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बीएचयूः सुब्रमण्यम भारती के सम्मान में कला संकाय में लगेगी चेयर, पुण्यतिथि पर पीएम मोदी ने की घोषणा

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू)  में जाने माने तमिल लेखक, कवि, दार्शनिक सुब्रह्मण्यम भारती के नाम पर चेयर स्थापित किया जाएगा। इससे न केवल परंपरा और मजबूत होगी बल्कि युवाओं को तमिल भाषा के कवियों, उनके विचारों को जानने का मौका मिलेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सुब्रह्मण्यम भारती की पुण्यतिथि पर कला संकाय में इस चेयर को स्थापित करने की घोषणा की। यहां तमिल भाषा, साहित्य, सांस्कृतिक अध्ययन को बढ़ावा देने के साथ ही शोध भी कराया जाएगा। 
कवि सुब्रह्मण्यम भारती चेयर स्थापित करने की प्रधानमंत्री की घोषणा से बीएचयू के प्रभारी वीसी प्रो. वीके शुक्ला सहित शिक्षक, छात्र, अधिकारी कर्मचारी बहुत उत्साहित हैं। 

चेयर की स्थापना की घोषणा से बीएचयू उत्साहित
प्रभारी कुलपति ने बताया कि महाकवि भारती जैसे महान व्यक्तित्व के नाम पर इस चेयर की स्थापना की घोषणा से बीएचयू उत्साहित है और एवं गर्व का अनुभव कर रहा है। काशी की नगरी प्राचीन काल से ज्ञान एवं अध्यात्म का प्रकाश चारों ओर फैलाती आई है। बीएचयू ने राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य पर आगे बढ़ते हुए इस ज्ञान परंपरा को न सिर्फ संजोने का काम किया है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी को इसे संप्रेषित भी किया है।

कई बार बनारस आ चुके हैं सुब्रह्मण्यम भारती
जाने माने तमिल कवि और लेखक सुब्रह्मण्यम भारती का काशी से गहरा नाता है। यहां वह दो बार आ चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी की शिक्षा भी काशी में हासिल की थी। अब उनके नाम पर बीएचयू के तमिल अध्ययन केेंद्र में चेयर स्थापित होने से यहां शिक्षण और शोध को नया आयाम मिलेगा। 

सुब्रह्मण्यम भारती के नाम पर चेयर स्थापित करने का प्रस्ताव 2008 में तमिल अध्ययन केंद्र में तत्कालीन प्रो. अरुणा भारती ने भेजा था। इसके अलावा पिछले महीने भी सरकार को प्रस्ताव भेजा गया था। अब जाकर मंजूरी मिली। बीएचयू से जुड़ा हर कोई बहुत खुश है। पीठ स्थापित होने के बाद सरकार की ओर से धनराशि भी दी जाएगी, जिसके बाद यहां शोध कार्य भी होंगे।
कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने काशी आए थे सुब्रह्मण्यम भारती
हिंदी विभाग के प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल का कहना है कि भारती 1898 से 1902 के बीच बनारस के हनुमान घाट पर रहे। यहीं उन्होंने संस्कृत, हिंदी व अंग्रेजी की शिक्षा पाई। इसके बाद बनारस में 1905 में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में भी शामिल हुए। जहां से चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) लौटते समय कलकत्ता में सिस्टर निवेदिता से भी मिले, इनके प्रभाव के कारण वे स्त्री शिक्षा को लेकर काफी मुखर रहे।