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जिला महिला अस्पताल में हर दिन मरीजों का शोषण

जागरण संवाददाता, बलिया : जिला अस्पताल व जिला महिला अस्पताल की इतनी खराब दशा कभी नहीं थी। दोनों अस्पताल मरीजों के उपचार नहीं, शोषण के केंद्र बनते जा रहे हैं। वहीं दोनों अस्पताल के सीएमएस हैं कि उन्हें किसी की भी परवाह नहीं है। ताज्जुब इस बात को लेकर है कि सबकुछ जानकर भी शासन स्तर से कोई कार्रवाई नहीं होती। जिला महिला अस्पताल की सीएमएस डा. माधुरी सिंह तो मऊ से ही महिला अस्पताल का संचालन करती हैं।हैरत की बात यह भी है कि बड़े अधिकारी सबकुछ जानकर भी उन्हें मऊ रहने की छूट दे रखे हैं। वहीं जिला अस्पताल के ओपीडी में बाहरी लोगों ने कब्जा जमा रखा है।

अस्पताल के अंदर की कहानी यह है कि यहां परोक्ष रूप से महिला अस्पताल में धनउगाही का खेल लंबे समय से चल रहा है। महिला अस्पताल में तैनात चिकित्सक ही नहीं, हर कर्मचारी को उपचार के एवज में धन चाहिए होता है। बच्चे के जन्म लेते ही नर्स हों या अन्य कर्मचारी सभी रुपये की मांग करने लगते हैं। अस्पताल के मरीज बताते हैं कि एक प्रसव में कम से कम तीन हजार रुपये तो लग ही जाता है। अस्पताल में जांच और दवा की सुविधाएं मौजूद रहने के बावजूद बाहर के पैथोलॉजी केंद्रों पर जांच करानी होती है और बाहर की दवा खरीदनी होती है। वहीं सीएमएस हैं कि वह मरीजों के लिए कभी उपलब्ध ही नहीं रहतीं। यहां सीएमएस का पद हमेशा प्रभार पर ही रहता है। सीएमएस माधुरी सिंह तभी बलिया में दर्शन देती हैं जब किसी बड़े अधिकारी का जिले में आगमन होता है। अस्पताल प्रशासन के जिम्मेदार लोगों की मनमानी के चलते ही शासन की मंशा पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है। उनकी इस मनमानी पर नकेल कौन कसेगा इस बात की चर्चा भी हर दिन हो रही है।

चिकित्सक लिखते है बाहर की दवा व जांच

शासन से मरीजों के लिए लगातार सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं, लेकिन रुपये के लोभ के चलते जिला अस्पताल व जिला महिला अस्पताल की व्यवस्था बेपटरी ही चल रही है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि ओपीडी में भी बाहर के मेडिकल स्टोर व पैथोलॉजी के संचालक जमे रहते हैं। यह सब चिकित्सकों की कृपा से ही होता है। चिकित्सक जांच या बाहर की दवा लिखते हैं और ओपीडी से ही मेडिकल स्टोर व पैथोलॉजी वाले मरीजों को अपने यहां लेकर चले जाते हैं। धरती के भगवान कहे जाने वाले कुछ चिकित्सकों के इस चलन के चलते पूरा महकमा बदनाम हो रहा है। ट्रामा सेंटर के कमरा नंबर एक में बैठने वाले एक आर्थो चिकित्सक के कमरे में कई मेडिकल स्टोर और पैथोलॉजी वाले बैठे मिले। अस्पताल में सभी दवा व जांच रहने के बावजूद मरीजों को यह कहकर बाहर की दवा और जांच लिखी जाती है कि अस्पताल के अंदर की जांच सही नहीं होती है। यह सब कमीशन के चक्कर में किया जाता है। इसके बावजूद ऐसे लोगों पर शासन स्तर से कोई कार्रवाई नहीं होती। शासन स्तर से यहां बड़ी कार्रवाई की जरूरत

जिला अस्पताल और जिला महिला अस्पताल में मरीजों के साथ आए तीमारदारों से बात करने पर वह अस्पताल के अंदर की एक-एक कारगुजारी को बयां करने हैं। अस्पताल में दर्जन भर लोगों ने बताया कि चिकित्सक सीधी मुंह बात भी नहीं करते हैं। दवा लिखने की बात आती है तो कहते हैं अस्पताल की दवा से रोग ठीक नहीं होगा। इसके लिए बाहर की दवा खरीदनी होगी। जबकि शासन स्तर से अब दवा या जांच की समुचित व्यवस्था दोनों अस्पताल में की गई है। सभी मानते हैं कि यहां की स्थिति में तभी सुधार होगा जब शासन स्तर से कोई बड़े अधिकारी दोनों अस्पतालों का औचक निरीक्षण करेंगे और दोषी लापरवाह जिम्मेदारों पर बड़ी कार्रवाई करेंगे। बाहरी पैथोलॉजी सेंटरों या मेडिकल संचालकों का अस्पताल में प्रवेश पूरी तरह वर्जित है, इसके बावजूद भी यदि ऐसी शिकायत मिलती है तो संबंधित लोगों पर कार्रवाई की जाएगी। अस्पताल में जो भी सुविधाएं मौजूद हैं, उनका संचालन सही तरीके से किया जा रहा है।

-डा.एस. प्रसाद, सीएमएस, जिला अस्पताल। जिला महिला अस्पताल में एक-दो दिन मैं नहीं आती। यह कहना कि मैं दो ही दिन आती हूं, गलत है। प्रसव के उपरांत धनउगाही की शिकायत मुझे भी मिली है। इसकी जांच कराकर संबंधित लोगों पर कार्रवाई की जाएगी।

-माधुरी सिंह, सीएमएस, जिला महिला अस्पताल।