क्या अयोध्या मसले का हल आपसी बातचीत से हो सकता है? कम से कम सुप्रीम कोर्ट एक और कोशिश की पैरवी कर रहा है। अयोध्या मामले पर विवाद कई दशकों से चल रहा है और कई बार इस पर बातचीत के जरिए सुलह की कोशिशें भी हुई हैं लेकिन सब नाकाम रही। अब एक हल की आखिरी उम्मीद सुप्रीम कोर्ट से ही है। लेकिन खुद चीफ जस्टिस को लगता है कि आस्था के मामले कोर्ट के बाहर ही सुलझाने चाहिए। यहां तक की चीफ जस्टिस खेहर ने इस मामले में खुद बातचीत कराने का सुझाव दिया है। लेकिन सवाल है कि इतना विवादित मामला क्या बिना कोर्ट के फैसले के सुलझाया जा सकता है?
सालों से कोर्ट में फंसे अयोध्या मसले का हल क्या कोर्ट के बाहर हो सकता है ? सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐसा ही सुझाव दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अदालत से बाहर आपसी बातचीत से मामला सुलझाने की सलाह दी है। कोर्ट ने इस मामले पर मध्यस्थता की पेशकश भी की है। कोर्ट ने ये टिपण्णी सुब्रमणियन स्वामी की याचिका के संदर्भ में की है जिसमें उन्होंने विवादित स्थल पर जल्द से जल्द फैसला करने की मांग की है।
लोकनायक तुलसीदास जी की ये अमर पंक्तियां रामचरितमानस से ली गई हैं. आज ये बहुत प्रासंगिक नजर आती हैं. देखिए तर्क-वितर्क तो राम मंदिर मसले पर 1948 से चला आ रहा है और इसका अंत दिखाई नहीं दे रहा था.
जस्टिस केहर का यह कदम बहुत ही ज्यादा साहसी है. उनको मालूम है कि दीवानी मुकदमों का फैसला वर्षों तक लटका रहता है, कभी-कभी सदियों तक तक लग जाते हैं. ऐसा ही कुछ राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मसले में हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक संवेदनशील और भावनाओं से जुड़ा मसला है और अच्छा यही होगा कि इसे बातचीत से सुलझाया जाए. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों पक्षों को ‘थोड़ा दे, थोड़ा ले’ का रुख अपनाना होगा ताकि इस मुद्दे का कारगर हल निकल सके. यह समझदारी भरा सुझाव लगता है.
बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह को हाथों हाथ लिया है और दूसरे राजनीतिक दलों ने भी कोर्ट की पहल का स्वागत किया है।
राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन का काल
आइए इसे थोड़ा राजनीतिक दृष्टिकोण से देखने का भी प्रयास करते हैं. उत्तर प्रदेश आज हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला बनकर उभरा है. योगी आदित्यनाथ इसके नए मुखिया हैं. ये राम मंदिर आंदोलन से शुरू से ही जुड़े रहे हैं. अपने सबसे कमजोर दिनों में भी इन्होंने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के मुद्दे से डिगे नहीं. आज तो वह इस स्थिति में हैं कि उनका एक शब्द या बयान चीजों को अपनी दिशा में मोड़ सकता है.
हम सब आज परिवर्तन काल के साक्षी हैं. यूपी की राजनीति बदल गई. विधानसभा की संरचना बदल गई और न्यायालय का नजरिया भी बदल गया. अब कोर्ट भी सर्वमत बनाने की कोशिश में है. और सच मानिए ये शुभ संकेत हैं.
भारतीय संस्कृति के अनुकूल पहल
राजनीतिक दृष्टिकोण के अलावा मुद्दे का एक सामाजिक पहलू भी है. फैजाबाद के मोहम्मद हाशिम अंसारी ने बाबरी मामले में पहली याचिका दायर की थी. लेकिन पिछले साल उनका इंतकाल हुआ तो जिले के सभी आरएसएस और भगवाधारी नेता भी उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए थे. बहुत कम लोगों को मालूम है कि हिंदू पक्ष के वादी और हाशिम अंसारी मामले एकसाथ कोर्ट जाया करते थे.
आप बनारस के घाटों पर चले जाइए, तो वहां हिंदू-मुस्लिम एकसाथ स्नान करते नजर आते हैं. अयोध्या में सरयू के जल का आनंद संत-महंत के साथ मुल्ले-मौलवी भी लेते हैं.
यही हिंदुस्तान की सामाजिक खूबसूरती है. कालांतर में यह सामाजिक खूबसूरती राजनीतिक कारणों से विद्रूप हो गई थी. आज फिर में उसमें बदलाव के संकेत हैं. अब लगता है कि समस्या सुलझ जाएगी.