Monday , November 18 2024

केरल के मन्नारशाला स्नैक टेम्पल में सजती है सांपों कि अद्भुत महफ़िल

भारतीय परंपरा में इकोलॉजी को भी शुमार किया गया है। इसीलिए पेड़-पौधे, जीव-जंतु, नदी-पर्वत सभी की पूजा का विधान है। इसी के चलते देशभर में कई तरह के अनूठे मंदिर अपनी विशिष्ट कथाओं के साथ पाए जा सकते हैं। इस बार का अनूठा मंदिर है केरल का मन्नाारशाला सर्प मंदिर। वैसे तो हमारे देश में सांपों को समर्पित कई मंदिर हैं, पर इनमें सबसे प्रसिद्ध है मन्नाारशाला का स्नेक टेम्पल। यह मंदिर अपनी बनावट में आपको चकित कर देगा। केरल के अलेप्पी के पास है यह मंदिर मन्नाारशाला, अलेप्पी से मात्र 37 किलोमीटर की दूरी पर है।                                                                                                                                                                                                                                         यह मंदिर नागराज और उनकी संगिनी नागयक्षी को समर्पित है। 16 एकड़ भू – भाग पर फैले इस मंदिर में जहां नजर दौड़ाएंगे वहां सांपों की प्रतिमा दिखाई देगी। बताया जाता है कि इस मंदिर में सांपों की 30,000 से ज्यादा मूर्तियां हैं। पांडवों से जुड़ती है इसकी कथा इसकी कथा महाभारत से जुड़ती है। कौरवों ने खांडववन में पांडवों को राज्य देकर उनके रहने के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया। बाद में जब पांडव वहां रहने लगे थे, तब उसे जला दिया गया था। कहा जाता है कि वह खांडववन नामक प्रदेश यही था।                                                                       मान्यता है कि इस दुर्घटना में वन का एक हिस्सा बचा रह गया था और वहां सांप सहित अन्य जीव-जंतुओं ने शरण ली थी। मन्नाारशाला वही जगह बताई जाती है। मंदिर की पुजारी नम्बूदरी महिला मंदिर के मूलस्थान में पूजा-अर्चना आदि का कार्य वहां के नम्बूदरी घराने की बहू निभाती है। उन्हें वहां ‘अम्मा’ कहकर संबोधित किया जाता है।शादीशुदा होने के उपरांत भी वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए दूसरे पुजारी परिवार के साथ अलग कमरे में निवास करती है। कहा जाता है कि उस खानदान की एक स्त्री निःसंतान थी। उसके अधेड़ होने के बाद भी उसकी प्रार्थना से वासुकि प्रसन्ना हुए और उसकी कोख से एक पांच सर वाले नागराज और एक बालक ने जन्म लिया।                                       उसी नागराज की प्रतिमा इस मंदिर में लगी है। मान्यता है कि यदि यहां निःसंतान दम्पति प्रार्थना करें तो उन्हें संतान प्रभावित होती है। इसके लिए दम्पति को मंदिर से लगे तालाब(बावड़ी) में नहाकर गीले कपड़ों में ही दर्शन हेतु जाना होता है। साथ में ले जाना होता है एक कांसे का पात्र जिसका मुंह चौड़ा होता है। इसे वहां उरुली कहते हैं। उस उरुली को पलट कर रख दिया जाता है। मनोकामना पूर्ण होने पर फिर वे मंदिर में आकर अपने द्वारा रखे गए उरुली को उठाकर सीधा रख देते हैं और उसमें चढ़ावा आदि रख दिया जाता है।