वर्ष 2011 में महेंद्र सिंह धौनी की कप्तानी में जब भारत वर्ल्ड कप चैंपियन बना, तो भारतीय क्रिकेट के महानायक सचिन सचिन की वह मुराद पूरी हुई, जिस वजह से उन्होंने शायद बल्ला थामा था- वर्ल्ड कप चैंपियन टीम का हिस्सा होना. विजेता टीम के युवा बल्लेबाज विराट कोहली ने अपने कंधे पर बैठा कर सचिन को पूरे वानखेड़े स्टेडियम का चक्कर लगवाया था. बाद में पत्रकारों से कोहली ने कहा- ‘जब एक इंसान बीते 22 साल से करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों का भार अपने कंधे पर उठा सकता है, तो मैं कुछ मिनटों के लिए उन्हें अपने कंधे पर क्यों नहीं उठा सकता.’ वर्ष 2011 से 2016 को पूरे पांच साल हो गये और अपने महानायक सचिन की ही तरह कोहली का विराट कंधा भारतीय क्रिकेट की उम्मीदों को बखूबी उठाने को तैयार हो चुका है. यह भी संभावना दिख रही है कि विराट शायद अपने हीरो सचिन तेंडुलकर से बड़ी लकीर छोड़ जायें.
2016 दे गया सवालों के जवाब
साल 2011 में भारत वर्ल्ड कप चैंपियन बना, लेकिन वह साल कई तल्ख सवाल भी छोड़ गया. पहला, सचिन दौर सूर्यास्त की ओर था, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, अनिल कुंबले और सौरव गांगुली अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके थे. खुद सचिन अपने बेमिसाल कैरियर के आखिरी पड़ाव पर थे. आतिशी ओपनर सहवाग और धारदार गेंदबाज जहीर खान अपनी ताकत खोते जा रहे थे. इतने सारे दिग्गजों के एक साथ जाने के बाद क्या भारतीय क्रिकेट कभी उबर सकता था! दूसरा, धौनी खुद को विरले लीडर साबित कर चुके थे. लेकिन, सवाल यह था कि उनके बाद कौन? तीसरा, आइपीएल की चकाचौंध के दौर में भारत का टेस्ट क्रिकेट में क्या होगा? साल 2016 इन सवालों के जवाब दिये जा रहा है.
कोहली की चौकड़ी
सचिन युग के बाद भारतीय क्रिकेट में विराट कोहली दौर का आगाज हो चुका है. अहम यह है कि जिस तरह से सचिन ने आहिस्ता-आहिस्ता सौरव-द्रविड़-लक्ष्मण के साथ मिल कर जबरदस्त चौकड़ी बनायी, उस तरह से विराट कोहली, चेतेस्वर पुजारा, अजिंक्य रहाणे और करुण नायर जैसे युवा बल्लेबाजों के साथ मिल कर चौकड़ी बनाने में जुटे हैं. सचिन युग में विदेशी जमीन पर विजयी अभियान के लिए अगर आतिशी वीरेंदर सहवाग थे, तो कोहली दौर में मुरली विजय और लोकेश राहुल की जबरदस्त सलामी जोड़ी बनती दिख रही है. यह जोड़ी विदेशी जमीन पर कोहली टीम की जीत के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकती है. अहम यह है कि सचिन दौर से कोहली दौर को बैटन सौंपने का साफ संदेश इंगलैंड के खिलाफ उस मुंबई टेस्ट में मिला, जहां पहली बार ऐसा हो रहा था, जब मुंबई का कोई खिलाड़ी अंतिम ग्यारह में नहीं था. लेकिन, जैसा मशहूर लेखक-पत्रकार विजय लोकपल्ली अपनी किताब ‘ड्राइव’ में लिखते हैं- ‘सहवाग ने सचिन से प्रेरणा लेकर बल्ला थामा. कोहली ने भी सचिन को ही अपना रोल मॉडल माना.’
भारत में क्रिकेट का लोकतंत्रीकरण
जाहिर तौर पर सही मायने में भारत में क्रिकेट का लोकतंत्रीकरण हो चुका है. राजे-रजवाड़े और पारंपरिक केंद्रों से आगे बढ़ कर क्रिकेट पूरे देश में पांव पसार चुका है. देश में किसी खेल के लोकतांत्रिक प्रसार का मतलब है- अथाह बेंच स्ट्रेंथ, और अथाह बेंच स्ट्रेंथ का मतलब है उस खेल विशेष में लंबे समय तक शिखर पर बने रहने का माद्दा होना.
लीडरशिप का कोहली मॉडल
भारतीय क्रिकेट लीडरशिप का मॉडल अपने नये अवतार कोहली मॉडल के साथ आ चुका है. आखिर क्या है लीडरशिप में कोहली मॉडल? यह मॉडल आखिर किस तरह से धौनी मॉडल से अलग है? दरअसल, एक बदलते भारत की पृष्ठभूमि में, एक पेशेवर मैनेजमेंट कंपनी की तर्ज पर, भारतीय क्रिकेट लीडरशिप में लगातार निखार आया है. पूर्व क्रिकेटर मनिंदर सिंह की मानें, तो ‘बदलाव की यह कवायद मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी से शुरू हुई, जब उन्होंने भारतीय टीम को घरेलू मैदान का अजेय बादशाह बनाया. सौरव गांगुली इसे जबरदस्त तरीके से आगे ले गये, जब उन्होंने साबित कर दिया कि भारत विदेशी जमीन पर जीतने का दम रखता है. धौनी ने लीडरशिप का स्ट्रीट स्मार्ट और पेशेवर रवैया अपनाया, जिसमें जीत के लिए भावना से अधिक ठंडे दिमाग की जरूरत होती है.’ विराट कोहली इस कड़ी के अगले नायक हैं, जो ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान स्टीव वॉ की तरह आक्रामक खेल को हथियार बनाते हैं और मैच में तैयारी के लिए पेशेवर रवैया अपनाते हैं. इस कारगर मॉडल को लगातार अपना कर भारत लंबे समय तक विश्व क्रिकेट की शीर्ष पर बना रह सकता है.
टीम इंडिया के साथ सीनियर क्रिकेटर
जब सचिन दौर का अंत हो रहा था, तो इस बात का खतरा था कि कहीं आइपीएल की चकाचौंध में कहीं भारत का टेस्ट क्रिकेट में ही सूर्यास्त न हो जाये. भारत विश्व क्रिकेट का आर्थिक सुपर पावर है, और भारत में टेस्ट क्रिकेट के अंत का मतलब होता क्रिकेट के इस नैसर्गिक फॉर्मेट का अंत. लेकिन सचिन के साथी अपनी जिंदगी की दूसरी पारी में ऐसे खिलाड़ियों की पौध तैयार करने में जुटे हैं, जो लंबे समय तक भारत को विश्व विजेता बनाये रख सकते हैं. सीनियर टीम में मुख्य कोच अगर अनिल कुंबले हैं, तो इंडिया ए के स्तर पर खिलाड़ियों को तरासने का जिम्मा राहुल द्रविड़ थामे हुए हैं. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के शीर्ष प्रबंधन में सौरव गांगुली इन दोनों का पूरा साथ दे रहे हैं. महत्वपूर्ण यह है कि सौरव ने अनिल कुंबले को हेड कोच बनाने में अहम भूमिका निभायी और इससे पहले जब हेड कोच का प्रस्ताव द्रविड़ को दिया गया, तो उन्होंने कहा कि फिलहाल वे जूनियर क्रिकेट का हिस्सा बन खिलाड़ियों को तराशना चाहेंगे. नतीजा हर किसी के सामने है. जब अजिंक्य रहाणे चोटिल होकर बाहर होते हैं, तो करुण नायर तिहरा शतक लगाते हैं और जब विकेटकीपर बल्लेबाज रिधिमान बाहर होते हैं, तो पार्थिव पटेल टीम में उनकी वापसी मुश्किल कर देते हैं. टीम के नंबर एक तेज गेंदबाज के चोटिल होने का भी कोई असर नहीं पड़ता है, क्योंकि इशांत शर्मा जैसे अनुभवी और शार्दुल ठाकुर जैसे युवा गेंदबाज इंतजार में बैठे हुए हैं. तो कैसा है, भारतीय क्रिकेट का आनेवाला कल!
मेंटर और क्रिकेटरों का तालमेल
वर्ष 2016 यह बताता जा रहा है कि अगर कोहली का लीडरशिप मॉडल अपनी रफ्तार से चलता रहा और कुंबले-द्रविड़ की जोड़ी ने सप्लाई चेन को बनाये रखा, तो भारत घरेलू जमीन के साथ विदेश में भी विश्व विजेता बना रह सकता है. अगर बल्लेबाजी ब्रिगेड की अगुवाई विराट कोहली कर रहे हैं, तो गेंदबाजी की लीडरशिप आर आश्विन ने थाम रखी है. यह सच है कि आश्विन को अभी विदेशी विकेट पर वह कामयाबी नहीं मिली है, लेकिन आगे की ओर दिशा दिखाने के लिए उन्हें कुंबले से बेहतर मेंटर नहीं मिल सकता. इसके अलावा, मैदान पर कोहली-आश्विन की कप्तान-उपकप्तान की जोड़ी तैयार हो रही है, जैसी जोड़ी किसी दौर में सौरव और द्रविड़ की थी.
ऑल राउंडरों के भरोसे
इस टीम का एक और मजबूत पक्ष ऑल राउंडर हैं. आश्विन-रविंद्र जडेजा के साथ जयंत यादव जबरदस्त ऑल राउंडर के तौर पर तैयार हो रहे हैं, तो विदेशी विकेट पर यह काम हार्दिक पंड्या कर सकते हैं. पूर्व क्रिकेटर और कमेंटेटर वीवीएस लक्ष्मण कहते हैं- ‘लोग कहते थे कि ऑस्ट्रेलिया में क्रिकेट सिस्टम इतना दुरुस्त है कि अपने बड़े खिलाड़ियों के जाने के बाद वे आराम से वापसी कर सकेंगे. मैं ऐसा नहीं मानता हूं. हमारा सिस्टम उनसे बेहतर हो चुका है. ऑस्ट्रेलिया नयी मजबूत टीम बनाने में अब तक संघर्ष कर रहा है, जबकि भारत कोहली की अगुवाई में नयी टीम तैयार कर चुका है’. लेकिन, इस हकीकत के बीच एक जरूरी सवाल है भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और लोढ़ा समिति के बीच का टकराव कहीं विश्व विजय की ओर अग्रसर रथ को न रोक दे! नया साल इस सवाल का जवाब लेकर जरूर आयेगा.