देवेंद्र कुमार: क्या चिराग पासवान (Chirag Paswan) को बिहार (Bihar) में अलग होकर विधान सभा चुनाव लड़वाना बीजेपी की रणनीति थी. क्या नीतीश कुमार से नाराज लोगों के वोट बांटने के लिए यह तीर चला गया था. जो सीधे निशाने पर जा बैठा? बिहार चुनाव परिणाम के हालिया रूझान तो कम से कम ऐसा ही इशारा कर रहे हैं.
प्री-प्लान था चिराग का नीतीश के खिलाफ उतरना?
राजनीतिक पंडितों के मुताबिक लगातार 15 साल लंबे शासन की वजह से बिहार की जनता में नीतीश कुमार की सरकार के प्रति एंटी इनकंबेंसी लहर बन चुकी थी. जिसे बीजेपी और जेडीयू पिछले साल ही भांप लिया था. NDA गठबंधन ने कई आंतरिक सर्वे करवाए, जिसमें पता लगा कि आने वाले चुनावों में हार-जीत का अंतर बहुत कम रहेगा. ऐसे में सरकार से नाराज लोगों के वोट बांटने और RJD को पटखनी देने के लिए रणनीति तैयार की गई. इस रणनीति के खास किरदार थे LJP के अध्यक्ष चिराग पासवान. योजना के तहत उन्हें बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ ताल ठोंकने के लिए तैयार किया गया. जिसके लिए वे तैयार हो गए.
नीतीश पर निशाने साधकर विरोधियों के वोट झटके
राजनीतिक एक्सपर्टों के मुताबिक चिराग पासवान ने रणनीति पर काम करते हुए सधे अंदाज में नीतीश पर निशाने साधने शुरू किए. साथ ही वे खुद को पीएम नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे. इसी दौरान लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष रामविलास पासवान को देहांत हो गया. जिसके बाद बीजेपी ने उनके अंतिम संस्कार के लिए राजकीय सम्मान की घोषणा की. इससे बिहार में वंचित तबके खासकर पासवान और मुसहर जाति में चिराग और बीजेपी के प्रति सहानुभूति पनपी.
RJD से छिटककर चिराग से जुड़ते चले गए वोटर
जैसे-जैसे चुनाव का दौर आगे बढ़ा, चिराग की रैलियों में भी हजारों की भीड़ उमड़ने लगी. वे हरेक रैली में नीतीश कुमार के शासन पर जोरदार प्रहार करते रहे. साथ ही लोगों से अपील करते कि नीतीश को सबक सिखाने के लिए वे उन्हें वोट दें. यह भी कहते कि यदि किसी सीट पर LJP के उम्मीदवार उपलब्ध न हो तो वहां बीजेपी को वोट कर दें. चिराग की इस अपील का असर रहा कि वे बड़ी संख्या में नीतीश से नाराज लोगों के वोट बटोरने में सफल रहे. जिसका खामियाजा RJD को भुगतना पड़ा.
क्या सत्ता के लिए फिर बढ़ा RJD इंतजार ?
बिहार चुनावों में दोपहर 12 बजे तक के ताजा रूझानों के मुताबिक बीजेपी 70, RJD 60, जेडीयू 53 और कांग्रेस 20 सीटों पर बढ़त बनाए हुए थी. जबकि LJP 6 सीटों पर आगे चल रही थी. ये रूझान यदि रिजल्ट में तब्दील होते हैं बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की सरकार दोबारा बनना तय हो जाएगा. वहीं RJD को एक बार फिर सत्ता तक पहुंचने के लिए और पांच साल का इंतजार करना पड़ेगा.