खपाने से मना किया। शायरों की महफिल की रवायतों के विपरीत उन्होंने दिन में शेर पढऩे को सही ठहराते हुए कहा:- यार, रात का इंतजार कौन करे-आजकल दिन में क्या नहीं होता।

इंदौरी ने समझ लिया था कि श्रोताओं में कालेज के युवाओं की तादात भी कम नहीं है। लिहाजा उन्होंने लफ्जों को भी उसी राह की ओर मोड़ दिया।

फैसला जो कुछ भी हो, मंजूर होना चाहिए

जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए।

श्रोता जब इश्क की दरिया में डूबने-उतराने लगे तो इंदौरी ने अपने अगले नज्म से उन्हें किनारे तक खींचकर लाने में भी देर नहीं की।

इश्क ने गूंथे थे जो गजरे नुकीले हो गए।

तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए।

फूल बेचारे अकेले रह गए अब साख पर,

गांव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए।

इंदौरी ने सियासत के साथ-साथ मजहबी आडंबर को भी नहीं बख्शा। उन्होंने खुलकर चोट की।

सबको रुसवा बारी-बारी किया करो।

हर मौसम में फतवे जारी किया करो।

बज्म ए मुशायरा में नीलांशु रंजन, आराधना प्रसाद, काशिम खुर्शीद, संजय कुंदन एवं निविड़ शिवपुत्र ने भी अपने शेर पढ़े। मौके पर एमएलसी रणविजय सिंह एवं पत्रकार सुधांशु रंजन समेत कई लोग मौजूद थे। इसके पहले मुख्य अतिथि लालू प्रसाद ने नीलांशु रंजन के नज्मों का लोकार्पण एवं उनके नज्मों पर आधारित वेबसाइट का उद्घाटन किया।