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बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन क्या बंगाल में पार्टी की राह करेगा मुश्किल?

बिहार में कांग्रेस अपना पुराना प्रदर्शन भी दोहराने में फेल रही जबकि वामपंथी दलों ने बेहतर प्रदर्शन किए हैं. ऐसे में बिहार चुनाव का सियासी असर पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव पर पड़ना है. ऐसे कांग्रेस के बंगाल में सत्ता की वापसी की राह में एक तरफ दिक्कतें बढ़ेंगी तो दूसरी तरफ लेफ्ट के साथ सीट शेयरिंग में कांग्रेस की बार्गेनिंग पॉजिशन पर भी असर पड़ सकता है. 

बिहार चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन महागठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई है. कांग्रेस अपना पुराना प्रदर्शन भी दोहराने में फेल रही जबकि वामपंथी दलों ने बेहतर प्रदर्शन किए हैं. ऐसे में बिहार चुनाव का सियासी असर पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव पर पड़ सकता है. कांग्रेस के बंगाल में सत्ता की वापसी की राह में एक तरफ दिक्कतें बढ़ेंगी तो दूसरी तरफ लेफ्ट के साथ सीट शेयरिंग में कांग्रेस की बार्गेनिंग पॉजिशन पर भी असर पड़ सकता है. 

दरअसल, बिहार में कांग्रेस महागठबंधन के तहत 70 सीटों पर चुनाव लड़कर महज 19 सीटें ही जीत सकी है जबकि पिछले चुनाव में 27 सीटें जीती थी. वहीं, वामपंथी दलों ने 29 सीटों पर लड़कर 16 सीटों पर जीत दर्ज की है. इस तरह से लेफ्ट का स्ट्राइक रेट कांग्रेस से काफी बेहतर रहा. यही वजह है कि महागठबंधन के सत्ता में न आने का ठीकरा लेफ्ट ने कांग्रेस पर फोड़ा है. वहीं, कांग्रेस ने बंगाल के पिछले चुनाव के नतीजों की याद दिलायी. 

सीपीआई (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने गुरुवार को कहा था कि महागठबंधन में कांग्रेस को ज्यादा सीटें दी गईं अगर हमारे ज्यादा प्रत्याशियों को टिकट दिए जाते तो परिणाम हमारे पक्ष में होता. गठबंधन में कांग्रेस को जो 70 सीट दिए गए, वह उसे संभाल नहीं सकी. कांग्रेस अपनी सीटें कुछ कम कर सकती थी. हमें कुछ और सीटें मिल सकती थी और आरजेडी कुछ अन्य सीट अपने दम पर लड़ सकती थी. ऐसे होता तो महागठबंधन के पक्ष में नतीजे होते. 

वहीं, पश्चिम बंगाल के कांग्रेस प्रभारी जितिन प्रसाद ने इंडिया टुडे से कहा है, ‘मैं दीपांकर भट्टाचार्य का ध्यान साल 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों की ओर ले जाना चाहता हूं, जिसमें कांग्रेस ने 44 सीटें जीतकर 50 फीसदी जीत प्रतिशत हासिल किया था, जिसकी तुलना में वामदलों ने 33 सीटें जीती थीं और उसका जीत प्रतिशत 16.17 फीसदी रहा था. सियासी दलों के बीच गठबंधन विचारधारा और साझा लक्ष्य के आधार पर बना था. इसीलिए उसे नतीजों के आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए.’

बता दें कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामदलों के बीच गठबंधन की घोषणा पहले ही की जा चुकी है. बिहार में पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे सीमांचल क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. इसका असर अगले साल बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है. इसमें सबसे ज्यादा सीट शेयरिंग को लेकर दोनों दलों के बीच टकराव की स्थिति बन सकी है. 

2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 92 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 44 सीटें जीतने में सफल रही थी. वहीं, वामदलों ने 200 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 33 सीटें जीत सकी थी. वहीं, बीजेपी भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में महज तीन सीट ही जीत सकी हो, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में 128 विधानसभा सीटों पर उसे बढ़त मिली थी. इस तरह से बंगाल में बीजेपी और ममता बनर्जी के बीच सीधी फाइट मानी जा रही है, जिसे लेफ्ट और कांग्रेस त्रिकोणीय बनाना चाहते हैं. 

हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद जिस तरह से कांग्रेस और लेफ्ट दलों के बीच बयानबाजी हो रही है, उससे बंगाल और असम में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के गठबंधन पर सियासी असर पड़ सकता है. सीपीआई (माले) ने बिहार में कांग्रेस के ज्यादा सीटों पर लड़ने के मुद्दे को उठाया है, उससे बंगाल में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर आपसी सहमति बननी मुश्किल होगी. इसके अलावा ओवैसी की बिहार के सीमांचल में जिस तरह से दस्तक हुई है, बंगाल में भी कांग्रेस, लेफ्ट ही नहीं बल्कि ममता के लिए बड़ी चुनौती है.