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बेनामी प्रॉपर्टी की सूचना देने पर एक करोड़ का ईनाम

नई  दिल्ली. ओमप्रकाश(LNT) सवांददाता। काले धन के खिलाफ अभियान को धार देते हुए सरकार बेनामी प्रॉपर्टी का पता लगाने के लिए बड़ी योजना पर काम कर रही है.इसमें बेनामी प्रॉपर्टी के बारे में जांच एजेंसियों को सूचना देने वाले व्यक्ति को एक करोड़ रुपये तक के ईनाम देना शामिल है. यह घोषणा अगले महीने की जा सकती है.

सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स (सीबीडीटी) के एक अधिकारी ने कहा कि बेनामी संपत्ति के बारे में सूचना देने वाले व्यक्ति को कम से कम 15 लाख और अधिक से अधिक एक करोड़ रुपये तक का ईनाम मिल सकता है. वह अधिकारी इस संबंध में नीति बनाने की प्रक्रिया से जुड़े हुए हैं.

अधिकारी के मुताबिक ईनाम पाने के लिए जरूरी है कि सूचना सही हो. सूचना देने वाले का नाम गुप्त रखा जायेगा. सूचना देने वाले व्यक्ति की जान-माल की सुरक्षा को देखते हुए यह फैसला लिया गया है कि उसका नाम हमेशा गुप्त रखा जायेगा.
पिछले साल लाई गयी बेनामी प्रॉपर्टी एक्ट में अब तक यह प्रावधान नहीं था. ईडी, इनकम टैक्स और रेवेन्यू इंटेलीजेंस जैसे विभाग भी सूचना देने वाले को ईनाम देते हैं, हालांकि उसकी रकम इतनी आकर्षक नहीं है.

ऐसे में आम लोगो के जहन में कई सवाल आ रहें हैं बेनामी संपत्त‍ि आखिर होती क्या है?

आईये, बेनामी संपत्ति से जुड़े कानून को समझते हैं।

इस ट्रांजैक्शन में जो आदमी पैसा देता है वो अपने नाम से प्रॉपर्टी नहीं करवाता है। जिसके नाम पर ये प्रॉपर्टी खरीदी जाती है उसे बेनामदार कहा जाता है। इस तरह से खरीदी गई प्रॉपर्टी को बेनामी प्रॉपर्टी कहा जाता है। इसमें जो व्यक्ति पैसे देता है घर का मालिक वही होता है। ये प्रॉपर्टी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से पैसे देने वाले का फायदा करती है। भारत में बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनके धन का कोई हिसाब-किताब नहीं है और वे आयकर भी नहीं चुकाते, वे अमूमन बेनामी संपत्तियों में धन लगाते हैं।

बेनामी लेनदेन कानून


1988 के पहले यह स्थिति थी कि इस बेनामी संपत्ति का वास्तविक स्वामी वही व्यक्ति माना जाता था, जिस ने उस संपत्ति को खरीदने के लिए धनराशि चुकाई हो। लेकिन संपत्ति जिस के नाम दस्तावेजों या रिकार्ड में होती थी वह उसे दस्तावेजों के सहारे से किसी को बेच देता या दान, हस्तांतरण आदि कुछ कर देता तो बाद में इस तरह के विवाद अदालतों में आते थे कि वह संपत्ति तो बेनामी थी और वास्तविक स्वामित्व किसी और का था। इस से निरर्थक विवाद बहुत होते थे।
बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 में पहली बार लाया गया था। इनमे कई कमियां थी इसी को ध्यान में रखकर यूपीए -2 सरकार ने संसद में बिल पेश किया था लेकिन 15 वीं लोकसभा के भंग होने के कारण अधिनियम पारित नहीं हो सका था।
2015 में मौजूदा राजग सरकार ने संशोधित बेनामी लेनदेन विधेयक को संसद में पेश किया। बीते अगस्त में संसद ने इस अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दे दी थी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस संशोधन को हरी झंडी दे दी।

बेनामी लेनदेन विधेयक 2015

बेनामी लेनदेन के रूप में में शामिल नहीं हैं:

पत्नी, बच्चों, माता-पिता के नाम खरीदी गई संपत्त‍ि और आय के घोषित स्रोत के जरिये चुकाई गई रकम बेनामी संपत्त‍ि के दायरे में नहीं आती।

भाई, बहन, पत्नी, बच्चों के नाम खरीदी गई ज्वाइंट प्रॉपर्टी जो आय के ज्ञात स्रोतों से खरीदी गई हो, बेनामी संपत्त‍ि नहीं कहलाती है।

जिस लेनदेन में एक ट्रस्टी और लाभार्थी शामिल हो। बेनामी संपत्त‍ि नहीं कहलाती है।

किसी विश्वासपात्र के नाम खरीदी गई प्रॉपर्टी। इसमें ट्रांजैक्शन किसी ट्रस्टी की तरफ से किया गया हो।