भारत-नेपाल सीमा के भिखनाठोड़ी बॉर्डर के समीप नेपाली नागरिक कंटीले तार लगा रहे हैं। हालांकि यह तार करीब दो तीन वर्ष पहले भी लगाया गया था किंतु अब इसमें और विस्तार किया जा रहा है। साथ ही पूर्व में लगाए गए तारों के जर्जर हो चुके खंभों को भी बदला जा रहा है।
माना जा रहा है कि बॉर्डर पर करीब तीन किलोमीटर की दूरी में यह बैरिकेडिंग की गई है। इसको लेकर सीमाई क्षेत्र में कई तरह की चर्चा हो रही है। गौरतलब है कि बॉर्डर के भिखनाठोड़ी में स्थित एसएसबी बीओपी से उत्तर दिशा में यह बैरिकेडिंग की गई है। वहां से पूरब की ओर इस बैरिकेडिंग को बढ़ाया गया है।
हालांकि एसएसबी बीओपी से पश्चिम की जमीन पर कोई बैरिकेडिंग नहीं की गई है। इसी रास्ते से होकर भारतीय व नेपाली नागरिकों का आना जाना होता है। बैरिकेडिंग के बाबत पूछने पर भिखनाठोड़ी के पूना सिंह व कृष्णमोहन ठाकुर ने बताया कि करीब दो तीन वर्ष पहले नेपालियों द्वारा बॉर्डर पर कंटीले तार लगाने की शुरुआत की गई थी। बाद में धीरे-धीरे उसकी लंबाई बढ़ती चली गई।
वहीं खैरतिया के मधुरेश महतो ने बताया कि वे लोग तीन चार वर्षो से बॉर्डर पर कंटीली तार देख रहे हैं। सीमा क्षेत्र में बसे लोगों का कहना है कि जिस क्षेत्र में कंटीले तार लगाए गए हैं, उधर से आम नागरिकों का आना-जाना नहीं होता है। उन्होंने बताया कि उस रास्ते का इस्तेमाल ज्यादातर तस्कर करते हैं। उनका कहना है कि चूंकि आवागमन के मुख्य रास्ते पर एसएसबी व नेपाली फोर्स की तैनाती रहती है इसलिए तस्कर जंगली रास्ते का इस्तेमाल करते हैं।
इस बाबत एसएसबी 44वीं बटालियन के कमांडेंट अनिल कुमार सिंह ने बताया कि बॉर्डर पर कंटीले तार वर्ष 2017 से लगाए जा रहे हैं। इसके बाद वर्ष 2018, 2019 व 2020 में भी तार लगाए गए। इस वर्ष काफी अधिक बारिश होने के कारण कंटीले तारों के कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हो गए थे। उसे अभी हाल में ही दुरुस्त किया जा रहा है। कंटीले तारों के संबंध में जानकारी हासिल करने पर बताया गया है कि नेपाली नागरिकों ने अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए वहां बैरिकेडिंग की है। नेपाली नागरिकों के खेतों के समीप जंगल होने के कारण जंगली जानवरों से उन्हें परेशानी हो रही थी। इसी वजह से खेतों के समीप बॉर्डर पर बैरिकेडिंग किया गया है।