हाल ही में घाटी में हुई बैंक डकैतियों पर ध्यान दिया जाए तो साफ पता है कि स्थानीय युवाओं के उग्रवादियों के साथ जुड़ने से धाटी में कैश और हथियारों की कमी हो गई हैं। बीते 6-7 महीने घाटी में 13 डकैतियों और लूट की खबर सामने आई हैं, जिसमें से 9 वारदातों की तारीख नोटबंदी के बाद की है। 8 नवंबर के बाद हुई घोषणा के बाद से ही घाटी में ऐेसे संगठनों के पास पैसा कम है, जो इसका इस्तेमाल युवाओँ को भड़काने में करते हैं।
लूट के ज्यादार मामलों में उन बैंकों को निशाने पर लिया गया, जिनका नेटवर्क काफी बड़ा था। 21 नवंबर 2016 से 3 मई 2017 तक जेएंडके बैंक, एसबीआई, एक्सिस बैंक, इलाकी देहात बैंक से करीब 91 लाख रुपये लूटे जा चुके हैं। 9 प्रयासों में से 7 बार सिर्फ जेएंडके बैंक की बडगाम, अनंतनाग औऱ कुलगाम शाखाओं को निशाने पर लिया गया है। साथ ही शोपियान और पुलवामा में भी इलाकी देहात बैंक और एसबीआई को निशान पर लिया गया है।
पाकिस्तान भी नहीं कर पा रहा मदद
इसके अलावा कैश और हथियारों की छोटी-मोटी लूट की वारदात में घाटी में दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, “8 नवंबर से पहले उग्रवादियों के पास काफी संख्या में नकदी थी और उस समय इनकी संख्या भी ज्यादा नहीं थी। पाकिस्तान भले ही इस तरह के आतंकवाद को स्पॉन्सर कर, मगर उन्हें पैसा भारत का ही चाहिए। ऐसे में वो लूटपाट की घटनाओं को अंजाम देते हैं।”
इसके अलावा अधिकारी ने बताया, “सीमापार से आ रहे मैसेजों में उनका प्रॉपोगेंडा साफ नजर आ रहा है। उनके संदेशों के अनुसार लूट का किसी को अपना बनाना धर्म में सही बताया गया है। वो इसे ‘माल-ए-गनीमत’ मान रहे हैं।” साथ ही पाकिस्तान से की जाने वाली मदद सामान के रूप में ज्यादा होती है, मगर अपने खर्चों के लिए उन्हें कैश की जरूरत होती है। ऐसे लोगों की ट्रेनिंग, हथियारों और पगार कैश में ही दी जाती है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस के अनुसार पाकिस्तान से नकद और हथियार सीमा पर भारत के पहुंचा पाना संभव नहीं। ऐसे में स्थानीय उग्रवादियों को कैश की सख्त जरूरत पड़ती है। पुलिस का कहना है कि उसने ज्यादातर संदिग्ध बैंक अकाउंट फ्रीज करवा दिए हैं और अब वो उन लोगों की तलाश कर रही है जो लूट और डकैती की घटनाओं की प्लानिंग करते हैं।