गवर्नमेंट और इंडस्ट्री के अधिकारियों के मुताबिक, गुड़गांव में अभी तैयार हो रहे 90 प्रतिशत तक रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट्स इस कानून से अछूते हैं। फ्लैट डिलिवरी में सबसे ज्यादा लेटलतीफी वाले शहर नोएडा में कितने प्रतिशत रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट्स रेरा के दायरे से बाहर होंगे, इसका स्पष्ट आंकड़ा तो अभी नहीं मिला है।
इंडस्ट्री पर नजर रखनेवालों को लगता है कि नोएडा और गुड़गांव के आंकड़े में बहुत अंतर नहीं होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश और हरियाणा ने रियल एस्टेट (रेग्युलेशन ऐंड डिवेलपमेंट) ऐक्ट में अभी तैयार हो रहे प्रॉजेक्ट्स को शामिल करने का एकसमान पैमाना ही अपनाया। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में कुल 82 बिल्डर प्रॉजेक्ट्स चल रहे हैं।
दोनों राज्यों में जिन परियोजनाओं के लिए ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट्स जारी हो चुके हैं या जिनके लिए आवेदन किए जा चुके हैं, उन्हें रेरा के दायरे से बाहर रख दिया गया है।
यह 1 मई को नोटिफाइड केंद्र सरकार के रेरा कानून से बहुत अलग है जिसमें छूट का पैमाना कंप्लीशन सर्टिफिकेट्स को बनाया गया है। मसलन, गुड़गांव के अनुमानतः 1.7 लाख फ्लैट्स में 90 प्रतिशत निर्माण के अलग-अलग चरणों में हैं और इन्हें ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट्स या तो मिल गया है या इनके लिए आवेदन किया जा चुका है। इनमें कई फ्लैट्स को ऑक्युपेंसी पेपर के साथ-साथ पार्ट-कंप्लीशन सर्टिफिकेट्स भी मिल चुके हैं। यह हरियाणा के रेरा कानून के तहत नहीं आएंगे।
पार्ट कंप्लीशन का मतलब यह नहीं है कि पूरा प्रॉजेक्ट ही रेरा से बाहर है। अगर किसी प्रॉजेक्ट का कोई टावर अंडर कंस्ट्रक्शन है तो उसे रेरा में रजिस्टर करना होगा, भले ही उसी प्रॉजेक्ट के दूसरे टावरों का निर्माण पूरा हो चुका हो। दोनों शहरों के फ्लैट खरीदारों ने इसे नियम से हटना बताते हुए निराशा जाहिर की क्योंकि दोनों शहरों की मुख्य समस्या पजेशन में देरी ही है।