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RERA Act : खरा या खोटा, सरकारी निर्माण एजेंसियां ही नहीं करती नियमों का पालन

मध्य प्रदेश  रियल एस्टेट सेक्टर में खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए भले ही रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) कानून लागू हुए दो साल से ज्यादा वक्त हो गया हो लेकिन मध्य प्रदेश में यह बेअसर सा दिखाई दे रहा है। बात बिल्डर्स प्रोजेक्ट और प्रॉपर्टी एजेंट्स के पंजीयन की हो या रेरा द्वारा सुनाए गए आदेशों की, हर जगह कमियां नजर आ रही हैं। कई शिकायतकर्ता रेरा का आदेश लिए भटक रहे हैं लेकिन उसका पालन करवाने के लिए कोई एजेंसी जिम्मेदारी नहीं ले रही। ज्यादातर मामलों में यह हुआ है कि रेरा ने क्षतिपूर्ति का फैसला तो सुनाया पर बिल्डर ने आदेश का पालन ही नहीं किया। ऐसे कई मामलों को लेकर रेरा खुद कोर्ट व जिला प्रशासन के भरोसे है। लिहाजा कई शिकायतकर्ताओं ने तो रेरा से शिकायत वापस लेकर उपभोक्ता फोरम पर विश्वास जताया है।                                                                                                                  जानकार बताते हैं कि प्रदेश में रेरा की ऐसी स्थिति के दो प्रमुख कारण हैं। पहला – रेरा कानून को लेकर लोगों में उतनी जागरूकता नहीं हो पाई है जितनी दो सालों में होनी चाहिए थी। दूसरा – बड़ी कार्रवाई की कमी। दरअसल, रेरा अपनी उतनी शक्तियों का उपयोग नहीं कर पा रहा है जितनी प्रावधानों में दी गई है। ज्यादातर मामलों में समझाइश दी जा रही है। जुर्माना और बड़ी कार्रवाई के बाद ही जनता में जागरूकता और विश्वास उपजता है। रेरा कानून में 500 वर्ग मीटर या 8 अपार्टमेंट के रियल एस्टेट प्रोजेक्ट का पंजीयन कराया अनिवार्य है                                       मध्यप्रदेश में हाउसिंग बोर्ड, अलग-अलग शहरों के प्राधिकरण (बीडीए, आईडीए आदि), नगरीय निकाय जैसी सरकारी निर्माण एजेंसियां आवासीय प्रोजेक्ट के तहत मकान-आवास बनवाती हैं लेकिन रेरा में पंजीयन नहीं करवातीं। प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए प्रदेश के 16 निकायों ने रेरा में पंजीयन नहीं करवाया है। जबकि रेरा नियमों में साफ है कि सरकारी योजनाओं का हितग्राही हो या निजी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में खरीदार यदि वह आवास के लिए संबंधित एजेंसी को भुगतान करता है तो वह प्रोजेक्ट रेरा के दायरे में आता है।                                कब्जा देने या रजिस्ट्री के बाद बिल्डर ने फिर किया कब्जा तो सुनवाई नहीं : रेरा, प्रावधानों में कई विसंगतियों के कारण भी प्रभावी नहीं हो पा रहा है। ऐसी ही एक विसंगति यह है कि पजेशन या रजिस्ट्री के बाद बिल्डर अनाधिकृत रूप से कब्जा कर रहा है तो इसकी सुनवाई रेरा में नहीं होगी। राजधानी के ऐसे ही दो मामले पर रेरा ने केस पंजीयन के लिए जमा शुल्क एक हजार रुपए वापस करते हुए सिविल या राजस्व कोर्ट में जाने की सलाह दे दी।