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बिल्डर हुआ दिवालिया तो खरीदार करें अब क्या?

एक सरकारी कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी रवि कुमार उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने नोएडा में जेपी की विश टाउन परियोजना में फ्लैट बुक किया था। उन्होंने 2010 में फ्लैट बुक किया था। इसके बाद अगले तीन वर्षों में डेवलपर ने सुपरस्ट्रक्चर (नींव से ऊपर का हिस्सा) बनाया और लागत का 90 फीसदी पैसा वसूल लिया। इसका निर्माण कार्य बुकिंग के तीन साल बाद पूरा होना था, लेकिन उन्हें फ्लैट नहीं सौंपा गया। कुमार ने कहा, ‘हमने सोचा था कि कंपनी की वित्तीय दिक्कतें दूर हो जाएंगी। लेकिन कंपनी के दिवालिया अदालत में होने की खबर से हमें तगड़ा झटका लगा है।’ हाल में राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने नोएडा की जेपी इन्फ्राटेक के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की बैंकों की याचिका स्वीकार कर ली है। जेपी की परियोजनाओं में निवेश करने वाले हजारों लोग इस उलझन में हैं कि अब उन्हें क्या कदम उठाना चाहिए।

दिवालिया कानून के तहत घर खरीदारों के अधिकार

दिवालिया समाधान पेशेवरों के मुताबिक इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) 2016 में किसी बिल्डर के दिवालिया प्रक्रिया में होने पर घर खरीदारों के अधिकारों से संबंधित कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं। एक दिवालिया कानून पेशेवर और इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया (आईसीएसआई) की पूर्व अध्यक्ष ममता बिनानी कहती हैं, ‘ दिवालिया कानून के तहत घर खरीदार न वित्तीय और न ही परिचालन ऋणदाता हैं।’ कानून के जानकारों का कहना है कि किसी घर खरीदार को ऋणदाता केवल तभी माना जा सकता है, जब वह खरीद करार को खत्म कर अपना पैसा वापस दिए जाने की मांग करता है। आईआरआर इन्सॉल्वेंसी प्रॉफेशनल्स के निदेशक नीलेश शर्मा ने कहा, ‘अगर वह  ऐसा नहीं करता है तो वह अपने करार के तहत फ्लैट हासिल करने का हकदार है।’
दूसरा नजरिया यह है कि जब घर खरीदार मकान नहीं लेना चाहता है तो उसके द्वारा चुकाया गया पैसा कंपनी अधिनियम 2013 के तहत ‘जमा’ की परिभाषा के तहत आ सकता है। बिनानी ने कहा, ‘इस तरह कंपनी ने जमाओं को लौटाने में डिफॉल्ट किया है, इसलिए घर खरीदार को वित्तीय ऋणदाता माना जा सकता है।’ हालांकि इससे सभी दिवालिया पेशेवर सहमत नहीं हैं। शर्मा ने कहा, ‘अगर घर खरीदार अपने पैसे को लौटाने की मांग करते हैं तो उन्हें परिचालन ऋणदाता माना जा सकता है।’

मकान लेना
दिवालिया पेशेवरों का कहना है कि इस बात के प्रबल आसार हैं कि जेपी की कुछ संपत्तियों को बेचा जाए और इस पैसे का इस्तेमाल फ्लैटों का निर्माण पूरा करने में किया जाए। शर्मा का मानना है कि समाधान योजना के तहत कोई समाधान आवेदक फ्लैट खरीदारों द्वारा बाकी रकम चुकाने पर आधी बनी इमारत का काम पूरा करने की पेशकश कर सकता है। लेकिन अगर इमारतों का निर्माण कार्य पूरा करने के लिए फ्लैट खरीदारों द्वारा चुकाई जाने वाली राशि से अधिक धन चाहिए तो इस बात की संभावना है कि वह उन्हें अधिग्रहीत करने के लिए आवेदन न करें। शर्मा कहते हैं, ‘ऐसी स्थिति में बिल्डर की संपत्तियों को
बेचा जाएगा।’
एक अन्य स्थिति यह है कि फ्लैट खरीदार एक रेजिडेंट्स वेल्ïफेयर एसोसिएशन बना लें, इमारत को अधिग्रहीत कर लें और सदस्यों के योगदान से अधूरे फ्लैटों का निर्माण कार्य पूरा कराएं। कानून के जानकारों का कहना है कि जब किसी बिल्डर की संपत्तियों को बेचा जाता है तो उसके पास यह विकल्प होता है कि वह इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (लिक्विडेशन) रेग्यूलेशन 2016 के नियम 10 के मुताबिक अलाभकारी संपत्ति के रूप में इमारत पर अपना दावा छोड़ सकता है।  इसमें करार लागू न करने के कारण घर खरीदारों को हुए नुकसान के लिए उन्हें बिल्डर के ऋणदाता के रूप में माना जाएगा।
इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (आईबीबीआई) ने घर खरीदारों के लिए अपना दावा पेश करने को फॉर्म-एफ पेश किया है। बिनानी कहती हैं, ‘इसमें घर खरीदारों को एक रास्ता मिल जाता है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि वे ऋणदाता की परिभाषा के तहत आएं।’ जेपी के बोर्ड ने कहा है कि घर खरीदारों को वित्तीय ऋणदाताओं के समान माना जाएगा। हालांकि फिर भी कई दिक्कतें हैं। शर्मा ने कहा, ‘अभी ऐसा कोई फॉर्म नहीं है, जिसके जरिये ‘करार लागू कराने’ का दावा किया जा सके।’ उनका सुझाव है कि फॉर्म-एफ भरते समय घर खरीदारों को इस बात का जिक्र करना चाहिए कि वे बिल्डर के साथ अपने करार को लागू कराना चाहते हैं। दिवालिया पेेशेवरों का मानना है कि घर खरीदारों के हितों की सुरक्षा के लिए कानून में विशेष प्रावधान किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि जिन वास्तविक खरीदारों ने वैध खरीद करार किए हैं और पूरे भुगतान का एक हिस्सा चुका दिया है, उन्हें सुरक्षित ऋणदाताओं पर पर तरजीह दी
जानी चाहिए।

आपको क्या करना चाहिए?

हर घर खरीदार को धन के दावे के लिए फॉर्म-एफ नहीं भरना चाहिए। ट्राइलीगल में पार्टनर और विवाद एवं नियामकीय पद्धतियों के प्रमुख सीतेश मुखर्जी ने कहा, ‘रेरा के तहत खरीदारों को संपत्ति के दावे, टाइटल और पजेशन का हक दिया गया है। धन के दावे के लिए फॉर्म भरने से यह माना जाएगा कि घर खरीदार ने संपत्ति हासिल करने का अधिकार त्याग दिया है। ऐसे घर खरीदारों को ऋणदाता माना जाएगा और उन्हें दिवालिया समाधान प्रक्रिया के तहत ऋणदाताओं की समिति के बीच बनी सहमति के आधार पर कुछ वित्तीय त्याग भी करना पड़ सकता है।’
अगर कोई घर खरीदार 90 फीसदी तैयार अपार्टमेंट में पजेशन और स्वामित्व के दावे के अपने अधिकार को त्याग देता है और ऋणदाता बन जाता है तो इस बात के आसार हैं कि उसने जितनी राशि जमा कराई है, उसका केवल 50 फीसदी ही मिले। उसे मिलने वाली राशि कंपनी पर ऋण के मुकाबले उसकी संपत्तियों की कीमत पर निर्भर करेगी। अगर किसी इमारत का निर्माण पूरा होने वाला है तो खरीदार इसे पूरा करने में 10 से 20 लाख रुपये और खर्च कर सकते हैं।
अगर आपने पैसा वापस लेने के लिए एक बार फॉर्म भर दिया तो आप बाद में फ्लैट की मांग नहीं कर सकते। जेपी इन्फ्राटेक के मामले में दिवालिया समाधान पेशेवर (आईआरपी) ने साफ किया है कि घर खरीदार अपनी उन संपत्तियों का दावा कर सकते हैं, जिसका जेपी ने वादा किया है। मुखर्जी कहते हैं, ‘इस विकल्प को अपनाने को तरजीह दी जा सकती है। दूसरी ओर अगर इमारत का निर्माण शुरू हुआ ही है तो खरीदार के लिए अपने पैसे की वापसी का दावा करना बेहतर रहेगा।’
बिल्डर किसी परियोजना के लिए संपत्ति को गिरवी रखकर बैंक से पैसा लेता है और इन फ्लैटों को  खरीदारों को बेच देता है। इसलिए घर खरीदारों को बुकिंग के समय परियोजना के ऋणदाता से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना होता है। अगर आप टाइटल होल्डर बने रहने का फैसला करते हैं तो यह सुनिश्चित कीजिए कि आपके पास एनओसी है ताकि आप अपने स्वाामित्व अधिकारों का दावा कर सकें। घर खरीदारों को अपने बिक्री समझौते में यह भी देख-समझ लेना चाहिए कि यह जयप्रकाश एसोसिएट्स के साथ था या जेपी इन्फ्राटेक के साथ किया गया है। बंबई उच्च न्यायालय और एनसीएलटी मुंबई पीठ में वकील अनिरुद्ध हीरानी ने कहा, ‘अगर यह करार जयप्रकाश एसोसिएट्स के साथ था तो उनकी परियोजना पर काम जारी रहने के आसार हैं।’

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