कोरोना महामारी ने पूरी तरह से लोगों के कल्याण और मानसिक स्वास्थ्य के संबंध को व्यापक रूप से बदल दिया है। कोविड के बाद की दुनिया में स्वस्थ रहने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण दिखाई दे रहा है, जिसमें हेल्थ और वेलनेस उत्पादों को लेकर लोग सजग हुए हैं, लेकिन पैसे की कमी इसमें एक बड़ी बाधा बनकर खड़ी हो रही है। निजी क्षेत्र की प्रमुख प्रमुख बीमा कंपनी आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। इसमें कहा गया है कि कोविड के बाद लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर हो रहा है। वहीं, वर्क फ्रॉम होम को लेकर भी नई जानकारी सामने आई है।
नियोक्ताओं से उम्मीद बढ़ी
सर्वे के मुताबिक प्रमुख रूप से 89% लोग नियोक्ताओं से स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने की अपेक्षा करते हैं और केवल 75% अपने नियोक्ताओं द्वारा वर्तमान में दी जा रही पेशकश से संतुष्ट हैं। आईसीआईसीआई लोम्बार्ड के चीफ अंडरराइटिंग एवं क्लेम संजय दत्ता का कहना है कि सर्वेक्षण ने दिखाया कि केंद्र में स्वस्थ आदतों के साथ स्वास्थ्य और कल्याण किस हद तक मुख्य धारा में आया है। आम लोगों का नजरिया बदल रहा है और अपने और अपने प्रियजनों की समग्र भलाई को बनाए रखने के लिए, आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से अधिक निवेश करने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
हाईब्रिड कार्यस्थल बढ़ा रहा तनाव
सर्वे के मुताबिक काम के तनाव के कारण हर 3 में से 1 व्यक्ति का निजी जीवन प्रभावित हो रहा है। कोविड ने उन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा असर किया है, जो आंशिक रूप से घर से काम कर रहे हैं। कर्मचारियों द्वारा हाइब्रिड कार्य संस्कृति को कम पसंद किया जाता है और 70% घर या कार्यालय से नियमित रूप से काम करना पसंद करते हैं। सर्वेक्षण से कार्यस्थल के माहौल के लिए एक नया मानक उभरकर सामने आया है जिसके परिणामस्वरूप 40% अनौपचारिक बैठने के साथ खुले कार्यालय की जगह पसंद करते हैं, 37% नियमित रूप से डेस्क के साथ बैठना पसंद करते हैं और 23% कार्यालय के माहौल में बिना डेस्क के नियमित बैठने को प्राथमिकता देते हैं।
सर्वे में क्या है खास
सर्वेक्षण ने यह बात सामने आई है कि व्यक्तिगत समय की कमी 45% और वित्त 44% स्वस्थ आदतों को अपनाने के लिए शीर्ष बाधक हैं। 44% महिलाओं के साथ पुरुषों की तुलना में घर पर प्रतिबद्धता महिलाओं द्वारा अधिक प्रभावित होने वाली एक और चुनौती है। इसके अतिरिक्त, वित्तीय बाधाएं दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता और पुणे जैसे शहरों में एक बड़ी चुनौती प्रतीत होती हैं; इसलिए इन शहरों में अधिकांश लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जबकि मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरू, अहमदाबाद और पुणे में समय का प्रबंधन अधिक समस्या है।