नई दिल्ली. नवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा देवी की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, माना जाता है कि इन्होंने ब्रह्मांड की रचना की है। जब सृष्टि में चारों ओर अंधकार था और कोई भी जीव-जंतु नही था। तब मां ने सृष्टि का रचना की।
इसी कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। आदिशक्ति दुर्गा के कूष्माण्डा रूप में चौथा स्वरूप भक्तों को संपत्ति सुख प्रदान करने वाला है। कूष्मांडा का मतलब है कि अपनी फूलों सी मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया है वही हैं मां कूष्माण्डा। मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं।
इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। इस दिन जहां तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए।
जिससे माताजी प्रसन्न होती हैं और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। जानिए पूजा विधि के बारे में दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्मांडा की अच्छी तरह से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को अनहत चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए। अगर इनकी पूजा सच्चे मन से की जाए, तो आपको मां जरुर हर क्षेत्र में सफलता देगी।
माता कूष्माण्डा की पूजा उसी तरह की जाती है जैसे कि देवी ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें विराजमान देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं।