लोहिया संस्थान की रेजिडेंट डॉ. शारदा सुमन जिंदगी की जंग हार गईं। वह जिंदगी के लिए करीब 140 दिन तक वेंटिलेटर पर मौत से जूझती रहीं। डोनर न मिलने से डॉ. शारदा का फेफड़ा प्रत्यारोपण नहीं हो सका। संक्रमण बढ़ने पर चार सितंबर को मरीज की सांसें थम गईं। परिवारीजनों ने हैदराबाद में ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया। अब परिवार के सामने डॉ. शारदा की दुधमुंही बेटी के पालन पोषण का संकट खड़ा हो गया है।
यह है पूरा मामला
लोहिया संस्थान के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में वर्ष 2018 में डॉ. शारदा सुमन ने जूनियर रेजिडेंट के पद पर नौकरी शुरू की। वह संस्थान में डीएनबी की छात्रा थीं। 29 मई 2019 में खलीलाबाद निवासी डॉ. अजय से डॉ. शारदा का विवाह हुआ था। दोनों लोहिया संस्थान में बतौर रेजिडेंट कार्यरत हुए। गर्भावस्था के दौरान भी डॉ. शरादा ड्यूटी कर रही थीं। ड्यूटी के दौरान वह कोरोना संक्रमित हुईं थीं।
कोरोना संक्रमण से खराब हो गए फेफड़े
14 अप्रैल को डॉ. शारदा को लोहिया के कोविड हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। इलाज के बावजूद उनकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ। धीरे-धीरे डॉ. शारदा के दोनों फेफड़े खराब होने लगे। पति डॉ. अजय मेडिसिन विभाग में रेजिडेंट हैं। डॉ. अजय के मुताबिक पत्नी एकमो पर जिंदगी के लिए संघर्ष करती रहीं। उनका वेंटिलेटर पर कई दिन इलाज चला।
वेंटिलेटर पर कराया गया प्रसव
गर्भास्थ शिशु की जान बचाने के लिए डॉक्टरों ने पहली मई को डॉ. शारदा का वेंटिलेटर पर प्रसव कराया। फूल सी बेटी का जन्म हुआ। लोहिया के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने डॉ. शारदा की जान बचाने के लिए फेफड़ा प्रत्यारोपण का विकल्प सुझाया। इस पर करीब डेढ़ करोड़ रुपये का खर्च बताया था।
मुख्यमंत्री ने प्रत्यारोपण के लिए डेढ़ करोड़ की मदद की
संस्थान के डॉक्टरों ने प्रयास किया। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने डॉ. शारदा के इलाज का मामला उठाया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले का संज्ञान लिया था। इसके बाद संस्थान की निदेशक डॉ. सोनिया नित्यानंद, सीएमएस डॉ. राजन भटनागर और चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विक्रम सिंह ने मुख्यमंत्री से भेंट की। मुख्यमंत्री के निर्देश पर हाई पावर विशेषज्ञों की कमेटी बनी। कमेटी ने फेफड़ा प्रत्यारोपण को मंजूरी दी। मुख्यमंत्री ने फेफड़ा प्रत्यारोपण के लिए धनराशि जारी कर दी।
किम्स में किया गया था एयरलिफ्ट
मुख्यमंत्री ने डॉ. शारदा सुमन की जिंदगी के लिए हैदराबाद के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेस (किम्स) में मदद राशि भेजी। उसके बाद डॉ. शारदा को लोहिया में एनस्थीसिया विभाग के डॉ. पीके दास की देख-रेख किम्स में एयरलिफ्ट कराया गया। एकमो के सहारे उन्हें एयर एम्बुलेंस से ले जाया गया।
तबीयत बिगड़ती गई, नहीं मिला डोनर
डॉ. अजय ने बताया कि करीब 34 दिन डॉ. शारदा का इलाज किम्स में चला। इलाज के बाजवूद मरीज की तबीयत में सुधार नहीं हुआ। लगातार तबीयत बिगड़ती चली गई। संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ता गया। ज्यादातर एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर साबित होने लगी। उधर, डोनर की कोशिश चलती रहीं। किम्स प्रशासन की कोशिशों के बावजूद कामयाबी नहीं मिली। डोनर न मिलने से फेफड़ा प्रत्यारोपण तक नहीं हो पाया। आखिर में चार सितंबर को डॉ. शारदा की जिंदगी की डोर टूट गई। पति ने बताया कि करीब 140 दिन वह संघर्ष करती रहीं।
कब क्या हुआ
-12 अप्रैल को शारदा को बुखार आया।
-14 को उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई।
-14 की शाम को लोहिया के कोविड हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।
-01 मई को डॉक्टरों ने वेंटिलेटर पर प्रसव कराया
-22 दिन डॉ. शारदा कोरोना पॉजिटिव रहीं।
-06 मई को डॉ. शरादा की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई।
-10 जुलाई को मुख्यमंत्री ने बजट जारी किया था।
-11 जुलाई लोहिया से किम्स शिफ्ट
-04 सिंतबर को किम्स में डॉ. शारदा की सांसें थम गईं