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2022 में मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं अखिलेश- शिवपाल; YMD फैक्टर पर फोकस; ब्राह्मणों के लिए अलग रणनीति,

उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी ने भी जोर-शोर से तैयारियां शुरू कर दी हैं। अखिलेश यादव इस बार किसी बड़ी पार्टी से गठबंधन नहीं करेंगे, बल्कि छोटे-छोटे कई दलों को मिलाकर बड़ा गठबंधन तैयार करेंगे।

खास बात ये है कि इस बार विधानसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव ने YMD यानी यादव, मुस्लिम और दलित फैक्टर पर पूरा फोकस किया हुआ है। इसके अलावा BJP और कांग्रेस से नाराज ब्राह्मणों को भी अपने पाले में लाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। अखिलेश ने ब्राह्मणों के लिए अलग रणनीति तैयार की है।

दूरियां बरकरार, लेकिन अखिलेश और चाचा शिवपाल फिर साथ आएंगे
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि समाजवादी पार्टी इस बार चाचा-भतीजे यानी अखिलेश और शिवपाल को साथ लेकर चुनाव मैदान में उतर सकती है। हालांकि, ये साफ है कि शिवपाल वापस समाजवादी पार्टी में अपनी प्रगतिशील समाज पार्टी (लोहिया) का विलय नहीं करेंगे, बल्कि गठबंधन का हिस्सा जरूर बन सकते हैं। दोनों के बीच सीट बंटवारे को लेकर जरूर तनाव हो सकता है।

मुलायम से मिले शिवपाल
चाचा शिवपाल सिंह यादव को मनाने के लिए अखिलेश जुटे हुए हैं। इसके लिए वह पिता मुलायम सिंह यादव की मदद भी ले रहे हैं। बताया जा रहा है कि गठबंधन के बाद विवाद न हो इसके लिए अभी से कई पॉइंट्स पर सहमति बनाने की कोशिश चल रही है।

शनिवार को सैफई में मुलायम सिंह यादव की पौत्री की शादी में पूरा परिवार एकजुट हुआ था। अखिलेश और मुलायम वहां एक साथ पहुंचे। शिवपाल पहले से ही मौजूद रहे। जानकारी होते ही शिवपाल यादव बड़े भाई मुलायम से मिलने उनके घर पहुंचे। करीब एक घंटे तक दोनों के बीच बातचीत हुई। इसके बाद मुलायम और अखिलेश शादी में आए, लेकिन अखिलेश के आने से पहले शिवपाल पंडाल छोड़कर वापस जा चुके थे।

मिशन 2022 के लिए समाजवादी पार्टी की प्लानिंग

1. अलग-अलग क्षेत्र में सक्रिय छोटे दलों को एक साथ लाकर चुनावी मैदान में उतरना।
2. BJP गठबंधन में शामिल रहीं छोटी पार्टियों को अपने पाले में करना।
3. BJP, कांग्रेस और BSP के नाराज नेताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल करना।
4. मुस्लिम, यादव और दलितों के वोटबैंक को मजबूत करना। इनके लिए बड़े नेताओं को गठबंधन में शामिल करना।
5. BJP और कांग्रेस से नाराज चल रहे ब्राह्मण वोटर्स को सपा के साथ जोड़ना।

बसपा के नेताओं का सपा में आने का क्या मतलब है?

बहुजन समाज पार्टी यानी BSP में ज्यादातर नेता दलित और पिछड़े वर्ग के हैं। इन नेताओं की जमीनी पकड़ काफी मजबूत है। इनमें से ज्यादातर नेताओं का बैकग्राउंड संघर्षशील है। कुल मिलाकर पब्लिक में इनकी अच्छी पहचान है। ऐसे नेता अब समाजवादी पार्टी से जुड़ने लगे हैं।

दो दिन पहले ही बसपा से निष्कासित 7 विधायक अखिलेश से मिलने पहुंचे थे। अगर ये लोग बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी जॉइन कर रहे हैं तो इसका सीधा फायदा सपा को होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि, इन नेताओं के क्षेत्र का वोट शेयर तो सपा में जाएगा ही साथ में प्रदेश में अन्य जगहों के दलित और पिछड़े वर्ग के वोटर्स भी सपा की तरफ कदम बढाएंगे।

एक समय बसपा के बड़े नेताओं में शुमार रहे केशव देव मौर्या ने 2008 में महान दल का गठन किया था। ये कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, सैनी, कम्बोज, भगत, महतो, मुराव, भुजबल और गहलोत बिरादरी का समूह है। उत्तर प्रदेश में इन जातियों की कुल आबादी 8% है। एक समय में ये बसपा का मजबूत वोटबैंक हुआ करता था।

2017 के विधानसभा चुनाव में महान दल ने 71 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिन्हें करीब साढ़े 6 लाख वोट मिले हैं। चूंकि BJP में डिप्टी सीएम केशव मौर्य खुद इसी जाति से आते हैं। इसलिए उनको टक्कर देने के लिए समाजवादी पार्टी महान दल को अपने गठबंधन में शामिल कर सकती है। महान दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष केशव देव मौर्य कहते हैं कि हमारे नेता अखिलेश यादव ही हैं।

2. जनवादी पार्टी सोशलिस्ट
लोकसभा चुनाव के समय से सपा और बसपा का साथ देने वाली जनवादी पार्टी सोशलिस्ट की पकड़ पूर्वांचल में निषाद और चौहान बिरादरी के बीच काफी अच्छी मानी जाती है। लोकसभा चुनाव के बाद बसपा और सपा अलग हो गए, लेकिन जनवादी पार्टी ने अखिलेश का साथ नहीं छोड़ा।

जनवादी पार्टी शोषित के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय चौहान का कहना है कि भाजपा से लोग छला महसूस कर रहे हैं। पिछले साढ़े चार साल की सरकार में प्रदेश की जनता हताश और निराश हो गई। कोरोना महामारी में जिस तरीके से लोगों को परेशानियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा, उससे सरकार की अव्यवस्था की भी पोल खुल गई। आगामी चुनाव में हम अखिलेश यादव के साथ मिलकर 2022 में उनको मुख्यमंत्री बनाएंगे।

3. राष्ट्रीय लोक दल
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय लोक दल (RLD) की पकड़ पश्चिमी यूपी में काफी मजबूत मानी जाती है। हालांकि, पिछले कुछ चुनाव परिणाम RLD के लिए अच्छे नहीं रहे हैं। चौधरी अजीत सिंह के निधन के बाद अब RLD की कमान उनके बेटे जयंत चौधरी के पास है। जयंत युवा हैं और उनकी अखिलेश यादव से अच्छी दोस्ती भी है।

पश्चिमी यूपी में जाट और किसान RLD के मजबूत वोटर्स माने जाते हैं। सपा का पहले से ही RLD से गठबंधन है। इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगले साल यानी 2022 विधानसभा चुनाव में भी दोनों पार्टी एकसाथ चुनावी मैदान में होंगे।

जब अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल BJP के चाण्क्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह से मिल रहीं थी तो उस वक्त यहां लखनऊ में उनकी छोटी बहन पल्लवी पटेल अपना दल (कृष्णा) गुट की तरफ से सपा मुखिया अखिलेश यादव से मिलने पहुंची थीं। सूत्रों के मुताबिक, दोनों के बीच गठबंधन की बात लगभग फाइनल हो चुकी है।

2017 विधानसभा चुनाव भी अपना दल कृष्णा गुट ने सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ मिलकर लड़ा था। हालांकि इसमें अपना दल ने एक भी सीट पर जीत नहीं हासिल की थी। इस बार भी अगर अपना दल कृष्णा गुट सपा के साथ गठबंधन में शामिल होता है तो इसका असर पूर्वांचल के कई जिलों पर पड़ेगा। इसमें मिर्जापुर, वाराणसी, प्रयागराज, गाजीपुर, आजमगढ़ जैसे जिले शामिल हैं। इन जिलों में पटेल वोटर्स की संख्या काफी अधिक है।

भागीदार मोर्चा बनने की भी तैयारी

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ही छोटे दलों को नहीं जोड़ रहे हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर भी पिछले दो साल से उत्तर प्रदेश में छोटे दलों का गठबंधन बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। भागीदारी संकल्प मोर्चा के नाम से बनाए गए गठबंधन में वह अब तक दस दलों को जोड़ चुके हैं। इसमें उनकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, के अलावा पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की राष्ट्रीय अध्यक्ष जन अधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल का अपना दल, ओवैसी की AIMIM शामिल हैं।

इसके अलावा आम आदमी पार्टी को भी इसमें जोड़ने की तैयारी है। इसके लिए ओम प्रकाश राजभर ने आप के सांसद संजय सिंह से मुलाकात भी की है। फिलहाल भागीदार मोर्चा कौन से राष्ट्रीय दल के साथ रहेगा। इसकी स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो पा रही है माना जा रहा है कि भागीदार मोर्चा के कुछ नेताओं ने बसपा से भी संपर्क किया। लेकिन उनसे सीट स्पष्ट ना मिल पाने की वजह से दूरी बना ली। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी से भी भागीदार मोर्चा के नेताओं के द्वारा संपर्क किया गया, लेकिन सीट की स्थिति स्पष्ट न होने की वजह से वहां से भी दूरी बनाई गई है।