आपने कुंभ के मेले या श्मशान और दुर्गम स्थानों में साधुओं को तपस्या करते हुए या ध्यान में मग्न रहते हुए देखा होगा। कई बार तो आप इनके लम्बे बाल अजीबो गरीब पहनावे और राख से सने हुए इनके शरीर को को देखकर डर जाते होंगे। इन्हें अघोरी कहा जाता हैं।
अघोरपंथ साधना की एक शाखा है। शमशान में तंत्र क्रिया करने वाले साधुओं को अघोरी बाबा कहते हैं। यूं तो अघोरियों का इतिहास करीब 1000 वर्ष पुराना है। उस समय वाराणसी में अघोरियों का जन्म हुआ था। लेकिन आज इनकी संख्या काफी कम हो गई है। अघोरियों की सबसे पहली पहचान यही है कि वे किसी से कुछ नहीं मांगते। दूसरा यह कि वे जल्दी से दिखाई नहीं देते। शमशान में रहने वाले अघोरी साधुओं को कुंभ में देखा जा सकता है।
अघोरियों को डरावना या खतरनाक साधु भी समझा जाता है लेकिन अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरियों का वास्तविक रूप देखकर एक बार के लिए आप डर सकते हैं। आइए जानते है दुनिया और समाज से दूर, एकांत और श्मसान में रहने वाले इन अघोरी साधुओं से जुड़ी कुछ बातों के बारे में