Monday , December 23 2024

रईस परिवार में सादगी से पले-बढ़े हैं अमित शाह, नगरसेठ थे परदादा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद और करीबी अमित शाह भारत सरकार का हिस्सा बन गए हैं. नरेंद्र मोदी के उलट अमित शाह गुजरात के एक बहुत समृद्ध परिवार से आते हैं. उनके परदादा नगरसेठ हुआ करते थे. लेकिन परिवार के करीबी बताते हैं कि अमित शाह को उनके मां-पिता ने रईसी की चमक-दमक से दूर रखा.

अमित शाह छह बहनों के बाद सबसे छोटे हैं. बचपन में उनकी बहनें चांदी के बर्तनों में खाना खाती थीं. अमित को खाना पीतल के बर्तनों में परोसा जाता था. अमित शाह की बहनें बग्घी से स्कूल जाती थीं

वहीं शाह को पैदल भेजा जाता था. यही वजह है कि विशाल पारिवारिक हवेली में पले-बढ़े अमित शाह आज भी सादगी को ज्यादा पसंद करते हैं. पांच सितारा होटलों की बजाय वे सरकारी गेस्ट हाउस में रुकना पसंद करते हैं. चार्टड फ्लाइट की जगह वे दूसरे माध्यमों से ट्रैवल करना ज्यादा प्रि‍फर करते हैं.

महाराष्ट्र का दामाद भी कहा जाता है

अमित शाह की पत्नी कोल्हापुर से हैं इसलिए उन्हें महाराष्ट्र का दामाद भी कहा जाता है. 1986 में अमित शाह की शादी कोल्हापुर के मसाला और ड्रायफ्रूट्स के थोक व्यापारी सुंदरलाल मंगलदास शाह की बेटी सोनल शाह से हुई थी.

 

 

राजनीति के चाणक्य ने पढ़ा कौटिल्य का अर्थशास्त्र

यूपी में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में अमित शाह ने जो चमत्कार किया, उसके बाद उन्हें राजनीति का चाणक्य कहा जाने लगा. लेकिन सच्चाई ये है कि उन्होंने पहली बार कौटिल्य के अर्थशास्त्र को 9 साल की उम्र में पढ़ा था.

मोदी से शाह की मुलाकात

 

 

बचपन से ही शाह आरएसएस की शाखाओं में जाते थे. अहमदाबाद के बीजेपी दफ्तर में पहली बार नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात हुई थी. अमित शाह उस समय बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी के नेता थे और नरेंद्र मोदी बीजेपी में संगठन का काम देखते थे. दोनों का एक दूसरे पर विश्वास ऐसा बना कि विरोधी आज तक इस जोड़ी का तोड़ नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं.

ना दोस्तों को भूलते हैं ना दुश्मनों को

शाह 2002 से ही मोदी के साथ गुजरात सरकार में जुड़े रहे. एक वक्त में उनका जलवा ऐसा था कि वे 12-12 पोर्टफोलियो अकेले ही संभालते थे.

मोदी की तरह शाह भी शुद्ध शाकाहारी हैं और सिगरेट-शराब से दूर रहते हैं. वे ना दोस्तों को भूलते हैं ना दुश्मनों को, यहां तक की कार्यकर्ताओं को भी उनके नाम से जानते हैं.

कोई इलेक्शन मशीन कहता है तो कोई वोटों का जादूगर

मोदी के पांच साल के कामों को जनता तक पहुंचाने का मैकेनिज्म अमित शाह ने ही डेवलप किया. 2014 की तरह इस बार बीजेपी के पास कोई प्रशांत किशोर जैसे पॉलिटिक्ल स्ट्रेटजिस्ट नहीं थे. नारे और  रणनीति प्रचार कैसे हो, हर चीज में शाह का अपर हैंड था. कोई अमित शाह को इलेक्शन मशीन कहता है तो कोई वोटों का जादूगर, लेकिन सच्चाई ये है कि बीजेपी के इतिहास में सबसे सफल अध्यक्षों में रहे अमित शाह ने कॉओबेल्ट की जातिवादी पॉलिटिक्स का तोड़ निकाल कर दिखाया. अब देखना होगा कि गृह मंत्रालय में अपने काम से क्या वे बीजेपी की तरह देश की उम्मीदों पर भी खरें उतरेंगे.