कोरोना की दूसरी लहर ने राजधानी दिल्ली समेत देशभर में भारी तबाही मचाई थी। एम्स के झज्जर परिसर में अप्रैल से लेकर जून तक भर्ती हुए कुल मरीजों में 19.5 फीसदी की जान चली गई। हालत यह थी कि अस्पताल में ऑक्सीजन सपोर्ट पर गए एक तिहाई से अधिक मरीजों ने दम तोड़ दिया। एम्स के झज्जर परिसर में दूसरी लहर के दौरान कुल 2080 मरीज भर्ती हुए और इनमें से 406 की मौत हो गई। हालांकि पिछले साल पहली लहर के दौरान एम्स दिल्ली में भर्ती हुए मरीजों में सिर्फ 1.4 फीसदी की मौत हुई थी। यह अध्ययन सिर्फ 144 भर्ती कोरोना मरीजों पर किया गया था।
एम्स के झज्जर परिसर में दूसरी लहर के दौरान भर्ती हुए मरीजों में से 1067 मरीजों यानी 51 फीसदी मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी। इनमें से सिर्फ 63 फीसदी मरीज जिंदा रहे और 37 फीसदी की मौत हो गई। चौंकाने वाली बात यह रही कि वेंटिलेटर पर गए 86 फीसदी मरीजों की मौत हो गई। यानी वेंटिलेटर पर गए प्रत्येक 100 मरीजों में से सिर्फ 14 मरीज जिंदा बचे।
दो फीसदी से कम को टीके की दोनों खुराक मिली
अस्पताल में भर्ती हुए दो फीसदी से भी कम लोगों को कोरोना के टीके की दोनों खुराक लगी थीं। इतना ही नहीं अस्पताल में भर्ती हुए 52 फीसदी लोगों को कोई न कोई दूसरी बीमारी भी थी। वहीं कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों में 76 फीसदी को टीका नहीं लगा था और 65 फीसदी मृतकों को कोई न कोई दूसरी बीमारी थी। यह जानकारी एम्स के एक ताजा अध्ययन में सामने आई है जिसमें संस्थान में भर्ती हुए कोरोना मरीजों को लक्षण, टीके की स्थिति, मृतकों की संख्या, अस्पताल में मरीज की स्थिति आदि पर आंकड़े एकत्र किए गए हैं।
टीकाकरण पहले होता तो स्थिति बेहतर होती
एम्स झज्जर परिसर में अप्रैल से लेकर जून तक भर्ती हुए मरीजों में ऐसे लोगों की संख्या अधिक थी जिन्हें टीका नहीं लगा। इस वजह से मृत्यु दर अधिक रही। कुल भर्ती 2080 मरीजों में भर्ती होने से दो हफ्ते पहले तक 14.2 फीसदी को टीके की एक खुराक लगी थी। 1.7 फीसदी लोगों को ही टीके की दोनों खुराक मिल पाई थी। अस्पताल में इस अवधि के दौरान जान गंवाने वाले 406 मृतकों में 76.4 फीसदी यानी 294 मरीज ऐसे थे जिन्हें टीके की एक भी खुराक नहीं लगी थी। टीके की दोनों खुराक लगे सिर्फ एक मरीज की मौत हुई। मृतकों में 65.3 फीसदी किसी न किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित थे। 31.8 फीसदी मृतकों को हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत थी और 32 फीसदी डायबिटीज के शिकार थे।
रेमडेसिविर लेने वालों में भी एक तिहाई से अधिक मृत्यु दर
एम्स के झज्जर परिसर में भर्ती हुए जिन मरीजों को रेमडेसिविर और टॉसलीजुमैब जैसा दवाएं दी गई थीं, उनमें भी मृत्यु दर काफी अधिक रही। कुल भर्ती मरीजों में 402 को रेमडेसिविर दी गई। इनमें से 146 यानी 36.2 फीसदी मरीजों की मौत हो गई। कुल 37 मरीजों को टॉसलीजुमैब दवा दी गई थी इनमें 29 मरीजों यानी 78.4% की मौत हो गई। डायलिसिस वाले 25 मरीजों में से 18 की मौत हो गई।
आंकड़ों पर एक नजर
- 402 मरीजों को रेमडेसिविर दी गई
- इनमें 146 मरीजों को बचाया नहीं जा सका
- 37 मरीजों को टॉसलीजुमैब दवा दी गई
- इनमें से 29 मरीजों को बचाया नहीं जा सका