
कुछ समय पहले तक इन बच्चों को ‘क’ का भी ज्ञान नहीं था लेकिन सुशील कुमार की मेहनत के चलते आज ये बच्चे किताब पढ़ने लायक बन गए हैं। सुशील बताते हैं कि उन्होंने एक साल पहले इस बस्ती के बच्चों को पढ़ाने का फैसला लिया। दो शिक्षक नियुक्त किए। पहले कम बच्चे आते थे, लेकिन धीरे-धीरे हालात बदले। अब सौ से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं। साल भर पहले अक्षर ज्ञान से भी दूर रहे ये बच्चे अब पढ़-लिख रहे हैं। वहीं इन बच्चों के माता पिता का कहना है कि आज अपने बच्चों को पढ़ते-लिखते देखकर उन्हें बेहद खुशी होती है। बच्चों को पढ़ा रहे सुशील खुद भी पीएचडी कर रहे हैं। वे कहते हैं कि शिक्षा से ही समाजिक बदलाव संभव है। बता दें कि जब सुशील कुमार केबीसी में आए थे तब वह खुद एक डाटा ऑपरेटर की नौकरी करते थे।