Mahashivratri 2022: मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंगों महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर के साथ कई प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं। इनमें मंदसौर का पशुपतिनाथ मंदिर, भोजपुर का भोजेश्वर महादेव मंदिर, पचमढ़ी का चौरागढ़ महादेव मंदिर, मुरैना का बटेश्वरा शिव मंदिर, जबलपुर के कचनार सिटी के महादेव, महेश्वर के अहिल्येश्वर महादेव भक्तों की आस्था के केंद्र हैं। महाशिवरात्रि के साथ सावन माह में यहां विशेष आयोजन होते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचते हैं। आप भी जानिए इन शिव मंदिरों के बारे में…
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन
देश के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर उज्जैन में स्थित है। महाकाल की भस्मारती सबसे प्रसिद्ध है, इनके दर्शन को देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आते हैं। महाशिवरात्रि से पहले यहां शिवनवरात्रि पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही सावन और भादौ मास के सोमवार को महाकाल की सवारी निकाली जाती है। यहां 12 वर्ष में एक बार सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होता है। उज्जैन में महाकाल मंदिर के साथ भगवान भोलेनाथ के साथ 84 मंदिर हैं, जिन्हें 84 महादेव के नाम से जाना जाता है। इंदौर से उज्जैन 56 किमी और भोपाल से करीब 185 किमी दूर है।
ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग
मध्य प्रदेश में नर्मदा तट बसी नगरी ओंकारेश्वर में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर और ममलेश्वर दो रूपों में विराजमान है। मान्यता है कि विंध्य पर्वत ने यहां भोलेनाथ की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर यहां वे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और यहीं ऋषि-मुनियों की तपस्या पर भगवान शिव ने ओंकोरेश्वर को दो रूपों में अलग कर दिया। मंदिर में रात में चौसर-पांसे, पालना और सेज सजाएं जाते हैं, इसके पीछे मान्यता है कि यहां रात्रि में भगवान शिव और माता पार्वत विश्राम करते हैं। ओंकारेश्वर में महाशिवरात्रि के साथ ही सावन मास में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। खासकर सावन माह में कावडिए यहां से ओंकोरश्वर का अभिषेक कर नर्मदा जल लेकर महाकालेश्वर तक कावड़ यात्रा करते हैं और फिर उज्जैन पहुंचकर नर्मदा जल उन्हें अर्पित करते हैं। इंदौर से ओंकोरेश्वर की दूरी करीब 78 किमी है।
पशुपतिनाथ मंदिर, मंदसौर
मध्य प्रदेश के मंदसौर में शिवना नदी के किनारे पर पशुपतिनाथ मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं। यहां मूर्ति पर भगवान के आठ मुख हैं, जिसमें उनकी अलग-अलग मुद्रा दिखाई गई है। अगहन मास की कृष्ण पंचमी को पशुपतिनाथ के स्थापना दिवस के दिन मंदिर में भव्य आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही महाशिरात्रि और सावन माह में भी यहां बड़ी संख्या में भक्त भगवान शिव के दर्शन को पहुंचते हैं। इंदौर से मंदसौर 225 किमी दूर है।
भोजेश्वर महादेव मंदिर, भोजपुर
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 23 किमी दूर भोजपुर गांव में भोजेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। मंदिर में सबसे बड़े शिवलिंग विराजमान है, जिनकी ऊंचाई 3.85 मीटर है। मान्यता है कि पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण एक रात में ही करने का प्रण लिया था। इसके बाद 10वीं शताब्दी में राजा भोज ने इस मंदिर का जीर्णोंद्धार करवाया। मंदिर बेतवा नदी के किनारे स्थित है और देश-विदेश से श्रद्धालु बड़े शिवलिंग के दर्शन करने आते हैं।
चौरागढ़ महादेव मंदिर, पचमढ़ी
मध्य प्रदेश के हिल स्टेशन कहे जाने वाले पचमढ़ी के करीब चौरागढ़ महादेव मंदिर स्थित है। यहां त्रिशूल चढ़ाने की मान्यता है, भक्त मंदिर में 2 क्विंटल तक वजनी त्रिशूल महादेव को अर्पित करते हैं। अब तक मंदिर में 50 हजार से भी ज्यादा त्रिशूल चढ़ाए जा चुके हैं। महाशिरात्रि के अवसर पर यहां आठ दिनों तक मेले का आयोजन होता है। मान्यता है कि भस्मासुर को वरदान देने के बाद भगवान शिव ने इसी स्थान पर निवास किया था। सावन माह में भी बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं।
बटेश्वरा के शिवमंदिर, मुरैना
मुरैना के बटेश्वरा में शिव मंदिरों कर श्रंखला है। यहां पर 11 वीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार राजाओं ने करीब 400 शिव मंदिरों का निर्माण कराया था। हालांकि बाद में मुश्लिम आक्रातांओं और पत्थर के अवैध खनन की वजह से मंदिर जमीदोज हो गए। लेकिन आर्किलाजीकल सर्वे आफ इंडिया ने इन संरिक्षत किया और एएसआई के प्रदेश के तात्कालीन डायरेक्टर केके मोहम्मद ने प्रयास करके करीब सौ शिव मंदिरों को पुन: खड़ा कराया है। आज ये मंदिर सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। यहां पर देश विदेश से सैलानी शिव मंदिरों को देखने के लिए आते हैं। बटेश्वरा मुरैना जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी और ग्वालियर से 20 किमी की दूरी पर है। यहां पर निजी वाहनों से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
ककनमठ मंदिर सिहौंनिया, मुरैना
मुरैना जिले का प्रमुख शिव मंदिर हैं और इसका निर्माण 11 वीं शताब्दी में कराया गया था। मंदिर के बारे में किवदंती है कि इसे एक रात में ही तैयार किया गया था। हालांकि इस मंदिर को सिहौनियां के राजा सोनपाल सिंह ने अपनी रानी ककनावती के लिए कराया था। मंदिर की खासियत यह है कि पूरा मंदिर विशाल पत्थरों व चट्टानों से बना हुआ है, लेकिन कहीं भी इन पत्थरों को जोड़ने के लिए चूने या गारे को उपयोग में नहीं लाया गया है। बस एक के ऊपर एक पत्थर रखकर बनाया गया है। इस मंदिर पर सावन महीने में गंगा नदी से कांवड़ लाकर भक्त गंगाजल शिव का अभिषेक करते हैं। ककनमठ मंदिर मुरैना शहर से 18 किमी दूर सिहौंनिया गांव है। यहां पर बस या निजी साधन से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
ईश्वरा महादेव, मुरैना
मुरैना के पहाड़गढ़ के जंगलों में ईश्वरा महादेव का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की खासबात यह है कि यह एक गुफा में है और इसके ऊपर चाहे सूखा हो या फिर पानी की कमी। हमेशा गुफा के ऊपरी हिस्से से शिवलिंग पर पानी गिरता रहता है। साथ ही मंदिर के पास ही ऐसे बेलपत्र के पेड़ है, जिनमें तीन की जगह पांच और सात पत्ते आते हैं। इनसे ही भगवान शिव की पूजा होती हैं। किवदंतियों की माने तो इस शिवलिंग पर तड़के कोई अज्ञात शक्ति पूजा करके जाती है। साथ ही ईश्वरा महादेव की घाटी में अनिष्ट की आशंका की वजह से कोई पेड़ नहीं काटता है। यह मंदिर मुरैना जिला मुख्यालय से करीब 80 किमी दूर है। यहां पर निजी साधन से ही पहुंचा जा सकता है।
बांदकपुर, दमोह
बांदकपुर मध्य प्रदेश के दमोह जिले में स्थित है। यह भगवान शिव के जागेश्वर नाथ मंदिर के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है। वसंत पंचमी और महाशिवरात्रि पर हर साल यहां भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। सोमवती अमावस्या पर भी यहां श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। मंदिर प्रांगण में भगवान जागेश्वरनाथ मंदिर के अलावा राधा-कृष्ण, देवी दुर्गा, काल भैरव, भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और मां नर्मदा जी आदि देवी-देवताओं के मंदिर हैं। बुंदेलखंड के इस प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र में इस बार महाशिवरात्रि पर करीब एक लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। पिछले दो वर्षों से कोरोना संक्रमण के चलते लोग यहां नहीं पहुंच पा रहे थे, लेकिन हालात सामान्य होने के कारण इस बार अच्छी भीड़ होने की संभावना है। शिवरात्रि पर हजारों कांवडिया यहां पहुंचकर भगवान शिव का जलाभिषेक करेंगे। दमोह से बांदकपुर की दूरी करीब 17 किमी है। दमोह से बांदकपुर तक यात्री बसें चलती हैं। यहां से टैक्सी से भी बांदकपुर पहुंचा जा सकता है।