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Junior doctor’s strike : सात दिन में टले 27 ऑपरेशन, मरीज कंगाल, निजी क्लीनिक मालामाल

भागलपुर। जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) में  जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल का सीधा असर गरीब और मध्यवर्गीय मरीजों की जेबों पर पड़ रहा है। इलाज तो किसी तरह मरीजों का हो रहा है, लेकिन सर्जरी पूरी तरह प्रभावित है। सात दिनों से चल रही इस हड़ताल में करीब 27 ऑपरेशन टाल दिए गए। हर्निया, गोल ब्लॉडर जैसे कई ऑपरेशन नहीं होने से कुछ मरीजों को निजी नर्सिंग होम का सहारा लेना पड़ा। इस हड़ताल से निजी नर्सिंग होम वालों की चांदी ही चांदी है।

अस्पताल में मरीज परेशान हैं कोई देखने वाला नहीं है। मंगलवार को 30 फीसद मरीज इलाज के लिए मेडिकल अस्पताल नहीं पहुंचे, जबकि आउटडोर में 778 मरीजों का इलाज हुआ। वहीं, सर्जरी विभाग में एक मरीज का ऑपरेशन हुआ।

न आउटडोर न इंडोर, कहां जाएं मरीज

हड़ताल की वजह से अस्पताल की व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। मरीज बेहाल हैं। कहने को तो आउटडोर और इंडोर पूरी तरह से खुला हुआ है, लेकिन अस्पताल की अंदरुनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। मंगलवार को आउटडोर में कुछ ही चिकित्सक दिखे, जबकि इंडोर विभाग में चिकित्सकों की कमी रही। आउटडोर में करीब पांच सौ मरीजों का निबंधन हुआ। आउटडोर का पैथोलॉजी कक्ष भी पूरी तरह खाली रहा। यहां न तकनीशियन दिखा और न ही कोई कर्मचारी।

बाबू हर्निया का ऑपरेशन कराना है…

मंगलवार की दोपहर के एक बजे थे, 56 वर्षीय बुजुर्ग महेंद्र यादव को हर्निया का ऑपरेशन कराना था। हर्निया की वजह से काफी परेशान थे। अस्पताल के इस विभाग से उस विभाग का चक्कर लगा रहे हैं। उनके साथ रहे पुत्र ने बताया कि चिकित्सक ने इलाज के बाद जरूरी जांच कराने को कहा है जांच कहां होगी, कुछ पता नहीं है। पैथोलॉजी में भी कोई नहीं है।

ढाई वर्षीय पोते को इलाज के लिए महिला दिखी परेशान

पोते का इलाज कराने पहुंची महिला भी काफी परेशान दिखी। चिकित्सक के नहीं रहने के कारण महिला एक कक्ष से दूसरे कक्ष का चक्कर लगाती रही। अंत में लाचार होकर वह अस्पताल परिसर में बैठ गई। इसी तरह कुछ युवक भी इलाज कराने पहुंचे थे। चिकित्सक ने ऑपरेशन लिखा था, लेकिन हड़ताल की वजह से दूसरे दिन मंगलवार को ऑपरेशन नहीं हो सका। ऐसे में परेशान होकर सभी आउटडोर के बाहर खड़ा रहे। इलाज नहीं होता देख सभी सिर पकड़कर बैठ गए। रमेश कुमार के मुताबिक, मेडिसिन वार्ड में नर्स नहीं थी तो पता चला कि अभी शिफ्ट चेंज हो रहा है। इसी तरह सन्हौला निवासी 59 वर्षीय एक बुजुर्ग को सांस में तकलीफ, सर्दी, खांसी व बुखार की समस्या को लेकर दोपहर बाद दो बजे भर्ती कराया गया।

ल्थ मैनेजर भी रहे गायब, करना पड़ा लंबा इंतजार

हड़ताल की वजह से इलाज में तो मरीजों को विलंब तो हो रहा है, साथ ही दवा के लिए भी लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। हड़ताल का असर इमरजेंसी पर भी पड़ा है। वहां पर दोपहर एक बजे से लेकर कोई हेल्थ मैनेजर भी नहीं थे। मरीजों को इस दौरान इलाज के लिए परेशान होना पड़ा। नवगछिया की इस्लामपुर निवासी महिला की तबीयत काफी खराब थी। भर्ती में विलंब होने से काफी परेशान हो गए। इंडोर विभाग में औषधि, नेत्र, ईएनटी, हड्डी, स्त्री व प्रसव रोग विभाग में दोपहर बाद डेढ़ घंटे तक चिकित्सक नहीं दिखे।

सदर अस्पताल में ऑपरेशन के बाद एक ही बेड पर लिटाया

सदर अस्पताल इमरजेंसी में मंगलवार को मोतियाबिंद ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन थियेटर से निकालने के बाद एक ही बेड पर दो मरीज को लिटा दिया गया। यह देखकर मरीज के स्वजन विरोध करने लगे। इसके बाद दो बेड को जोड़कर तीन मरीजों को लेटा दिया गया। इसकी जानकारी होने के बाद भी किसी अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया। तैनात कर्मियों ने कहा कि वार्ड में आठ बेड है। छह बेड का कमरे में लगाया गया है दो बेड बाहर है। अस्पताल में बेड की कमी है।

सदर अस्पताल पहले से ही लाचार और बेबस

शहर का सदर अस्पताल पहले ही लाचार और बेबस है। अब मरीज काफी पशोपेस में हैं। यहां मरीजों को इलाज कम और परेशानी का डोज ज्यादा दिया जाता है। मामूली रूप से घायल का भी इलाज सदर अस्पताल में नहीं होता है। सीधा मरीजों को जेएलएनएमसीएच ही रेफर कर दिया जाता है। उधर, हड़ताल के कारण मरीजों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। मामूली मरीज को भी इलाज करने में यहां के चिकित्सकों को परेशानी होती है। यहां चिकित्सक और कर्मियों का ड्यूटी से गायब रहना पुरानी बात है।