बिहार के सरकारी अस्पतालाओं में मुफ्त दवा वितरण कार्यक्रम में लापरवाही उजागर हुई है। इसके लिए जिम्मेवार डॉक्टरों और कर्मियों का वेतन रोक दिया गया है। साथ ही उनसे जवाब तलब करने का निर्देश भी जिलों के सिविल सर्जन को दिया गया है। राज्य स्वास्थ्य समिति ने इस मामले में लापरवाही बरतने वाले 21 जिलों के साथ ही अनुमंडल स्तर के औषधि भंडार प्रभारी चिकित्सा अधिकारी, भंडारपाल, फार्मासिस्टों के साथ ही जिला मूल्यांकन व अनुश्रवण अधिकारियों का वेतन-मानदेय रोक दिया है। साथ ही संतोषजनक जवाब नहीं देने पर उनपर विभागीय कार्रवाई का निर्देश दिया है।
राज्य के सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवा वितरण का कार्यक्रम चल रहा है। निशुल्क दी जा रही दवाओं का वितरण सही प्रकार से हो रहा है या नहीं, भंडार में दवा है या नहीं, इसकी मॉनिटरिंग ई-औषधि ड्रग एंड वैक्सीन डिस्ट्रीब्यूशन मैनेजमेंट सिस्टम से होती है। लेकिन 21 जिले ऐसे हैं जिन्होंने दवा वितरण का पूर्ण ब्योरा अपलोड नहीं किया है। इससे माना जा रहा है कि उन्होंने दवा वितरित की ही नहीं।
राज्य स्वास्थ्य समिति ने छह सूचकांक निर्धारित कर इस व्यवस्था की समीक्षा की। समीक्षा में भोजपुर, पश्चिम चंपारण,समस्तीपुर,औरंगाबाद, नवादा, अररिया, जमुई, बेगूसराय, वैशाली, कैमूर, भागलपुर, शिवहर, मधुबनी, लखीसराय, सुपौल, शेखपुरा, पटना, गया, नालंदा, पूर्णिया और कटिहार का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। भोजपुर, अररिया, प. चंपारण, नवादा और जमुई का प्रदर्शन काफी खराब है।
दवा वितरण कार्यक्रम के मूल्यांकन और मॉनिटरिंग में टाल-मटोल की नीति अपनाई जा रही थी। सरकार के आदेश बाद भी अधिकारी और कर्मचारी सुधरने का नाम नहीं ले रहे थे। इसलिए दोषी अधिकारी और कर्मचारियों के वेतन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी गई है। -मनोज कुमार, कार्यपालक निदेशक, स्वास्थ्य समिति