स्वर कोकिला और भारत रत्न से सम्मानित लता मंगेशकर की अस्थियां मंगलवार को वैदिक रीति से पूजन के बाद शिव की नगरी काशी में गंगा के मध्य धारा में विसर्जित कर दी गईं। घाट पर मौजूद लोगों ने नम आंखों से स्वर कोकिला को अंतिम विदाई दी। इससे पूर्व अहिल्याबाई घाट पहुंचने पर अस्थि कलश का पूजन पुरोहित श्रीकांत पाठक ने कराया।
मुंबई से अस्थियों का कलश लेकर लता मंगेशकर की बहन उषा मंगेशकर अपने अन्य परिजनों के साथ वाराणसी पहुंचीं। सभी खिड़किया घाट से नाव द्वारा अहिल्याबाई घाट पर पहुंचे। अस्थि कलश का पूजन कर परिजनों ने पुष्प अर्पित किए। विधि-विधान पूर्ण करने के बाद गंगा की मध्य धारा में अस्थियां प्रवाहित कर दी गईं। इस दौरान परिवार भावुक नजर आया।
हरिद्वार में भी प्रवाहित होंगी अस्थियां
छह फरवरी को मशहूर गायिका लता मंगेशकर ने इस दुनिया को अलविदा कहा था। उनके निधन की खबर के बाद से पूरा देश शोक में डूबा था। भारत रत्न गायिका का मुंबई में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था जिसमें हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी थी।
स्वर कोकिला लता मंगेशकर के परिवार ने उनकी अस्थियों का विसर्जन पवित्र तीन स्थानों पर करने का फैसला किया। 10 फरवरी को लता जी का अस्थि विसर्जन नाशिक के रामकुंड में किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, काशी के बाद अब हरिद्वार में भी लता मंगेशकर की अस्थियों के एक कलश का विसर्जन किया जा सकता है।
बाबा विश्वनाथ के दर्शन की इच्छा रह गई अधूरी
लता मंगेशकर का बनारस से कला और संस्कृति का नाता था। बनारसी साड़ियां तो लता जी की पहली पसंद हुआ करती थीं। गौरीगंज इलाके से ही लता मंगेशकर के लिए साड़ियां जाती थीं। साड़ी व्यवसायी अरमान व रिजवान ने बताया कि मंगेशकर परिवार से ऐसा खास रिश्ता बन गया कि हम लोग तो लता जी को मां ही कहते थे और वह हमें अपना बेटा मानती थीं। वह बाबा विश्वनाथ में दर्शन व अभिषेक तथा संकटमोचन मंदिर में दर्शन पूजन करना चाहती थीं। यह इच्छा उनके साथ ही चली गई।