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कृत्रिम चांद लगाएगा चीन, जानें कितनी सही है यह योजना और क्‍या होगा इससे नुकसान

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 साल 2018 में चीन ने पहली बार कृत्रिम चांद का विचार प्रस्तुत करते हुए दुनियाभर के लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था। चीन के वैज्ञानिक वू चुनफेंग ने बताया था कि जल्द ही चेंगदू शहर के पास अपना चांद होगा, जिसके बाद वहां स्ट्रीटलाइटों की जरूरत नहीं होगी। अब यह बात सामने आ रही है कि इस योजना के तहत चीन अपना पहला उपग्रह 2020 में लांच कर सकता है। साल 2022 तक तीन और उपग्रह लांच किए जाएंगे, जिसके बाद यह विचार वास्तविकता का रूप ले लेगा। ऐसे में यह सवाल फिर खड़ा हो गया है कि विज्ञान को कुदरत पर हावी करते हुए चीन की कृत्रिम चांद की यह योजना कितनी सही है? जानते हैं, यह कैसे काम करेगी यह योजना और इससे क्या लाभ व नुकसान होंगे…

इस तरह करेगा काम

चीन के इस कृत्रिम चांद की सतह आईने की तरह होगी, जिससे यह सूरज की रोशनी को धरती की ओर मोड़ा जा सकेगा। चीन की योजना के मुताबिक, कृत्रिम चांद 10 से 80 किमी की परिधि में रोशनी कर सकेगा। इसके रोशनी असली चांद की तुलना में आठ गुना अधिक होगी

क्या हैं अड़चनें

संभावना जताई जा रही है कि कृत्रिम चांद को पृथ्वी और अंरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (आइएसएस) के बीच में स्थापित किया जाएगा। सबसे पहली अड़चन इसके आकार को लेकर बताई जा रही है। फुटबॉल के आकार के आइएसएस को तीन टुकड़ों में लांच करके अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था। चीन का यह कृत्रिम चांद आइएसएस से भी बड़ा होगा। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती इसे स्थापित करने की होगी। दूसरी बड़ी चुनौती इसकी रफ्तार की होगी। इसे पृथ्वी पर गिरने से रोकने के लिए जरूरी है कि यह 27,400 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूमता रहे। ऐसे में ईंधन का खर्च भी विचार का विषय है।

यह होगा लाभ

इस विचार के पक्षधर वैज्ञानिकों का कहना है कि चूंकि कृत्रिम चांद से स्ट्रीटलाइटों की जरूरत नहीं पड़ेगी इसलिए इससे बिजली बचाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा दूसरा लाभ आपदा के समय होगा। आपदा के दौरान जब किसी स्थान की बिजली चली जाएगी तो इसकी मदद से उस स्थान तक प्रकाश पहुंचाया जा सकेगा।

पैदा होगी एक नई समस्‍या

मौजूदा वक्‍त में प्रकाश प्रदूषण तेजी से बढ़ती समस्या है। रात में भी घरों, इमारतों में लाइट्स के जलने से सिर्फ लोग ही नहीं, उन घरों के बाहर मौजूद पशु, पक्षी भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। चीन की कृत्रिम चांद योजना की खिलाफत करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका सबसे बड़ा असर न केवल इंसानों, बल्कि पशु-पक्षियों के शरीर की आंतरिक घड़ी (सर्कडीअन) पर पड़ेगा।