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किसान की आदत बिगाड़ रहा कर्जमाफी का सस्ता सरकारी उपाय

हमारे यहां खेती-किसानी को लेकर तीन चीजें शीशे की तरह साफ हैं. पहला- नारों में भारत कृषिप्रधान देश है. दूसरा- हकीकत में कृषिप्रधान देश में सबसे बुरी हालत खेती-किसानी की है. और तीसरा- खेती-किसानी को बचाने के लिए सरकार के पास एक ही उपाय है और वो है कर्जमाफी.

किसानों की कर्जमाफी का मसला ऐसा है जिस पर ज्यादा कुछ बोलने की गुंजाइश नहीं रहती. कोई मशहूर अर्थशास्त्री भी बड़ा बचते-बचते ही ये कह पाता है कि किसानों के हजारों करोड़ के कर्ज माफ करते वक्त सरकार इसकी वजह से होने वाली अर्थव्यवस्था के नुकसान को भी देख ले.

सरकारें कर्जमाफी की राह पर

आंध्र प्रदेश ने किसानों के हजारों करोड़ रुपए माफ कर दिए. यूपी में बीजेपी की योगी सरकार ने आते ही किसानों के अच्छे दिनों का एलान कर दिया. यूपी सरकार ने किसानों के 36 हजार करोड़ रुपए के कर्ज माफ कर दिए. इसके बाद महाराष्ट्र के किसान अपने खेत खलिहान से निकलकर कर्जमाफी की मांग लेकर सड़क पर उतर गए. फडणवीस सरकार को किसानों की कर्जमाफी की जिद के आगे झुकना पड़ा. मध्य प्रदेश के किसान भी अपने पड़ोसी किसानों का हाल और उसका उपचार जानकर खेत खलिहान छोड़कर सड़क की ओर दौड़े. गोलियां चली, किसान मरे, जमकर राजनीति हुई, लेकिन सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा. आज न कल एलान हो ही जाएगा.

इसके बाद कर्जमाफी की मांग पूरे देशभर के हिस्सों से उठने लगी है. राजस्थान के किसान भी कर्जमाफी की मांग कर रहे हैं. पंजाब ने एक कमेटी बना दी है जो ये जांच करेगी कि किसानों की मांग कितनी जायज है और किस हद तक सरकार मदद कर सकती है. राज्य दर राज्य कर्जमाफी के फैलते संक्रमण का हाल ये है कि जिन राज्यों में किसानों के कर्ज माफ भी नहीं हुए हैं, वहां के किसानों ने लोन चुकाना बंद कर दिया है. वो इस उम्मीद में बैठे हैं कि आज न कल कर्ज माफ होने ही हैं फिर क्यों बेकार में बैंक को पैसे लौटाए जाएं. किसानों के इस रैवेये ने बैंकों को मुश्किल में डाल दिया है.

किसानों को दिए गए बैंकों के कर्ज के आंकड़े परेशान करने वाले हैं. इस आंकड़े के मुताबिक किसानों के पास बैंकों का कुल 10 लाख करोड़ का कर्ज पड़ा है. बड़ी समस्या ये है कि जिन किसानों की हालत लोन चुकाने की है, वो भी बैंकों को पैसे नहीं लौटा रहे है. पिछले दिनों इस मुद्दे पर इतनी राजनीति हो गई है कि अब संपन्न किसान भी कर्ज से बचने का रास्ता तलाशने लगे हैं. नतीजा ये हुआ है कि पिछले दिनों ऐसे लोन के डिफॉल्टरों की संख्या तेजी से बढ़ी है. एक आंकड़े के मुताबिक एग्रीकल्चर लोन के डिफॉल्ट रेट में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी हाल ही में यूपी के किसानों के कर्जमाफ करने की घोषणा की थी.

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी हाल ही में यूपी के किसानों के कर्जमाफ करने की घोषणा की थी.

लेकिन कौन उठा रहा है फायदा?

देश में किसानों की दयनीय हालत पर सरकारी मदद बिल्कुल जायज है. अपने किसानों को मरते देखकर सरकार कैसे मुंह फेर सकती है. लेकिन क्या सिर्फ कर्जमाफी ही एक उपाय है? इसके साथ ही एक सवाल ये भी है कि क्या सरकार की कर्जमाफी का फायदा सिर्फ वाजिब हकदार ही उठाते हैं?

इस मामले से जुड़े रिपोर्ट इस बारे में गंभीर खामियों की ओर इशारा करते हैं. कर्जमाफी का फायदा ऐसे किसान भी उठा ले जाते हैं जो इसके हकदार हैं ही नहीं. मनीकंट्रोल में छपे एक लेख के मुताबिक साल 2008 में तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने किसानों के 52 हजार करोड़ की कर्जमाफी का एलान किया. 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले यूपीए 1 की सरकार ने किसानों के दिल पर बड़ा मरहम रख दिया था. इसी के बाद यूपीए 2 की सरकार का रास्ता भी निकल आया. लेकिन सरकार के किसानों को दिए इस राहत पैकेज की जब जांच हुई तो इसमें भारी गड़बड़ी पाई गई.

 

पार्लियामेंट्री पब्लिक एकाउंट कमेटी ने पाया कि कर्जमाफी की मलाई कई ऐसे संपन्न किसान भी काट रहे थे, जो इसके वास्तविक हकदार थे ही नहीं. कर्जमाफी का फायदा उठाने वाले 25 राज्यों के 3.69 करोड़ किसानों में से 90,576 किसानों की जांच पड़ताल की गई. पता चला कि कर्जमाफी का लाभ लेने वाले 22 फीसदी मामले फर्जी निकले. 22 फीसदी किसानों ने गलत तरीके से सरकारी मदद हासिल की थी.

अर्थव्यवस्था को होता है नुकसान

किसानों के मुद्दे पर जब भी ऐसे फर्जीवाड़े की बात उठती है, बहस की दिशा दूसरी ओर मोड़ दी जाती है. विजय माल्या जैसे लोगों की बैंकों से की गई धोखाधड़ी का सवाल उठाया जाता है. सरकार पर कॉरपोरेट घरानों के करीब होने और किसानों से मुंह मोड़ने के आरोप लगते हैं. लेकिन क्या किसी भी तरीके से ऐसे फर्जीवाड़ों को सही साबित करने की कोशिश जायज ठहराई जा सकती है क्योंकि आखिरकार ऐसे फ्रॉड से नुकसान देश के बैंकिंग सिस्टम और अर्थव्यवस्था को ही उठाना पड़ता है.

राज्य सरकारें और राजनीतिक पार्टियां इस मसले को घोर राजनीतिक तौर पर देखती हैं. विपक्ष हर बार खुद को किसानों का हितैषी दिखाने और अपना वोटबैंक बनाए रखने के चक्कर में सरकार के खिलाफ खड़ी होती हैं और राज्य सरकारों को आने वाले चुनावों के मद्देनजर किसानों का हमदर्द दिखने के एवज में सरकारी खजाने का मुंह खोलना पड़ता है. मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. शिवराज सरकार को किसी भी तरह से लोगों की नाराजगी से बचना है. किसानों के कर्ज माफ करने ही होंगे.

खेती-किसानी को फायदे का धंधा में तब्दील करने में कई खामियां है. कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ वक्त-वक्त पर कई तरह के फॉर्मूले सुझाते रहते हैं. लेकिन सरकार के पास एक ही फॉर्मूला है. कर्जमाफी.

मंदसौर में पुलिस की गोलियों से हुई किसानों की मौत पर अंबाला में यूथ कांग्रेस के मेंबर.

मंदसौर में पुलिस की गोलियों से हुई किसानों की मौत पर अंबाला में यूथ कांग्रेस के मेंबर.

लेकिन कर्जमाफी कितनी कारगर है?

सवाल ये भी है कि साल दर साल लाखों करोड़ रुपए की कर्जमाफी से किसानों के हालात कितने बदले हैं. सरकार को अपनी किसान नीति बदलने के बजाए कर्जमाफी जैसे सस्ते उपाय क्यों अपनाने चाहिए? टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक आंकड़े के मुताबिक 2014 के बाद कई राज्यों ने दिल खोलकर किसानों के हजारों करोड़ के कर्ज माफ किए हैं. आंध्र प्रदेश ने किसानों के 40 हजार करोड़ के कर्ज माफ कर दिए. उत्तर प्रदेश ने 36 हजार करोड़ के कर्ज माफ किए. तेलंगाना ने किसानों के जिम्मे वाले 17 हजार करोड़ के कर्ज माफ कर दिए. छत्तीसगढ़ ने अपने राज्य के किसानों को 32 सौ करोड़ के ब्याजमुक्त लोन दिए. महाराष्ट्र सरकार ने अपने राज्य के किसानों के सड़क पर उतरने के बाद 30,500 करोड़ के कर्ज माफ कर दिए. पंजाब सरकार ने एक विशेषज्ञ कमेटी बना दी है जो कर्जमाफी के मामलों को देखेगा और इस पर फैसला लेगा.

अर्थव्यवस्था के जानकार कर्जमाफी को क्रेडिट कल्चर के खिलाफ मानते हैं. बैंकों का मानना है कि इससे पेमेंट कल्चर बुरी तरह से प्रभावित होता है. किसी को भी अगर कर्जमाफी का अंदेशा हो गया तो वो पैसे रहते भी बैंक को पैसे क्यों लौटाएगा. इस कल्चर की वजह से प्राइवेट सेक्टर के बैंकों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

साल दर साल किसानों के कर्जों में इजाफा हुआ है. कर्ज देने और उसे चुकाने का एक सिस्टम है जिसे फॉलो करने पर अर्थव्यवस्था में तेजी आती है. लेकिन अगर इस सिस्टम को करप्ट कर दिया जाए तो बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

एक आंकड़े के मुताबिक 2014-15 में बैंकों ने कुल 8.4 लाख करोड़ के कर्ज बांटे. 2015-16 में कर्ज की रकम बढ़कर 9.1 लाख करोड़ हो गई. 2016-17 में कुल 9.6 लाख करोड़ के कर्ज बांटे गए. हर साल किसानों के कर्ज में इजाफा हो रहा है और इसी दर से लोन डिफॉल्टरों की संख्या भी बढ़ रही है. आखिर में पब्लिक सेक्टर और को-ऑपरेटिव बैंक को ही भुगतना पड़ेगा.

किसान उगाता है, वो जो उगाता है वो पूरा देश खाता है. लेकिन उगाने और खाने के बीच भारी झोल है, यही फंसता है किसान. इसे दुरुस्त करने के बजाए कर्जमाफी के आसान उपाय से अन्नदाता की किस्मत नहीं बदलने वाली.

Sabhar f.p.