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कोरोना अस्पताल बनने के बाद एम्स पटना में अब तक 584 संक्रमितों की जान चली गई। बिहार के सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमितों की मौत यहीं हुई। हाल के दिनों में भी एम्स में मरने वालों की संख्या अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा हो रही है। इसके बाद दूसरे स्थान पर एनएमसीएच और पीएमसीएच का स्थान है। इसके पीछे कारण यह है कि सबसे ज्यादा गंभीर मरीजों की भर्ती एम्स पटना में ही हो रही है।
एम्स पटना में अभी जहां 160 मरीज हैं। वही पीएमसीएच में 22 और एनएमसीएच में लगभग 20 मरीज हैं। उसमें भी एनएमसीएच और पीएमसीएच में ज्यादा गंभीर मरीज भर्ती नहीं है। यही कारण है कि मरने वालों की संख्या एम्स में ज्यादा दिखाई देती है , जबकि अन्य अस्पतालों में कम। शुरुआती दिनों से सिर्फ वही मरीज एम्स में भर्ती होते थे, जो काफी गंभीर होते थे और जिनको आईसीयू, वेंटीलेटर अथवा हाई फ्लो ऑक्सीजन की जरूरत होती थी। प्रारंभ में यहां सिर्फ रेफर किए हुए मरीजों की भर्ती होती थी। भर्ती होने वाले अधिकांश मरीजों की हालत गंभीर रहती थी।
एम्स पटना में कोरोना के नोडल पदाधिकारी डॉ. संजीव कुमार ने बताया कि एम्स पटना में अब तक 3775 मरीज भर्ती किए गए। इनमें सभी मॉडरेट अथवा सिवियर यानी कोरोना के दूसरे और तीसरे चरण के गंभीर मरीज शामिल थे। इनमें 2954 लोग स्वस्थ होकर डिस्चार्ज कर दिए गए।
प्लाज्मा थेरेपी भी यहां रही कारगर
एम्स पटना में लगभग 385 लोगों को प्लाज्मा भी चढ़ाया गया। उसमें 365 लोगों की जान बच गई। नोडल पदाधिकारी ने बताया कि प्लाज्मा सिर्फ मॉडरेट केस में ही दिया जाता है । सीवियर केस में सफलता दर बहुत कम है। एम्स के चिकित्सकों द्वारा काफी सफलतापूर्वक प्लाजमा थेरेपी से मरीजों का इलाज किया गया है। राखी आईसीएमआर की गाइड लाइन में प्लाज्मा थेरेपी को मरीजों की जान बचाने में ज्यादा कारगर नहीं बताया गया है । एम्स अधीक्षक ने भी अपने पत्र में गंभीर मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने की बात कही है।
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