राजनांदगांव: संगीतनगरी खैरागढ़ की धरती उस दिन धन्य हो गई थी जब लता मंगेश्कर ने वहां अपना कदम रखा था। अवसर था इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह का। नौ फरवरी 1980 को खैरागढ़ में डी-लिट की उपाधि प्रदान की गई थी। तब लता की उम्र 51 वर्ष थी।
लता मंगेशकर को अपने बीच पाकर न केवल संगीतनगरी, बल्कि अविभाजित मध्यप्रदेश के कोने-कोने से पहुंचे संगीतप्रेमियों ने भी खुद को धन्य महसूस किया था। उन्हें देखने व सुनने के लिए दीक्षांत समाारोह में लोगों को खचाखच भीड़ जुटी थी। समारोह में तला मंगेशकर के साथ उस समय भरत नाट्यम की प्रख्यात नृत्यांगना रूखमणि देव अरूंडेल व कर्नाटिका गायन की प्रसिद्ध गायिका एमएस सुब्बा लक्ष्मी को भी उस दीक्षांत समारोह में विश्वविद्यालय ने डी-लिट की मानद उपाधि प्रदान की थी। तब विश्वविद्यालय के कुलपति थे अरुणकुमार सिंह।
ममता ने लता दीदी को परोसी थी कढ़ी
देश और दुनिया में स्वर कोकिला के नाम से सुविख्यात, भारतरत्न दिवंगत लता मंगेशकर का छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय से पुराना और गहरा नाता रहा है। वे इस विश्वविद्यालय को कला और संगीत के लिए गुरुकुल की दृष्टि से देखती थीं। वे यहां दो फरवरी 1980 को आयीं थीं। उन्हें इस विश्वविद्यालय से डी.लिट्ट की मानद उपाधि से विभूषित किया गया था।
वर्तमान में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति, प्रख्यात लोक गायिका पद्मश्री ममता चंद्राकर उन दिनों इस विश्वविद्यालय में शास्त्रीय संगीत (गायन) विषय से एमए की छात्रा थींं। उस प्रवास के दौरान अतिथियों को छात्र-छात्राओं ने भोजन परोसा था। भोजन परोसने वालों में ममता चंद्राकर भी शामिल थीं। ममता चंद्राकर ने लता जी को कढ़ी परोसा था। स्वरकोकिला ने चाव के साथ कढ़ी का आनंद लिया था।
हमेशा मेरी आदर्श रहींं
जाहिर है, भारत रत्न दिवंगत लता मंगेशकर जी का देहावसान देश और पूरी दुनिया के साथ इस विश्वविद्यालय के लिए भी गहरे शोक का विषय है। लता जी हमेशा मेरी आदर्श रहींं। उनका इस दुनिया से जाना मेरे लिए व्यक्तिगत और पूरे विश्व के लिए अपूरणीय क्षति है। इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय इस दुख के क्षण में दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि व्यक्त करता है।
पद्मश्री ममता चंद्राकर, कुलपति, इंकसं विश्वविद्यालय
new ad