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Chhattisgarh: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने की गणेश शंकर विद्यार्थी को भारत रत्न सम्मान देने की मांग

Chhattisgarh: राज्य गठन के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है जब छत्तीसगढ़ के किसी मुख्यमंत्री ने भारत रत्न के लिए आवाज उठाई है।

रायपुर। Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गणेश शंकर विद्यार्थी को भारत रत्न देने की मांग दोहराई है। राज्य गठन के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है जब छत्तीसगढ़ के किसी मुख्यमंत्री ने भारत रत्न के लिए आवाज उठाई है। स्व. विद्यार्थी को जयंती पर निडर पत्रकारिता के पर्याय बताते हुए मुख्यमंत्री बघेल ने तर्क दिया है कि अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार एवं धार्मिक उन्मादियों के खिलाफ मुखरता से अपनी कलम चलाकर नौजवानों को प्रेरित किया।

प्रदेश में मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन पर कानपुर में आयोजित व्याख्यान में भी बघेल शामिल हुए थे। उस समय भी मुख्यमंत्री ने विद्यार्थी की तारीफ करते हुए भारत रत्न की मांग की थी। एकबार फिर उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार को आजादी के आंदोलन में विद्यार्थी के योगदान को ध्यान में रखते हुए भारत रत्न देना चाहिए। इससे पहले भाजपा की तरफ से जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की मांग उठी थी तब तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने भी समर्थन किया था

कौन थे गणेश शंकर विद्यार्थी

गणेश शंकर विद्यार्थी देश में आजादी के पहले पत्रकारिता के माध्यम से स्वराज का झंडा बुलंद करने वाले एक विचार और क्रांतिकारी थी। इन्होंने उस दौर की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका, सरस्वती, कर्मयोगी और अभ्युदय जैसे पत्र- पत्रिकओं का संपादन किया। कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में भाग लेने तथा अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध निर्भीक होकर “प्रताप” में लेख लिखने के संबंध में ये 5 बार जेल गए और “प्रताप” से कई बार जमानत मांगी गई। कुछ ही वर्षों में वे उत्तर प्रदेश (तब संयुक्तप्रात) के चोटी के कांग्रेस नेता हो गए।

1925 ई. में कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की स्वागत-समिति के प्रधानमंत्री हुए तथा 1930 ई. में प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हुए। इसी नाते सन् 1930 ई. के सत्याग्रह आंदोलन के अपने प्रदेश के सर्वप्रथम “डिक्टेटर” नियुक्त हुए। विद्यार्थी बड़े सुधारवादी किंतु साथ ही धर्मपरायण और ईश्वरभक्त थे। वक्ता भी बहुत प्रभावपूर्ण और उच्च कोटि के थे। यह स्वभाव के अत्यंत सरल, किंतु क्रोधी और हठी भी थे। कानपुर के सांप्रदायिक दंगे में मुस्लिमों द्वारा 25 मार्च 1931 ई. को इनकी हत्या कर दी गई|