अशोक कुमार गुप्ता,जब पाकिस्तान पंथनिरपेक्ष राज्य से मुस्लिम राष्ट्र बन सकता है,तो हिंदुस्तान हिन्दू राष्ट्र क्यों नही? आज हिन्दू समाज कोरोना और जमती वायरस से डर और लड़ रहा है।
आज देश यह सवाल पूछ रहा है ?जब जिन्ना के मरते ही वहा की सरकार पंथ निरपेक्ष की सोच हटाकर पाकिस्तान को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर सकती है, तो हिन्दुस्तान की काग्रेस सरकार हिन्दू राष्ट्र घोषित करने का मौका क्यों गवाया ? आज इस सवाल का जबाब काग्रेस से पूछने का समय आ गया है। हिन्दू बाहुल्य देश में caa का विरोध जिस तरह अल्पसंख्य समुदाय के लोगो ने किया था। उस विरोध के गर्त में मुख्य रूप से इस्लाम को बढ़ावा देने वाली सोच छुपी हुई थी।
अब समय आ गया है कि मोदी सरकार मानवता का दुश्मन कोरोना वायरस से देश सहित पूरी दुनिया की सुरक्षा करे।उसके बाद देश के दुश्मन जमातियों और देश के प्रति नफरत फैलाने वाले देशी-विदेशी जेहादियों पर कठोर कार्रवाई करते हुए। भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाए।
मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के गठन के बाद केवल 13 महीने जीवित रहे. उनके कार्यकाल में क़ानून मंत्री हिंदू थे. विदेश मंत्री का संबंध भी अल्पसंख्यक समुदाय से था.
आमतौर पर कहा जाता है कि बंटवारे से पहले पाकिस्तान में 24 फीसदी हिंदू रहते थे, जिनकी संख्या अब महज एक फीसदी ही रह गई है.
तो क्या मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान को धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाना चाहते थे? यासिर हमदानी कहते हैं, ”इस युग में शब्द धर्मनिरपेक्षता उतना मायने नहीं रखती थी जो अब रखती है।
यासिर लतीफ़ के अनुसार वो कहते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का अगर यह मतलब है कि राज्य में किसी भी नागरिक के ख़िलाफ़ धर्म और आस्था के आधार पर भेदभाव करने की अनुमति न हो तो ऐसा ही
धर्मनिरपेक्ष राज्य तो क़ायदे-आज़म बनाना चाहते थे.
उनके जीवन में तो पाकिस्तान सभी समूहों को शामिल करके चलने की नीति पर चल रहा था, लेकिन उनकी मृत्यु के छह महीने बाद पाकिस्तान में लक्ष्यों के प्रस्ताव को मंज़ूर कर लिया गया.
यासिर लतीफ़ के अनुसार ,”लक्ष्य प्रस्ताव पहली दरार थी जिसमें राष्ट्र की नींव धर्म पर रख दी गई और मोहम्मद अली जिन्ना के बाद जिन लोगों ने सत्ता संभाली उनके पास वोट की शक्ति नहीं थी, इसलिए उन्होंने इस्लाम का सहारा लिया.” 1956 में पाकिस्तान को अधिकारक रूप से मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर दिया. उस समय जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने हिन्दू राष्ट्र घोषित करने में बहुत बड़ी भूल किया.जिसकी खमियाजा आज हिंदुस्तान भुगत रहा है.
समय की मांग है कि हिंदुस्तान को समय रहते हिन्दू राष्ट्र बनाया गया नही जाएगा.तो देश कि गंगा-जमुनी तहजीब खत्म हो जाएगी.
आज हिन्दुस्तान में कोरोना वायरस के संक्रमण फ़ैलाने को लेकर तबगीली जमात के मौलव्वी हिन्दुस्तान के कोने-कोने में फ़ैलाने की कुकृत्यों पर बहस चल रही है.
संक्रमण ने देश के खिलाफ चलाई जा रही बड़ी साजिश का पर्दाफाश करके रख दिया.
आज हिन्दू बाहूल्य राष्ट्र भारत समय रहते चेता नही तो देश को जेहादी बर्बाद कर देंगे.
2011 की जनगणना के अनुसार हिन्दू आबादी वृद्धि दर 16.8%. और मुस्लिम आबादी वृद्धि दर 24.6% निकल कर आई है. अगर इसी तरह जमती और अन्य मुस्लिम धर्म प्रचारकों को देश.के मस्जिदों में धर्म की आड़ में फलने-फूलने देने से रोके नही गए तो हिन्दू समाज को भरी नुकशान उठाना पड़ जाएगा.
मुस्लिम धर्म के मानने वाले देशवासियों को भड़काने का काम करते है,विभिन्न संगठनों के जमती या मौलव्वी.
जमातियों के करतूत की पाप का घड़ा भर गया है.
कोरोना वायरस ने वह कार्य कर दिया ,जो देश की सरकार वर्षो से कर नही पैब थी. आज तक की सरकार मस्जिद में पुलिस बल भेजने से कतराती रही.
देश की सभी मस्जिदों में जमातियों की धर-पकड़ की कार्रवाई शुरू हुई,तो सबसे बड़ी बहस आम भारतीयों के जेहन मर एक ही सवाल उठता है कि बिना वैध परमिट के विदेशी नागरिक वर्षो से मस्जिदों में कैसे छुपे हुए थे।मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर इतनी बड़ी संख्या में टूरिष्ट वीजा पर विदेशी नागरिकों को किसने छुपाया. उन देश द्रोहियो पर भी कठोर कार्रवाई की समय आ गया है.देश में टूरिष्ट वीजा लेकर देश को बांटने निकले जमातियों पर बैन लगाया जाए.
इन सभी सवालों को भारत सरकार और प्रदेश सरकारों को जनता की सवालों जबाब भविष्य में देना पड़ेगा.
बाबा साहब ने कहाँ था ……..
इस्लाम और पाकिस्तान के बारे में बाबासाहब की सोच ऐसे सीधी, सरल और सपाट है, एकदम स्पष्ट. कहीं कोई संभ्रमावस्था नहीं है. जीवन के अलग-अलग मुकाम पर भूमिका बदलने का भी प्रयास नहीं है. ‘हिन्दू – मुस्लिम एक साथ नहीं रह सकते इसलिए विभाजन आवश्यक हैं’ ऐसा स्पष्ट प्रतिपादन.
हम बाबासाहब की विभाजन की भूमिका से सहमत होंगे या नहीं होंगे. किन्तु उनकी दूरदृष्टि और सोच की स्पष्टता देखकर मन अचंभित रह जाता है!
हिंदुओं के नैसर्गिक अधिकार
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान मुसलमानों की पितृभूमि नहीं हैं. यूरोपीय शैली के ये राष्ट्र-राज्य इस्लाम को अपने राष्ट्रीय धर्म के रूप में मान्यता देते हैं, पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों की जवाबदेही नहीं लेते.
(यह लेखक की निजी राय है।जिसे विभिन्न लेखको की विचार है)